उड़ने वाले, सिर्फ रह गए बैठे-ठाले!

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भवानी प्रसाद मिश्र की जिस कविता का मैंने पठन कराया था उसकी एक लाईन मुझे बार-बार याद हो आती है- उड़ने वाले सिर्फ रह गए बैठे ठाले! यह लाईन 21वीं सदी के भारत में नोटबंदी के बाद की वह हकीकत है जिस पर जितना सोचेंगे कम होगा। पूरा भारत आज इस लाईन का प्रतिनिधि गवाह है। तीन दिन पहले भारत की विकास दर उर्फ जीडीपी के गिरने, उसके साढ़े चार प्रतिशत तक घटने का आंकड़ा सुनने को मिला। हिसाब से हालातों का अनुभव इससे भी बदतर है। कारोबारी, उद्यमियों में अधिकांश सब कुछ ठप्प होने, नेगेटिव ग्रोथ की बात करते हैं, जब सब बैठे ठाले हो गए हैं तो साढ़े चार प्रतिशत का सत्य कैसे बनता है? पर बोले कौन? जब लोगों के लिए उड़ने का माहौल, उड़ने के पंख ही कट गए है तो आकाश में कहां गरूड़, बाज, चातक, चील, गौरेये उड़ते दिखेगे?

परसों एक बुढ़े हंस राहुल बजाज ने अमित शाह, निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल के सामने लड़खड़ाती आवाज में कहा-कोई इंडस्ट्रियालिस्ट बोलेगा नहीं, डर हमारे मन में है। भले ही कोई न बोले, लेकिन मैं कह सकता हूं कि आलोचना करने में हमें डर लगता है, कि पता नहीं आप इसे कैसे समझोगे।…मैं सबकी तरफ से नहीं बोल रहा हूं, मुझे यह सब बोलना भी नहीं चाहिए, क्योंकि लोग हंस रहे हैं कि चढ़ बेटा सूली पर….हमें एक बेहतर जवाब सरकार से चाहिए, सिर्फ इनकार नहीं चाहिए। मैं सिर्फ बोलने के लिए नहीं बोल रहा हूं, एक माहौल बनाना पड़ेगा। मैं पर्यावरण और प्रदूषण की बात नहीं कर रहा हूं। हम यूपीए-2 सरकार को गाली दे सकते थे, लेकिन डरते नहीं थे। तब हमें आजादी थी लेकिन आज सभी उद्योगपति डरते हैं कि कहीं मोदी सरकार की आलोचना महंगी न पड़ जाए।

राहुल बजाज हम हिंदुओं की उस दुर्लभ प्रजाति की एक शख्शियत है जो आजाद पंछी के पंख लिए हुए है। जिन्होन मोदी सरकार के पहले टर्म में भी अरूण शौरी, दीलिप पारेख, राम जेठमलानी की तरह बेबाकी दिखलाई थी। इस बात को हमेशा ध्यान रखे कि भारत में जितना बड़ा आदमी होगा वह मन ही मन उतना ही अधिक डरा हुआ, अपने पंख समेटे हुए होगा। और यही सवा सौ करोड़ों लोगों का सत्व-तत्व है। आजाद भारत की इस मोटी बात को जाने कि तीन सरकारों में लोगो को छूट, आजादी की हवा मिली और जब ज्योंहि ऐसा हुआ तो भारत के लोग उड़ने लगे!हां, इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी सरकार से राजनीति को उड़ने की ऊंचाई, पीवी नरसिंहराव से आर्थिकी को उड़ने की आजादी, और डा मनमोहनसिंह ने अपनी हंस प्रकृति में सब कुछ होने दिया (मंत्रियों की स्वच्छंदता से ले कर आरटीआई-मनरेगा से अधिकार-पैसे में सशक्तिकरण, रामदेव, अन्ना हजारे, विपक्ष, मीडिया सभी को बोलने के पंख दिए तो देश खूब उड़ा, देश के लोगों में जिंदादिली बनी, सब उड़ें। उसी से नरेंद्र मोदी-अमित शाह को भी अपनी सियासी मंजिल के वे पंख मिले जिससे उनको, हिंदुओं को दिल्ली का तख्त मिला!

हां, यदि इस तरह सोच कर जरा बूझंे कि जनता पार्टी का राज, पीवी नरसिंहराव का राज और डा मनमोहनसिंह के राज की आजादी की अलग-अलग उड़ानों में भारत राष्ट्र-राज्य ने क्या गजब पाया और ठीक इसके विपरीत तानाशाही के, आर्थिकी के सरकारी तंत्र में जक़ड़े रहने के वक्त या नियंत्रित-खौफमय माहौल, नैरेटिव के वक्त में हम अपने कटे पंखों से कैसे अधोगति को प्राप्त हुई तो समझ आएगा कि उड़ने की आजादी का राष्ट्र व कौम के लिए क्या मतलब हुआ करता है?

मैं भटक रहा हूं। आज का मुद्दा यह है कि पंख कटे लोगों का देश निठल्ला होता है, वह चिल पौं, टाइम पास में मुंगेरीलाल वाले सपने देखता है। वह दुनिया का दोयम दर्जे का झूठा देश होता है। नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने 2014 में हिंदुओं की आस्मां छू लेने वाली उम्मीदों, उडान को सत्ता संभालने के तुरंत बाद इस सोच में पंखविहीन बनाया कि डा मनमोहन सिंह का वक्त अराजकता का था। आंदोलनों का था। लोगों के अधिकारों की भूख और गांव-गरीब के बीच पैसे लुटवाने का था। लोग उड़ते हुए सत्य देख आंदोलित होते थे। कारोबारी सपने लिए उड़ रहे थे। इस सब पर रोक लगे? लोग क्यों अपने-अपने पंख से उड़े? क्यों सौ फूल खिले, क्यों वैसा माहौल रहे जिससे कोई केजरीवाल बने, कोई रामदेव बने तो कोई अन्ना हजारे बने! तभी याद कीजिए भवानी प्रसाद मिश्र की कविता की इस एक और लाईन को कि बड़े बड़े मनसूबे आए उनके जी में और इसका परिणाम यह जो उड़ने तक के नियम बदल कर ऐसे ढाले कि सवा सौ करोड लोग आज-उड़ने वाले सिर्फ रह गए बैठे ठाले!

तभी भारत आज बैठा ठाला है!रिकार्ड तोड़ बेरोजगारी है! आर्थिकी पैंदे पर है। उद्योगपति-कारोबारी कोई भी दबा-छुपा-बचा पैसा निकाल कर याकि निवेश करने, जोखिम उठा उड़ने के मूड़ में नहीं है। राजनीति-राजनेता भी निठल्ले है। हां, अपना तो यह भी कहना है कि कुछ दर्जन नेताओं को छोड़कर भाजपा के नेताओं-कार्यकर्ताओं में भी निठल्ले होने का भाव है। कौन किसकी सुन रहा है, किसका क्या मतलब है? समाज में गति नहीं अधोगति है। देश की बुद्धि, बौद्धिकता, नैतिक-आत्मबल, विचार-विचारधारा और समाज के विभिन्न समुदाय उड़ नहीं रहे है बल्कि कुंद, कुंठित, हताश-निराश विकृतिया लिए हुए है। उड़ने का उन्मुक्त आकाश नहीं बल्कि पिंजरा है, दौड़ने का, बहादुरी का न जंगल है और न ओलंपिक मैदान है यदि कुछ है तो भेड़-बकरियां का तबेला है जो गडरियों से, उनके शोर से नियंत्रित है।

अब कौन यह नरेंद्र मोदी-अमित शाह को समझाएं? तभी अच्छा-अद्भुत लगा जो राहुल बजाज ने अमित शाह के आगे यह वाक्य तो बोला कि हम डरे हुए हैं। हम यूपीए-2 सरकार को गाली दे सकते थे, लेकिन डरते नहीं थे। तब हमें आजादी थी लेकिन आज सभी उद्योगपति डरते हैं कि कहीं मोदी सरकार की आलोचना महंगी न पड़ जाए।

सोचें, भारत के अरबपतियों की दशा! उन अरबपतियों की जो तंत्र को, अफसरों को, नेताओं को खरीदने की ताकत लिए हुए होते है। जो समरथ है हर तरह से! यदि ये पंख कटे जमीन पर फडफडा रहे है तो सचिव, अफसर, जज, संपादक याकि उन सबकी क्या औकात है जो किसी भी राष्ट्र-राज्य की सामूहिक चेतना का पंख होते है! तीन दिन पहले डा मनमोहनसिंह ने इकॉनोमिक कॉनक्लेव में कहा- पूरे समाज में भय का गहरा माहौल है। कई उद्योगपति मुझे बताते है कि वे सरकार से डरे रहते है… उद्यमी नए प्रोजेक्ट लाने में हिचके हुए है क्योंकि यदि प्रोजेक्ट चला नहीं, फेल हुआ तो खराब मंशा में ऐसा हुआ माना जाएगा।

अब जरा राहुल बजाज के कहे पर गृह मंत्री अमित शाह का कहा जाना जाए। उन्होने कहां- मगर फिर भी आप जो कह रहे है कि एक माहौल बनाना है, हमें भी माहौल को सुधारने का प्रयास करना पड़ेगा.. लेकिन मैं इतना जरूर कहना चाहता हूं कि किसी को डरने की कोई जरूरत नहीं है.. ना कोई डराना चाहता…ना कुछ ऐसा करा है जिसके खिलाफ कोई बोले तो सरकार को चिंता हो…बहुत पारदर्शी तरह से सरकार चली है और हमें किसी भी प्रकार के विरोध का कोई डर नहीं है और कोई विरोध करेगा भी तो उसकी मैरिट देख कर हम अपने आपको इंप्रूव करने का प्रयास करेंगे…

सो फैसला आपही करें कि राहुल बजाज के कहे का क्या अर्थ और अमित शाह के जवाब का क्या मतलब?

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निज विचार हैं

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