कुछ बाते ऐसी भी हैं,
जिसे मुझे बताना हैं,
कुछ दोस्त ऐसे भी हैं,
जो रास्ते में छुट जाना हैं,
कुछ अपने बन रूठे हैं…
मेरी खामोशियां किसी दिन,
उन्हें भी लेगी आगोश में,
बेखबर बैठा हूं मैं यू ही आवेश में,
मतलबी इस दुनिया में,
सब मतलबी मिले हैं,
हर वह शक्स जिसने जख़्म दिये हैं…
कहे क्या कुछ यूं ही हम टूटे हैं,
ख़्वाहिशों के हशिये पर,
अपनों से ही लुटे है,
मेरे अपने, मेरे सपने,
घूमते दिखते है मुझे…
सबकी जुबां अब यही कहती हैं,
मैं अब वह नहीं जो था कभी,
सबकी बातें सुन कर जो हंसता था,
वह अब खुद पर हंसता हैं,
बंधनों की डोर पर वह कुछ यू ही खड़ा हैं,
क्षण-प्रतिक्षण रिसते रिश्ते को देखने पर अड़ा हैं…
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