खस्ताहाल पाक को कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला

0
221

विदेश मंत्री जयशंकर बिल्कुल ठीक मौके पर चीन पहुंचे। उनके पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी चीन जाकर खाली हाथ लौट चुके थे लेकिन चीन कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तानी दबाव में आकर कोई अप्रिय रवैया अख्तियार न कर ले, इस दृष्टि से जयशंकर की यह यात्रा सफल रही। यों 1963 में पाकिस्तान ने चीन को अपने कब्जाए हुए कश्मीर में से 5 हजार वर्ग किमी जमीन भेंट कर दी थी। इसीलिए चीन हमेशा कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन करके अपना अहसान उतारता रहा लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसका रवैया इस मामले में कुछ तटस्थ-सा हो गया है।

उसने इस बार सिर्फ लद्दाख को केंद्र प्रशासित बनाने पर विरोध जाहिर किया है, क्योंकि उसका मानना रहा है कि लद्दाख क्षेत्र में भारत ने उसकी कुछ जमीन पर कब्जा कर रखा है। जयशंकर ने चीनी नेताओं को समझा दिया है कि लद्दाख के इस नए रुप के कारण यथास्थिति में कण भर भी परिवर्तन नहीं हुआ है। वह ज्यों की त्यों है। लद्दाख को केंद्र प्रशासित करने का अर्थ यह नहीं है कि लद्दाख की जो जमीन चीन के कब्जे में है, भारत उसे डंडे के जोर पर छीनना चाहता है।

जयशंकर ने भारत-चीन व्यापार के बीच जो असंतुलन पैदा हो गया है, उसे भी सुधारने का आग्रह किया है। मैं सोचता हूं कि यह सही मौका है, जबकि प्रधानमंत्री को अपने विशेष दूत सउदी अरब, इंडोनेशिया, तुर्की, मोरक्को, मिस्र, ईरान आदि इस्लामी देशों के साथ-साथ कुछ प्रमुख यूरोपीय राष्ट्रों में भी भेज देने चाहिए, जैसे कि 1971 में बांग्लादेश के वक्त इंदिराजी के आग्रह पर जयप्रकाश नारायण और शिशिर गुप्ता गए थे। कश्मीर में आगे जो कुछ होनेवाला है, उसके संदर्भ में ऐसी यात्राएं बहुत फायदेमंद साबित हो सकती हैं।

यों पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने अपने कब्जाए हुए कश्मीर में जाकर जो तकरीर की है, वह पाकिस्तान की कमरतोड़ अंतरराष्ट्रीय सूरत का आईना है। उन्होंने अपने कश्मीरियों के बीच बोलते हुए कहा कि आप लोग किसी गलतफहमी में मत रहिए। सुरक्षा परिषद आपका हार मालाएं लेकर इंतजार नहीं कर रही है और दुनिया के मुस्लिम राष्ट्रों ने भारत में करोड़ों-अरबों रु. लगा रखे हैं। वे आपके खातिर अपना नुकसान क्यों करेंगे ? आप लोगों के बीच ज़जबात भड़काना बहुत आसान है। आप मूर्खों के स्वर्ग में मत रहिए।

अपने कश्मीरियों के बीच इमरान सरकार की इज्जत बचाने के लिए कुरैशी ने सच्चाई उगल दी। वास्तविकता तो यह है कि कश्मीर के मुद्दे पर इमरान खान को न तो पाकिस्तान के अंदर और न ही बाहर कोई समर्थन मिल रहा है। यहां मुझे एक शेर याद आ रहा है–

बागबां ने जब आग दी आशियाने को मेरे।
जिन पे तकिया था, वही पत्ते हवा देने लगे।।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here