कुशोत्पाटिनी अमावस्या

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108 बार पीपल वृक्ष की परिक्रमा एवं पूजा से मिलेगी खुशहाली, होगा कष्टों का निवारण
भगवान शिवजी, श्रीविष्णुजी तथा पीपल वृक्ष की पूजा से मिलेंगे मनोवांछित फल
स्नान-दान-श्राद्ध कृत्य करना अत्यन्त पुण्य फलदायी
कुश के उत्पादन का विशेष तिथि

भारतीय सनातन धर्म में हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार हर पर्व की विशेष महिमा है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि भाद्रपद कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि कुशोत्पाटनी अमानस्या तिथि के नाम से जानी जाती है। इस अमावस्या पर ब्राह्मण वर्ग धार्मिक व मांगलिक कृत्यों को सम्पन्न करने व सम्पादित करवाने के लिए कर्मकाण्डी ब्राह्मण विद्वान कुश का उत्पाटन करते हैं। कुश नामक घास वर्षभर धार्मिक कृत्यों में प्रयोग करने के लिए संचित की जाती है। हिन्दुओं के धार्मिक अनुष्ठानों में किसी न किसी रूप में कुश का प्रयोग अवश्य होता है। भाद्रपद की अमावस्या तिथि के दिन ही कुश का उत्पाटन किया जाता है।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि भाद्रपद कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि 29 अगस्त, गुरुवार की सायं 7 बजकर 56 मिनट पर लगेगी जो अगले दिन 30 अगस्त, शुक्रवार की सायं 4 बजकर 07 मिनट तक रहेगी। इस तिथि पर विधि-विधानपूर्वक घर पितरों की पूजा अरने का भी विधान है। आज के दिन स्नान-दान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि पितरों के आर्शीवाद से जीवन में भौतिक सुख-सौभाग्य सदैव बना रहता है।

भाद्रपद की अमावस्या तिथि के दिन माता राणीसती के दर्शन – पूजन की विशेष महिमा है। आज के दिन राणी सती की महिमा में उनकी अनुकम्पा प्राप्ति के लिए मंगलपाठ करके रात्रि जागरण किया जाता है। माता राणीसती की विधि-विधानपूर्वक की गई पूजा से सुख-समृद्धि, सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

पितरों की ऐसे करें पूजा – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि लकड़ी के पीढ़े पर जल से भरा छोटा कलश रखकर उसपर तेरह रोली की बिन्दी, तेरह मेंहदी की बिन्दी एवं तेरह काजल की बिन्दी लगाई जाती है। तत्पश्चात नारियल, प्रसाद, लड्डू, पूड़ी, रोली, चावल, मेंहदी, चूड़ी सिन्दूर एवं जल अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा की जाती है। आज के दिन ब्रह्मणों को निमिन्त्रत करके उन्हें भोजन करवाना चाहिए। साथ ही उन्हें दान-दक्षिणा देकर उनका चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिए जिससे जीवन में सुख, समृद्धि, खुशहाली बनी रहे।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार पीपल के वृक्ष को सिंचन करके विधि-विधानपूर्वक पूजा करने का विधान है। जिससे शनिग्रह के दोष का शमन होता है तथा देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। पीपल वृक्ष पूजा के मन्त्र – ऊँ मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्ये विष्णुरूपिणे अग्रतो शिवरूपाय पीपलाय नमो नम:। आजे के दिन अथासम्भव गरीबों, असहायों और जरूरतमन्दों की सेवा व सहायता तथा परोपकार के कृत्य अवश्य किए जाने चाहिए।

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