एक सप्ताह के अंदर आधी आबादी के लिए अवसर के दूसरे दरवाजे खुले हैं। लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटियों के लिए सैनिक स्कूल के बंद द्वार खोले तो चार दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने एनडीए में महिलाओं के प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया। एनडीए में हर साल पहुंचने वाले लड़कों में ज्यादातर सैनिक स्कूल के ही होते हैं। ऐसे में अगर एनडीए में लड़कियों की एंट्री का मार्ग प्रशस्त होता है तो सैनिक स्कूल से और कैडेटस एनडीए में नजर आएंगे। इससे पहले पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार ने सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल किया था। शीर्ष अदालत ने 17 फरवरी 2020 को अपने ऐतिहासिक फैसले में केंद्र से कहा था कि शॉर्ट सर्विस कमीशन की सभी सेवारत महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने पर विचार करे, भले ही उन्होंने 14 साल की अवधि पूरी कर ली हो या 20 साल की सेवा की हो।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि एक बार के कदम के रूप में 20 साल की पेंशन योग्य निरंतर सेवारत रहने का लाभ 14 साल से ज्यादा समय से कार्यरत सभी वर्तमान एसएससी अधिकारियों पर भी लागू होगा। शीर्ष अदालत ने एसएससी की महिला अधिकारियों को भारतीय सेना के सभी 10 क्षेत्रों में स्थाई कमीशन देने की केंद्र की 25 फरवरी 2019 की नीति स्वीकार कर ली थी। सुप्रीम कोर्ट ने लड़कियों के लिए एनडीए में प्रवेश को लेकर अभी अंतरिम आदेश जारी किया है। एनडीए में एडमिशन होगा या नहीं, यह अदालत के आखिरी फैसले पर निर्भर करेगा। फिलहाल लड़कियां पांच सितंबर को होने वाली एनडीए की परीक्षा में भाग ले सकेंगी।
उच्तम न्यायालय में दायर एक याचिका में योग्य महिला अयर्थियों के एनडीए में दाखिले की अनुमति मांगी गई थी। याचिका में सवाल उठाया गया था कि 10.2 स्तर की शिक्षा रखने वाली पात्र महिला अयर्थियों को उनके लिंग के आधार पर एनडीए और नौसेना अकादमी परीक्षा में अवसर नहीं दिया जाता है, जबकि समान रूप से 10.2 स्तर की शिक्षा प्राप्त करने वाले पुरुष अयर्थियों को परीक्षा देने और अर्हता प्राप्त करने के बाद भारतीय सशस्त्र बलों में स्थाई कमीशंड अधिकारी के रूप में नियुत होने हेतु प्रशिक्षित होने के लिए एनडीए में शामिल होने का अवसर मिलता है।
यह सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता के मौलिक अधिकार और लिंग के आधार पर भेदभाव से सुरक्षा के मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है। फिलहाल इन दोनों अकादमियों में महिलाओं की भर्ती नहीं की जाती। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले जब केंद्र सरकार से जवाब मांगा था, तो सरकार का कहना था कि वह याचिका आम जनहित में नहीं है बल्कि एक पॉलिसी डिसिजन को लेकर है। अब बुधवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवालिया लहजे में सेना को कहा कि आपको हर बार आदेश पारित करने के लिए न्यायपालिका की आवश्यकता क्यों है?
सेना महिलाओं के लिए आवश्यक ढांचा तैयार करें। सर्वोच्च अदालत ने महिला उम्मीदवारों के खिलाफ लगातार लैंगिक भेदभाव पर सेना को आईना दिखाया कि भारतीय नौसेना और वायुसेना ने पहले ही प्रावधान कर दिए हैं, लेकिन भारतीय सेना अभी भी पीछे है। दरअसल, महिलाओं ने खेल, पुलिस, सुरक्षा, स्पेस समेत सभी उन ताकत के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा व क्षमता का लोहा मनवाया है, जिस क्षेत्र में अभी तक केवल पुरुषों का ही वर्चस्व था। स्थाई कमीशन के बाद सैनिक स्कूल में बेटियों को प्रवेश की अनुमति और एनडीए में महिलाओं के लिए संभावित अवसर स्वागत योग्य कदम है। इससे लैंगिक भेदभाव खत्म होगा।