इस कानून से हिन्दू क्यों नाराज हैं?

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कितने मजे की बात है कि गृहमंत्री अमित शाह ने जो नया नागरिकता विधेयक संसद से पारित करवाया है, उसका विरोध भारत के मुसलमान नहीं कर रहे हैं बल्कि हिंदू कर रहे हैं और ये हिंदू हैं, पूर्वोत्तर राज्यों के। असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल के।

इन राज्यों में रहनेवाले मूल निवासियों को डर है कि नए नागरिकता कानून का फायदा उठाकर बांग्लादेश के बंगाली हिंदू उनके शहरों और गांवों में छा जाएंगे। वे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदू और सिखों की तरह सैकड़ों और हजारों में नहीं आएंगे बल्कि वे अब तक हजारों और लाखों में आ चुके हैं और आते जा रहे हैं। वे कई जिलों में बहुमत में हो गए हैं।

कुछ वर्षों में इन प्रदेशों के मूल निवासी अल्पमत में हो जाएंगे। उनके मन पर इस बात का कोई खास प्रभाव दिखाई नहीं पड़ रहा है कि इस नए नागरिकता विधेयक में पड़ौसी देशों के मुसलमानों को शरण देने की बात नहीं कही गई है। इस विधेयक ने पूर्वोत्तर में तूफान खड़ा कर दिया है। जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, वहां भी शहरों और गांवों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। सरकारें हतप्रभ हैं। भीड़ लूटपाट और तोड़-फोड़ से भी बाज़ नहीं आ रही है।

हजारों फौजी जवान तैनात किए जा रहे हैं। कई शहरों में कर्फ्यू लग गया है। हवाई अड्डे और रेल-स्टेशन ठप्प हो गए हैं। 34 साल बाद इतना बड़ा आंदोलन असम में फिर उठ खड़ा हुआ है। यह आंदोलन कहीं पूर्वोत्तर क्षेत्र से भाजपा का सफाया ही न कर दे। यदि कुछ लोग हताहत हो गए तो मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी का रविवार को जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे से गुवाहाटी में मिलने का कार्यक्रम भी रद्द करना पड़ेगा।

इस विधेयक ने एक तरफ पूर्वोत्तर के हिंदुओं को नाराज कर दिया है और दूसरी तरफ तमिलों को भी ! श्रीलंका से जो तमिल मुसलमान और हिंदू भारत में शरण लेना चाहते हैं, यह विधेयक उनके बारे में भी चुप है। यह ठीक है कि इस विधेयक से भारत के मुसलमानों को कोई सीधा नुकसान नहीं है लेकिन बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मुसलमानों पर शक की छाप लगा देने का असर क्या हमारे मुसलमानों पर नहीं पड़ेगा? इसके अलावा इन मुस्लिम देशों से जो गैर-मुसलमान भारत में आकर जमना चाहते हैं, क्या वे सब सताए हुए ही होते हैं ?

क्या हमारी सरकार को यह पता है कि इन मुस्लिम देशों से बाहर जाकर बसनेवालों की संख्या में मुसलमान ही सबसे ज्यादा हैं ? वहां से हिंदू, सिख और ईसाई भी बाहर निकले हैं लेकिन जिनके पांवों में दम था, वे अमेरिका, यूरोप और सुदूर एशिया में जा बसे हैं। हम इस विधेयक के द्वारा भारत को अनाथालय क्यों बनाना चाहते हैं ? किसी को भी भारत की नागरिकता चाहिए तो उसका पैमाना मजहब, जाति या वर्ग नहीं, बल्कि उसके गुण, कर्म और स्वभाव को होना चाहिए।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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