एनडीए का शक्ति प्रदर्शन

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नामांकन में एनडीए के सभी दिग्गज चेहरे मौजूद रहे।चुनाव के चौथे चरण में गठबंधन के तौर एकजुटता दिखाने की एक वजह वोटरों को यह संदेश देने की भी रही कि हम तो एक जुट हैं, लेकिन विकल्प देने का दावा कर रहा महागठबंधन बिखराव के मुहाने पर है। यह सच है कि निजी महत्वाकांक्षाओं के कारण महागठबंधन के नेताओं के बीच खींचतान है। बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों में जहां विपक्ष गठबंधन में है वहां भी आपस में खटपट की खबरे हैं। बिहार को राजद के तेजस्वी यादव और कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी के बीच कुछ मुद्दों पर टकराव है। यही हाल क र्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के बीच है। यूपी में तो पोस्ट अलाएंस के दल सपा.बसपा कांग्रेस की मित्रवत लड़ाई कई स्थानों पर देखने को आ रही है। वोटर के लिए भी ये रिश्ता क्या कहलाता है जैसी स्थिति हो गई है।

हिंदी पट्टी में जहां भाजपा को 2014 में सर्वाधिक सीटें मिलीं। उन्हीं क्षेत्रों में विपक्ष एक जुट होकर चुनौती नहीं पेश कर पा रहा है। यह बिखराव चुनाव के दौरान कितना निर्णायक साबित होता है, 23 मई को पता चलेगा। लेकिन एक मजबूत विकल्प के तौर पर उतरने की विपक्ष से जो स्वाभाविक उम्मीद थी, वो पूरी नहीं हो सकी जिसका मोदी खेमा भरपूर लाभ उठाना चाहता है। काशी में एनडीए के दिग्गजों का जुटना यही संकेत करता है। हालांकि आम चुनाव की घोषणा से पहले एनडीए के भीतर भी साथी दलों के बीच रिश्ते उतार-चढ़ाव वाले रहे थे। खासतौर पर शिवसेना का जिक्र किया जा सकता है। जिस तरह शिवसेना और भाजपा के बीच इधर के वर्षों में रिश्ते खराब हो चले थे, आये दिन मोदी सरकारके लिए क ई मसलों पर असहजता की स्थिति पैदा हो जाती थी, फिर भी ठीक चुनाव से पहले भाजपा ने शिवसेना के साथ रिश्ते ठीक करने के लिए एक हद तक लोक सभा की सीटों के बंटवारे में भी लचीला ख अपनाना जरूरी समझा।

इसका प्रमाण था कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नामांकन में अहमदाबाद शरीक हुए। इसी तरह एनडीए के दूसरे महत्वपूर्ण साथी जेडीयू की सीटों को लेकर जो नाराजगी रही होगी उसे भी भाजपा ने सुलझाने के लिए 2014 में जीती पांच सीटों को साथी दल के खाते में डाल दिया। बेशक इससे पहले रालोसपा और हम पार्टी के नेताओं ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था और शायद इसीलिए विपक्ष की तरफ से कहा जाने लगा था कि मोदी के बढ़ते एकाधिकारवादी रवैये के चलते एनडीए बिखर रहा है। इसी क्रम में अपना दल (स) और सुभासपा की भी खटपट चर्चा में थी। अनुप्रिया पटेल पहले की तरह दो सीटों से संतुष्ट हो गई हैं ओर सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर 35 स्थानों पर अपना उम्मीदवार उतारने के बावजूद एनडीए का उत्तर प्रदेश में हिस्सा बने हुए हैं। गठबंधन में सहनशीलता और दूरदृष्टि की बड़ी भूमिका होती है। भाजपा ने अपने बिखरते कुनबे को संभालकर इस चुनाव में एक मजबूत गठबंधन की तस्वीर पेश की है। जबकि राहुल की अगुवाई में यूपीए को अपना दायरा बढ़ाना चाहिए था पर वैसा होता हुआ नहीं दिखा। स्थिति यह है पहले से गठबंधन का हिस्सा रहे राजद का भी जब-तब तेवर गरम हो जाता है।

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