कैंसर की चपेट में भारत के युवा

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दुनिया भर में मंगलवार को विश्व कैंसर दिवस मनाया गया। कैंसर एक घातक रोग है। एक निजी कंपनी में काम करने वाली निधि ने ठान लिया था कि वो कैंसर को अपनी जि़ंदगी नहीं बनने देंगी और वो इससे नि·ल·र रहेंगी। निधि कपूर ये बात बहुत ही सहजता के साथ कह जाती हैं। 38 साल की उम्र में निधि को पता चला कि उन्हें थाइरॉइड कैंसर है। वो बताती हैं कि जब जांच में पता चला कि फस्र्ट स्टेज है तभी मैंने सोच लिया था कि इससे कैसे लडऩा है? निधि कहती हैं कि उन्हें अपने पति और परिवारवालों का पूरा समर्थन मिला। लेकिन अपनी ननद को स्तन कैंसर होने की बात बताते हुए निधि भावुक हो जाती हैं। वो बताती हैं कि उनकी ननद जब गर्भवती थीं तब पता चला कि उन्हें स्तन कैंसर है। वो लास्ट स्टेज का था और डिलिवरी के बाद ही उनकी मौत हो गई। निधि की ननद तब केवल 29 साल की थीं. कम उम्र में कैंसर की ख़बरें अब आम सी लगने लगी हैं लेकिन या ये सच्चाई है? युवाओं में कैंसर: पिछले दस सालों में कैंसर के मामलों में 28 फ़ीसदी वृद्धि हुई है और इस बीमारी से होने वाली मौतें 20 फ़ीसदी बढ़ी हैं।

मेडिकल जर्नल ऑफ़ ऑन्कोलॉजी के साल 1990 से 2016 के बीच किए गए अध्ययन में ये बात सामने आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ दुनिया में कैंसर ऐसी दूसरी बीमारी है जिससे लोगों की मौत सबसे ज़्यादा होती है। डॉटरों का कहना है कि कैंसर बढ़ती उम्र में होने वाली बीमारी है लेकिन कम उम्र के लोगों में भी इस बीमारी के मामले सामने आ रहे हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एस में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग में प्रोफ़ेसर डॉटर एसवीएस देव का कहना है कि 40 फ़ीसदी ऐसे मामले हैं जो टबैको रिलेटेड कैंसर(टीआरसी) यानी तंबाकू के सेवन की वजह से होते हैं। अब तो 20-25 साल के युवाओं में भी ये बीमारी देखने को मिल रही है। लाइफस्टाइल की वजह से: डॉटर एसवीएस देव बताते हैं कि तंबाकू सेवन करने वाले लोगों में इसका इस्तेमाल शुरू करने के 10-20 साल बाद ही कैंसर का पता चलता है। हमारे पास ऐसे ग्रामीण युवा आ रहे हैं जो स्मोकलेस टोबैको का इस्तेमाल करते हैं जैसे पान, तंबाकू, खैनी, गुटका आदि। ये युवा बहुत कम उम्र में ही बिना इसका नुक़सान जाने, इन चीज़ों का सेवन शुरू कर देते हैं ।

ऐसे में 22-25 साल के युवा कैंसर के मामलों के साथ हमारे पास इलाज के लिए आ रहे हैं। डॉ एसवीएस देव ये भी जानकारी देते हैं कि एस में हेड एंड नेक, कोलोन और स्तन कैंसर के 30 प्रतिशत मामले आ रहे हैं जिनकी उम्र 35 से नीचे हैं। मुंबई के टाटा मेमोरियल सेंटर में सेंटर फॉर कैंसर एपिडीमिओलॉजी के निदेशक प्रोफ़ेसर डॉटर राजेश दीक्षित तंबाकू से होने वाले कैंसर को लाइफ़स्टाइल से जोड़ते हैं। वे बताते हैं कि यूरोप और अमरीका ने तंबाकू के सेवन को लेकर कड़े कदम उठाए हैं, जिसके बाद वहां तंबाकू से होने वाले कैंसर के मामलों में कमी आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ कैंसर से होने वाली एक तिहाई मौत का कारण शरीर की लंबाई के अनुसार वजन का ज्यादा होना, फल और सब्जिय़ों का सेवन कम करना, कसरत न करना ,तंबाकू और शराब का सेवन हैं। भारत में कैंसर जैसी बीमारी और उसके इलाज का उल्लेख आयुर्वेद और सिद्ध की प्राचीन पांडुलिपियों में मिलता है। जर्नल ऑफ़ ग्लोबल ऑन्कोलॉजी के अनुसार भारत के मध्यकालिन साहित्य में कैंसर का जि़क्र कम दिखता है लेकिन कैंसर के मामलों की रिपोर्टें 17वीं सदी से आनी शुरू हो गई थी।

वर्ष 1860 और वर्ष 1910 के बीच भारतीय डॉटरों की जांच परीक्षणों और कैंसर के मामलों पर श्रृंखलाबद्ध रिपोर्टें भी प्रकाशित हुई थी। महिलाओं में कैंसर: दि ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिज़ीज़ स्टडी (1990-2016) के अनुसार भारत में महिलाओं में सबसे ज्यादा स्तन कैंसर के मामले सामने आए हैं। स्टडी के अनुसार महिलाओं में स्तन कैंसर के बाद सर्विकल कैंसर, पेट का कैंसर, कोलोन एंड रेटम और लिप एंड कैविटी कैंसर मामले सबसे ज्यादा सामने आ रहे हैं। दिल्ली स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टिट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में लंग एंड ब्रेस्ट रेडिएशन सर्विसेज के प्रमुख डॉटर कुंदन सिंह चुफाल का कहना है, गांवों और शहरों में तुलना की जाए तो गांव से सर्विकल और शहर से स्तन कैंसर के मामले ज्यादा सामने आते हैं। लेकिन पूरे भारत में महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे पहले नंबर पर है जिसका मुख्य कारण देर से शादियां होना, गर्भधारण में देरी, स्तनपान कम करवाना, बढ़ता तनाव, लाइफ़स्टाइल और मोटापा है। डॉटर राजेश दीक्षित का कहना है कि भारत में मोटापा ख़ासतौर पर पेट पर चर्बी जमा होने की वजह से गाल ब्लैडर, स्तन कैंसर और कोलोन कैंसर के मामले भी सामने आ रहे हैं।

प्रदूषण से: पिछले साल दिल्ली के गंगा राम अस्पताल के चेस्ट सर्जन और लंग केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉटर अरविंद कुमार ने एक 28 साल की महिला में लंग कैंसर होने की जानकारी दी थी और आश्चर्य जताया था कि इस महिला के कभी धूम्रपान न करने के बावजूद उन्हें चौथे स्टेज का लंग कैंसर था। डॉक्टर से जब ये सवाल पूछा गया था कि क्या इसका कारण दिल्ली प्रदूषण बताया जा सकता है तो उनका कहना था कि इस महिला के परिवार के किसी भी सदस्य ने कभी धूम्रपान नहीं किया है तो ऐसे में कोई विकल्प नहीं है और ये स्वीकार करना चाहिए ये दिल्ली में प्रदूषण की वजह से है। अर्थव्यवस्था पर असर: लांसेट जर्नल के मुताबिक़ 2035 तक कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी होगी और ये 10 लाख से बढ़कर 17 लाख हो जाएंगे. कैंसर से होने वाली मौत की संख्या भी सात से बढ़कर 12 लाख तक पहुंच जाएगी। वहीं जर्नल ऑफ लिनिकल ऑन्कोलॉजी के मुताबिक़ भारत में कैंसर के 18 लाख मरीज़ो पर केवल 1600 एस्पर्ट हैं यानी 1125 कैंसर मरीज़ो पर एक कैंसर विशेषज्ञ है।

नव्या के संस्थापक और चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर नरेश एम राजन का मानना है कि कैंसर से अर्थव्यवस्था पर दो तरह से प्रभाव पड़ता है – एक तो मरीज़ के परिवार पर और दूसरा भारत के स्वास्थ्य बजट पर। इस प्रभाव को कम करने के लिए एक नेशनल कैंसर ग्रिड (एनसीजी) बनाया गया है। एनसीजी देशभर के सरकारी और ग़ैर सरकारी अस्पतालों का समूह है। जिसने नव्या का गठन किया है जो मरीजों और उनके तिमारदारों के दरवाज़ों तक विशेषज्ञों की राय और इलाज के तौर तरीको को पहुंचाने में मदद कर रहा है। डॉक्टर नरेश एम राजन बताते हैं कि कई अध्ययन ये जानकारी देते हैं कि अगर परिवार का एक सदस्य भी कैंसर से पीडि़त हो जाता है तो उसके इलाज के लिए 40-50 फ़ीसदी लोग कजऱ् लेते या घर बेच देते हैं। साथ ही लांसेट में आई रिपोर्ट के अनुसार करीब तीन से पांच फ़ीसदी लोग इलाज की वजह से गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं।

हालांकि डॉक्टरों को उम्मीद हैं कि केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन अरोग्य योजना की सूची में कैंसर की बीमारी को जोड़े जाने से लोगों को मदद मिलेगी। सरकार की तरफ़ से आयुष्मान योजना 2018 में शुरू हुई थी जिसमें बीमारियों के इलाज के लिए दी गई सहायता राशि में कैंसर का इलाज भी शामिल है। इस योजना के तहत लाभार्थी को पांच लाख रुपये तक की सहायता राशि देने का प्रावधान है। डॉटर नरेश एम राजन के अनुसार, गऱीब लोगों को इलाज के लिए बड़े शहरों में न आना पड़े इसके लिए सरकार की तरफ से प्रावधान किए गए हैं ताकि बीमारी का पता जैसे ही चले वैसे ही इलाज शुरू हो जाए। इसके तहत एक नेशनल कैंसर ग्रिड बनाया गया है। इस ग्रिड में 170 कैंसर अस्पताल शामिल हैं।

सुशीला सिंह
(लेखिका डाक्टर हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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