कभी सीता बनकर, कभी गीता बनकर

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नर इतना क्रूर हुआ पशुता भी शरमाती है
तस्वीर अब भारत की देखो सब बदली-बदली लगती है
हिंसा हो रही उस नारी की जो हम सबको ही जन्म देती है
न जाने और कितनी निर्भया को अपनी जिंदगानी खोनी पड़ती है
कभी सीता बनकर, कभी गीता बनकर,
कभी द्रौपदी बनकर, कभी निर्भया बनकर, कभी होलिका बनकर
अपनी जान गंवानी पड़ती है
मर्यादा की बात बताकर मत डयोढ़ी में बंद करो,
कत्ल करो उस रावण का घटना हरने की होती है
तस्वीर अब भारत की देखो, सब बदली-बदली लगती है
जीने का अधिकार उसे है अधिकारों के संगम में,
अधिकार छिनते है, जब उस से तब दुर्गा माँ वह बनती है
तस्वीर अब भारत की देखो, सब बदली-बदली लगती है
नर इतना अब क्रूर हुआ पशुता भी शरमाती है,
घटना नारी की सुनकर छाती भी फट जाती है
तस्वीर अब भारत की देखो, सब बदली-बदली लगती है
नर समझे जगलीला को नारी ही सच्ची साथी है,
अधिकार उसे दे बढ़ने का तब आगे बढ़ पाती है
तस्वीर अब भारत की देखो, सब बदली-बदली लगती है
नारी ही घर की लक्ष्मी है अपमानित जब होती है,
लेकर मलवारे हाथों में वह लक्ष्मीबाई बनती है
तस्वीर अब भारत की देखो, सब बदली-बदली लगती है
नारी का सम्मान करो मत भारत को बदनाम करो,
अहिंसा सिखलाओं हिंसक को जिससे यह हिंसा होती है
तस्वीर अब भारत की देखो, सब बदली-बदली लगती है

– सुदेश वर्मा

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