कन्या भ्रूण हत्या

2
2821

गहरे मासूम दिल से एक आवाज आई।
धीरे-धीरे, धीमी-धीमी मुझे सुनाई।
रोती बिलखती घबराई-घबराई थी वो।
अपनी ही थी, अपनों से डराई थी वो॥
मैंने पुछा इस तरह बिलखती हुई क्यो रोती हो।
अपने इस माँ के कौख के आंचल में क्यों नहीं सोती हो॥
अन्दर से आवाज आई क्या आप मुझे बचायेंगे।
क्या आप अपनी कलम मेरे लिये चलायेंगे॥
अरे मार डालेंगें मुझे इस संसार में आने से पले।
हर महिने चेक कराई जाती है, घूमते मेरे पास चेले॥
अरे जिन्हें ईश्वर ने जिन्दगी बचाने को बनाया है।
उन्होने ही मुझे इस संसार में आने पहले ही गवाया है॥
मरा रखवाला मुझे मारने को उतावला होता है।
उसे पता नहीं वो यौवन में चूर बावला होता है॥
आज मुझे गवां दोगे, में बाजार में नहीं मिलती।
खत्म हो जाएगी उजड़ जाएगी जिन्दगी हँसती-खेलती॥
उसे मारने में क्या मिलेगा वो तो लाचार है।
उसे मारने से लगता है कि क्या यह शिष्टाचार है॥
एक दिन श्रष्टि पर कयामत आ जाएगी।
अपने ही हात से अपनी जिन्दगी चली जाएगी॥
अरे मारना आसान होता है, नहीं चाहते बचाना।
अरे बचाने का हक नहीं है तो, गुनाह भी है मारना॥

लेखक- रामसिंह चारण

2 COMMENTS

  1. Hi there! This post couldn’t be written any better! Reading through this post reminds me of my previous room mate! He always kept talking about this. I will forward this article to him. Pretty sure he will have a good read. Thank you for sharing!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here