एग्जिट पोल पर भी सवाल

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इस रविवार को विभिन्न चैनलों पर आये एग्जिट पोल के नतीजे कमोबेश मोदी की दोबारा सत्ता में वापसी का संकेत देते रहे। इससे विपक्ष बौखला गया है। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने एग्जिट पोल को गॉसिप बताते हुए खारिज कर दिया है। यह बात और कि पिछले चुनाव में एग्जिट पोल में मनमाफिक नंबर दिखने पर दीदी ने सराहना भी की थी। कांग्रेस की तरफ से भी मौजूदा एग्जिट पोल को इंटरटेनमेंट कहा गया है। आनंद शर्मा ने तो पोल की वैज्ञानिकता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सही है कि कई बार एग्जिट पोल के नतीजे सही नहीं साबित हुए हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार 6-7 सीटें एग्जिट पोल के मुताबिक आम आदमी पार्टी को मिल रही थीं पर वास्तविक नतीजों में आप को 28 सीटें मिलीं और कांग्रेस के समर्थन पर दिल्ली में सरक र बनी। इसी तरह दूसरी बार एग्जिट पोल के मुताबिक आप को सामान्य बहुमत मिलने की उम्मीद थी पर वास्तविक नतीजों ने इतिहास रच दिया। 67 सीटें आप को मिलीं। कांग्रेस का तो सफाया हो गया। 2004 के एग्जिट पोल का भी हवाला दिया जा रहा है।

पर ऐसा नहीं है। एग्जिट पोल के नतीजे वास्तविक नतीजों में भी तब्दील हुए। वैसे भी इन विधियों से एक किस्म के र झान का अंदाजा लगता है। प्राय: सही होता है, कभी-कभी अप्रत्याशित भी होता है। इस चुनाव में भी जमीन पर बेरोजगारी और किसानों की बदहाली के सवाल प्रमुखता से मौजूद थे। फिर भी एग्जिट पोल में मोदी सरकार की वापसी के संकेत हैं तो सवाल उठेंगे। पर अभी से ये मान बैठना कि कहीं कुछ सुनियोजित ढंग से गड़बड़ी हुई है तो जल्दबाजी होगी। वैसे भी 23 मई का इंतजार करना चाहिए। पर जिस तरह ममता बनर्जी ने एग्जिट पोल से निकले संकेतों के बाद विपक्ष को लामबंद रहने के लिए कहा है, वो कई सवाल खड़े करता है। क्या 23 मई के नतीजे एग्जिट पोल जैसे होने पर विपक्ष ईवीएम को खारिज करने के लिए अभियान चलाएगा?

क्या प्रदर्शनों के जरिये अप्रत्याशित नतीजों को लेकर जनता के मन में संदेह पैदा करने का काम किया जाएगा? क्या राष्ट्रपति भवन से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक नतीजों में धांधली का आरोप लगाते हुए विपक्ष नये सिरे से चुनाव कराने की मांग करेगा? इस तरह की और भी परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं। इस तरह की एक नजीर अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश की है। वहां शेख हसीना की दो तिहाई के आंकड़े से भारी भरक म जीत के बाद पूरा विपक्ष लामबंद हो गया। विरोध जब सडक़ों पर उतरा तो प्रतिपक्षी नेताओं को जेल का रास्ता दिखाना पड़ा। किसी भी लोक तांत्रिक व्यवस्था में ऐसी स्थिति नहीं उत्पन्न होनी चाहिए जहां चुनाव प्रक्रिया पर से लोगों का विश्वास उठना शुरू हो जाए। विपक्ष यदि ठहरकर आत्मविश्लेषण करे तो उसे समझ में आ जाएगा कि हर बात पर संदेह की प्रवृत्ति ने उसकी भूमिका को समेटने का काम किया है। इसी प्रवृत्ति ने पूरे चुनाव को एक व्यक्ति विशेष का चुनाव बना दिया। ऐसे में नतीजे जो भी हों वो चौंकाऊ होते हैं। लिहाजा इसके लिए भी तो तैयार रहना चाहिए।

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