भारत में चारों तरफ से घुसपैठ होती रहती है। ताजा घुसपैठ रोहिंग्या मुसलमानों की है जो बर्मा से हुई है। इस घुसपैठ की मुख्य वजह पडौसी देशों की खराब आर्थिक दशा या आज़ादी से जीने का हक नहीं मिलना है जो लोग मानवता की दृष्टी से उन सभी को भारत में शरण देने की हिमायत करते हैं, वही लोग तसलीमा नसरीन को शरण दिए जाने के खिलाफ हिंसक हो जाते हैं। जिस बंगाल में कम्युनिस्ट राज के समय लाखों बांग्लादेशियों को अवैध रूप से बसाया गया उसी वामपंथी बंगाल सरकार ने तसलीमा नसरीन को आधी रात को बंगाल से निकाल बाहर किया था।
घुसपैठियों को बसाने के मापदंड अलग अलग रहे हैं अगर वे मुसलमान हैं और भविष्य में उन का वोट बैंक हैं तो उन्हें किसी न किसी तरह फर्जी पहचान पत्र दे कर आधार कार्ड तक बनवा दिया गया है , कश्मीर से एक पत्रकार ने अपन को बताया कि 1947 से बसे हिन्दुओं को तो भारतीय नागरिकता नहीं मिली लेकिन रोहिंग्या मुसलमानों के आधार कार्ड बन गए हैं।
सालों साल की मेहनत से बना असम का एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन अनेक खामियों से भरा है। पाकिस्तान का हिस्सा रहे मौजूदा बांग्लादेश से 1971 में असम और बंगाल में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हुई थी। 1985 में खुद राजीव गांधी ने आसू के साथ असम समझौता किया था , जिस के अनुसार घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकाला जाना था लेकिन जब तक केंद्र में मोदी सरकार नहीं आई घुसपैठियों की पहचान का काम शुरू नहीं हुआ। शुरू हुआ तो बिकाऊ नौकरशाही ने नागरिकता तक बेच डाली।
एनआरसी में उन्हीं बांग्लादेशियों की पहचान की जानी थी जिन की संख्या आँसू,अगप और भारतीय जनता पार्टी 40 लाख के करीब बताती रही थी , लेकिन पिछले दिनों जो आंकडा जारी हुआ , उन में असम के सिर्फ 19 लाख 6 हजार 657 लोगों के नाम शामिल नहीं हुए। भाजपा और संघ परिवार इस रजिस्टर को देख कर दंग रह गया है क्योंकि एक तरफ तो उन का अनुमान 40 लाख अवैध घुस पैथियों का था, तो दूसरी तरफ जिन लोगों का नाम रजिस्टर में शामिल नहीं हुआ है उनमें से आधे से ज्यादा हिन्दू हैं।
एनआरसी का सारा काम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुआ। हाल ही की दो घटनाओं से साबित होता है कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट कितना भी ईमानदारी से किसी मिशन पर प्रयास करें ब्यूरोक्रेसी उसे नाकाम बना देती है। एक आंकडा तो एनआरसी का है, जिस से सुप्रीमकोर्ट और केंद्र सरकार की आँखे फटी की फटी रह गई और दूसरा आंकडा मुद्रा लोन वितरण का है, एक सर्वेक्षण से पता चला है कि मुद्रा लोन के नाम पर 80 प्रतिशत कर्ज गलत हाथों में गया। मोदी की नोटबंदी को भी बैंकों की ब्यूरोक्रेसी ने नाकाम बना दिया था। पता नहीं नरेंद्र मोदी किस मुहं से ब्यूरोक्रेसी की तारीफ़ करते रहते हैं।
कांग्रेसी, वामपंथी और मुस्लिम राजनीतिज्ञों ने अपने वोट बैंक को बचाने के लिए पूरा जोर लगा दिया होगा, जिस कारण 40 लाख बांग्लादेशियों में से आधे अपना नाम रजिस्टर में जुडवाने में कामयाब हो गए| भाजपा और संघ परिवार ने हिन्दू शरणार्थियों के लिए वैसे प्रयास नहीं किए। नतीजतन 10 लाख हिन्दू रजिस्टर में शामिल नहीं हो पाए और अब संघ परिवार रजिस्टर देख कर हताश है। इसी हफ्ते के अंत में राजस्थान के पुष्कर में होने वाली संघ-भाजपा और अन्य सहयोगी संगठनों की समन्वय बैठक में इस मुद्दे पर विचार विमर्श होना है। असम के वित्त मंत्री हिमंता विश्व शर्मा ने कहा है कि 1971 से पहले बांग्लादेश से भारत आए कई शरणार्थियों को एनआरसी सूची से बाहर निकाला गया है जबकि एनआरसी से उन्हें बाहर रखे जाने का कोई कारण ही नहीं था। संघ और असम प्रदेश भाजपा चाहती है कि नागरिकता संशोधन बिल शीत स्तर में पास किया जाए ताकि पाकिस्तान , बांग्लादेश, अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का रास्ता साफ़ हो सके।
अजय सेतिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं