एन चुनाव के वक्त क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस के प्रति बदला रवैया हालांकि अप्रत्याशित नहीं है, फिर भी कुछ तथ्यों की तरफ संकेत जरूर करता है। पहला, क्या राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता को लेकर क्षेत्रीय दलों को अब भी किसी प्रकार का संदेह है? दूसरा, जग जानते हुए कि देश के हर कोने में कांग्रेस का आधार है, भले ही मौजूदा दौर में बहुत निर्णायक ना हो फिर भी चुनाव में अकेले उतरने पर दूसरे मोदी विरोधी दलों को नुकसान हो सकता है। इसके बावजूद किनाराकशी क्यों? तीसरा, क्या क्षेत्रीय दलों को अपनी ताकत बढ़ाने की चिंता ज्यादा है? या फिर पुलवामा आतंकी हमले के बाद देश के भीतर बदल रहे विमर्श से क्षेत्रीय ताकतों को केन्द्र में सत्ता के लिए चुनौती बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। लिहाजा समझ में यह आ रहा है कि फिलहाल अपने वजूद को बचाकर रखने में भलाई है, क्यों कांग्रेस का पिछलग्गू बना जाए। महागठबंधन को आकार देने में अब तक जुटे रहे शरद पवार खुद मानते हैं कि सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर भाजपा उभरने जा रही है। उन्हें भी लगता है 2019 की लड़ाई बदली परिस्थितियों में आसान नहीं रह गई है।
पहले उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी पर अब बारामती सीट भी उन्हें अपने लिए सुरक्षित नहीं दिखाई दे रही है, शायद इसीलिए फिर उनकी अनिच्छा सामने आई है। उधर उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है कि देश के किसी कोने में उनका कांग्रेस से सरोकार नहीं होगा। चुनाव बाद भी किसी तरह की संभावना को उन्होंने अभी से खारिज कर दिया है। हालांकि जवाब में कांग्रेस ने अपना तेवर दिखाते हुए यह ऐलान कर दिया है कि उसे बसपा के साथ की जरूरत नहीं है। सपा की तो मजबूरी है जहां बसपा रहेगी वहां उसे भी रहना है। बिहार में भी कांग्रेस के लिए अच्छी खबर नहीं है। राजद ने सीटों के मामले में साफ क दिया है कि कांग्रेस को 8-9 सीटों से ज्यादा नहीं दिया जा सकता। उम्मीद थी तृमूल कांग्रेस से पश्चिम बंगाल में कोई बात बन सकती लेकिन राज्य इकाई के विरोध के कारण गठबंधन होते-होते रह गया।
दिल्ली में भी आप और कांग्रेस अलग-अगल लड़ेगे। तमिलनाडु, कनार्टक और केरल में कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा है। महाराष्ट्र में एनसीपी पहले से है। पर टीडीपी का भी कांग्रेस के प्रति बदला रुख सामने आ रहा है। कांग्रेस से क्षेत्रीय दलों की बढ़ती दूरी इसलिए चिंता की बात है कि आम चुनाव में मतदान के लिए बमुश्किल एक महीना रह गया है और इस तरह के बिखराव से भाजपा नीत गठबंधन को फायदा पहुंच सकता है। सिर पर चुनाव और क्षेत्रीय ताकतों के व्यवहार में बदलाव से कांग्रेस भी विस्मित है और अब अपने बलबूते लड़ाई को अंजाम देने की दिशा में आगे बढ़ रही है। गांधी नगर से कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक और उसके बाद बड़ी रैली में पार्टी ने साफकर दिया है कि मोदी के खिलाफ वो मजबूती से लड़ेगी। इसलिए भाजपा के राष्ट्रवाद के बरक्स कांग्रेस ने देशभक्ति का विमर्श गढ़ा है। पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने अपने पहले संबोधन में देशभक्ति की जरूरत पर बल देते हुए लोगों से भविष्य तक करने का आवाहन किया है। देखना है, महागठबंधन में बिखराव के हद कांग्रेस से किनाराकशी का 2019 के चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा।।
I got what you intend, regards for putting up.Woh I am pleased to find this website through google. “I would rather be a coward than brave because people hurt you when you are brave.” by E. M. Forster.