उलटा भी पड़ सकता है चीन का दांव

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कोरोना वायरस के संकट के समय में चीन को लेकर दो तरह की धारणा है। दोनों धारणाओं में एक बात कॉमन है कि यह वायरस चीन ने बनाया है और जान बूझकर इसे दुनिया भर में पहुंचाया है ताकि दुनिया और खास कर अमेरिका, यूरोप की अर्थव्यवस्था को कमजोर किया जा सके और चीन के आर्थिक महाशक्ति बनने का रास्ता साफ हो। ध्यान रहे पिछले दो-तीन सालों से चीन की अर्थव्यवस्था खराब हुई थी। उसकी दो अंकों की विकास दर की रफ्तार गिर कर छह फीसदी पर आ गई थी इसके उलट अमेरिका की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई थी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कारोबारी प्रतिबंधों के चलते चीन को नाराज किया हुआ था।

तभी यह साजिश थ्योरी चर्चा में है कि चीन ने जान बूझकर यह संकट खड़ा किया है। बहरहाल, चीन ने वायरस फैलाया यह कॉमन नजरिया है। पर चीन को इसका बड़ा फायदा होगा या नहीं इस पर राय बंटी हुई है। कई जानकारों का मानना है कि अमेरिका और यूरोप नए साल के पहले छह महीने परेशान रहते हैं और उसके बाद भी सर्दियों में इस वायरस के वापस लौटने के खतरे में रहते हैं तो उनकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगी। अगर वायरस का संकट तुरंत काबू में नहीं आया तो मेडिकल सुविधा जुटाने और अपने नागरिकों को राहत देने के लिए अमेरिका और यूरोप दोनों को बहुत बड़ी रकम खर्च करनी होगी।

अमेरिका ने पहला ही राहत पैकेज 151 लाख करोड़ रुपए का दिया है, जो उसकी जीडीपी का दस फीसदी है। यूरोपीय संघ का राहत पैकेज भी यूरोपीय देशों की जीडीपी के पांच फीसदी के बराबर है। अमेरिका और यूरोप दोनों जल्दी ही दूसरा पैकेज घोषित करेंगे। सो, अमेरिका और यूरोप दोनों की आर्थिकी कमजोर होगी और इसका सीधा फायदा चीन को होगा। वे जरूरी चीजों की आपूर्ति के लिए चीन पर ज्यादा निर्भर होंगे। दुनिया के लगभग सारे देश इस समय कोरोना वायरस की चपेट में हैं, सबके यहां किसी न किसी रूप में लॉकडाउन है और उनके यहां फैटरियां बंद हैं, जबकि चीन के यहां फैटरियां चालू हो गईं। सो, दुनिया के इस संकट का सबसे बड़ा फायदा चीन को होगा। उसने पिछले दिनों दुनिया के बड़े निजी बैंकों में से एक एचडीएफसी बैंक में 1.75 करोड़ यानी एक फीसदी शेयर खरीदा तो इस चर्चा को बल मिला कि चीन ने इस संकट का फायदा उठाना शुरू कर दिया है। पर असल में ऐसा है नहीं। चीन एचडीएफसी बैंक में एक फीसदी हिस्सेदारी खरीद कर यह मैसेज देना चाहता है कि उसके यहां सब कुछ अच्छा है।

असल में चीन की अपनी स्थिति कमजोर होनी शुरू हो गई है। चीन को कोराना वायरस की वजह से अपनी जीडीपी का दस फीसदी के करीब नुकसान हुआ है। उसका रिटेल सेटर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है और संपत्ति में निवेश में सात से आठ फीसदी की कमी आई है। यह सही है कि उसकी फैटरियां चालू हो गई हैं पर दुनिया में मांग कहा हैं? कुछ जरूरी मेडिकल वस्तुओं को छोड़ कर बाकी किसी चीज की मांग ही नहीं है। इसलिए चीन ज्यादा उत्पादन करके सामान स्टोर करने की जोखिम नहीं उठा सकता है। पर अगर उत्पादन नहीं बढ़ेगा तो उसकी फैटरियों पर ताले लगेंगे और बेरोजगारी बढ़ेगी। ध्यान रहे वह अमेरिका नहीं है। उसके ऊपर डेढ़ अरब लोगों की आबादी का बोझ है। चीन के सामने एक बड़ा संकट यह खड़ा होगा कि दुनिया भर में उसके प्रति नाराजगी का भाव है।

एक तरह से उसे अछूत बनाने की सोच दुनिया के देशों में है। जैसे जैसे दुनिया के देशों में कोरोना फैल रहा है, मरने वालों की संख्या बढ़ रही है और चीन में महज तीन हजार लोगों की मौत के बाद ही इसके खत्म होने की सूचना आ रही है वैसे-वैसे लोगों में नाराजगी बढ़ रही है। धीरे धीरे यह संदेह भी मजबूत होने लगा है कि वायरस चीन ने बनाया और फैलाया हो सकता है। यह संदेह इसलिए बढ़ा है योंकि चीन वायरस के जिक्र के सारे पिछले लिंक मिटाने में लगा है। तभी संभव है कि वायरस का संक्रमण रहने तक दुनिया के देश मजबूरी में मेडिकल जरूरत की चीजें या कुछ और दूसरी चीजें चीन से मंगाते रहें पर जैसे ही संकट खत्म होगा वैसे ही चीन से दूरी बढ़ेगी।

अजीत दि्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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