काश! मैं भी तुम्हें मीठा फल दे पाता

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ये उन दिनों की बात है जब गौतम बुद्ध अधिक से अधिक लोगों तक ज्ञान का प्रचार कर रहे थे। इस काम के लिये उन्हें लगातार सफर करना होता था। उस दिन शाम का वक्त था। गौतम बुद्ध किसी उपवन में आराम कर रहे थे। वहीं, पास ही में बच्चे खेल रहे थे। करीब ही एक आम का पेड़ था। बच्चों ने खेलते-खेलते आम तोड़ने का मन बनाया।

तभी बच्चों के उस झुंड पर बुद्ध की नजर पड़ी। बच्चे पेड़ पर बार-बार पत्थर मारते। वो आम गिराने की कोशिश कर रहे थे। अचानक एक पत्थर बुद्ध के सर पर जा लगा। उन्हें चोट लगी और खून बहने लगा। दर्द का एहसास बड़ा तेज था। बुद्ध की आँखों में आंसू आ गये। बच्चे चुपचाप यह देख रहे थे। उनकी हंसी-ठिठोली अचानक ही हवा हो गयी। वो डर गये।

बच्चों को लगने लगा था कि अब गौतम बुद्ध डांट-डपट करेंगे। हो सकता है भला-बुरा कहें। बच्चों के आंखो से आंसू ढुलकने लगे। वो सभी बुद्ध के पैरों में गिर गये और माफी मांगने लगे। उन्हें अपनी गलती का एहसास था।

उनमें से एक बच्चे ने कहा, “हमसे भारी भूल हो गई है। मेरी वजह से आपको पत्थर लगा और आपके आंसू आ गये।” इस पर बुद्ध ने कहा, “बच्चों, मैं इसलिए दुखी हूँ कि तुमने आम के पेड़ पर पत्थर मारा तो पेड़ ने बदले में तुम्हे मीठे फल दिए, लेकिन मुझे मारने पर मैं तुम्हें सिर्फ भय दे सका। काश! मैं भी तुम्हें मीठा फल दे पाता।”

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