किसी भी पार्टी के जीवन में जीत-हार का सिलसिला चलता रहता है। इसलिए हार के बाद किसी पार्टी में भारी उथल-पुथल दिखाई दे तो लोकतंत्र के लिहाज से भी चिंता स्वाभाविक है। तेलंगाना में कांग्रेस के 12 विधायक तेलंगाना राष्ट्र समिति का हिस्सा बनने के लिए बेताब हैं। भले ही आरोप के सीआर पर लगे लेकिन इस प्रकरण से दो बातें स्पष्ट हैं, पहला स्थानीय स्तर पर संगठन के पास मजबूत कोई चेहरा नहीं है। दूसरा राष्ट्रीय नेतृत्व से मोहभंग की स्थिति है। वरना हार के बाद कोर्स करेक्शन का अवसर मिलता है और दोबारा समय आने पर पार्टी सत्ता का चेहरा भी बन सकती है। पर ठीक इसके उलट मंजर चिंतित करता है। कुछ थोड़ा अलग, लेक न पार्टी के लिए फजीहत से कम नहीं है पंजाब कांग्रेस की मौजूदा स्थिति जहां मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट बैठक का उनके मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू बॉयकॉट कर देते हैं।
ठीक है, किसी मुद्दे पर राय अलग-अलग हो सकती है लेकिन मतभिन्नता कै बिनेट की मेयार तोड़ऩे की इजाजत तो नहीं दे सकती। इस मामले से नुकसान तो कांग्रेस का ही हो रहा है। हालांकि कैप्टन ने नवजोत सिंह सिद्धू को पैदल कर दिया है। खबर है कि उनसे पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय का भी प्रभार वापस ले लिया है। यह अंदरू नी कलह का चरम है जिससे सभी परिचित है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ना जाने क्यों इतनी गंभीर बात पर भी चुप्पी साधे हुए हैं। कर्नाटक कांग्रेस के भीतर भी कुछ ठीक नहीं चल रहा। वहां भी सिद्धारमैया के तौर-तरीके को लेकर पार्टी के भीतर कुछ बगावती सुर उठे हैं। केरल में तो कांग्रेस विधायक अब्दुल्ला कुट्टी की सिर्फ इसलिए पार्टी से विदाई हो गई कि उन्होंने भाजपा नेतृत्व की तारीफ कर दी थी।
चौतरफा जिस तरह की अनुशासहीनता क हें या स्वेच्छाचारिता पार्टी के भीतर दिखाई दे रही है, उससे क हीं न क हीं शीर्ष नेतृत्व पर भी सवाल उठता है। यह सवाल इसलिए लाजिमी है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस सांगठनिक स्तर पर अफरा-तफरी का शिकार होती दिख रही है। जहां कहीं अनुशासनहीनता की घटनाएं हो रही हैं वहां कड़ा संदेश दिया जाना चाहिए पर इस सबसे बेफिक्र कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी केरल के वायनाड में मतदाताओं का आभार प्रकट करने गए हैं। जरूरी भी है, जीत के बाद संसदीय क्षेत्र का भ्रमण किया जाना चाहिए पर इसी के साथ राज्यों में कई जगह से पार्टी के लिए असुविधाजनक सूचनाएं आ रही हैं, वहां भी प्राथमिकता के साथ पहल की जानी चाहिए। इस सबके बीच एक खबर यूपी से भी है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी में पार्टी की हार का फीडबैक ले रही हैं। अमेठी सहित कई सीटों पर खासकर पूर्वांचल में जहां पार्टी को उम्मीद थी पर वो नतीजे में तब्दील नहीं हो पाया। फिलहाल पार्टी हार का कारण तलाशने में लगी हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए। फीड बैक के बाद पार्टी धरातल पर दिखने का काम करेगी।