इंटरनेट यूज में भी महिलाएं मीलों पीछे

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डिजिटल इंडिया के हर मुट्ठी में मौजूद स्मार्ट फोन और सस्ते डेटा की उपलब्धता वाले दौर में भी महिलाएं इंटरनेट के इस्तेमाल में पीछे हैं। पल-पल अपडेट होती सूचनाओं से जोडऩे वाली इस दुनिया में देश की आधी आबादी आज भी अपनी पूरी मौजूदगी दर्ज नहीं करवा पाई है। खास तौर पर ग्रामीण महिलाएं काफी पीछे छूट गई हैं। निल्सन होल्डिंग्स के साथ इंटरनेट एंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) की ताजा रिपोर्ट ‘इंडिया इंटरनेट 2019’ बताती है कि इंटरनेट उपयोग की बढ़ती रफ्तार के बावजूद इसके इस्तेमाल में लैंगिक तौर पर काफी अंतर है। देश में जहां 25.8 रोड़ पुरुष इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, वहीं महिलाओं की संख्या इसकी आधी है। आज भी 67 फीसदी पुरुषों के मुकाबले केवल 33 प्रतिशत महिलाएं ही इंटरनेट का उपयोग करती हैं। शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 62 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 38 प्रतिशत महिलाओं का है तो ग्रामीण क्षेत्रों में 72 फीसदी पुरुषों के मुकाबले महज 28 प्रतिशत महिलाओं का।

सूचनाओं और सजगता के इस दौर में इंटरनेट एक साथी की तरह है जो सर्च और अपडेट की कड़ियों के जरिये लोगों को दुनिया से जोड़े रखता है। खबरों तक पहुंच बनाने और खैरियत लेने-देने का सक्रिय जरिया बनता है। ऐसे में कमोबेश हर मोर्चे पर असमानता और उपेक्षा झेलने वाली स्त्रियों का इंटरनेट की दुनिया से जुडऩे में पीछे रह जाना विचारणीय है। खासकर तब जब हमारे देश में इंटरनेट सेवाएं तेजी से विस्तार पा रही हैं। ‘इंडिया इंटरनेट 2019’ रिपोर्ट के मुताबिक देश में इस साल मार्च महीने के आखिर तक 45.10 करोड़ मासिक सक्रिय इंटरनेट यूजर थे। सक्रिय इंटरनेट यूजर्स का मतलब बीते एक महीने में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से है। इंटरनेट उपयोग के मामले में हमारा देश चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। इंटरनेट इस्तेमाल में महिलाओं के काफी पीछे होने की ही वजह से ग्रामीण भारत में इस असंतुलन को दूर करने के लिए गूगल और टाटा ट्रस्ट ने ‘इंटरनेट साथी’ प्रोग्राम शुरू किया जिसके तहत डिजिटली साक्षर महिलाएं अपने समुदाय और आसपास के गांवों की अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित करती हैं।

इस ऑनलाइन गैप के चलते हर तरह की खबरें पाने और पल भर में जरूरी जानकारियां जुटाने वाले इंटरनेट की दुनिया में महिलाओं का दखल कम है। दिलचस्प बात है कि इसका कारण सिर्फ यह नहीं है कि महिलाएं डिजिटल दुनिया तक पहुंच नहीं पा रही हैं। कई मामलों में यहां पहुंचने के बाद का अनुभव भी उन्हें इंटरनेट का इस्तेमाल करने से रोक रहा है। रिपोर्ट बताती हैं कि ग्रामीण महिलाओं में डिजिटल साक्षरता की कमी जितनी बड़ी समस्या है, शहरी महिलाओं का साइबर उत्पीडऩ भी उतना ही बड़ा मसला है। इंटरनेट से महिलाओं के दूर रहने के पीछे इन दोनों की भूमिका है। इसके अलावा महिलाओं के जीवन के हालात भी एक बड़ी बाधा हैं। देश के कई हिस्सों में घंटों पैदल चलकर पीने का पानी जुटाने या खेती-किसानी से लेकर घरेलू डजश्वम।

दठडरयें तक को संभालने वाली श्रमशील जीवनशैली महिलाओं को इंटरनेट से जुडऩे का मौका ही नहीं देती। इतना ही नहीं बड़ी संख्या में महिलाएं अशिक्षित और आर्थिक रूप से परिवारजनों पर निर्भर भी हैं। बहुत से घरों में उन्हें इंटरनेट का उपयोग करने की इजाजत ही नहीं है। क ई इलाकों में तो बेटियों को स्मार्ट फोन इस्तेमाल नहीं करने देने के पंचायती फरमान तक जारी किए गए हैं। दरअसल देश के हर हिस्से, हर तबके में इस माध्यम की अहमियत के प्रति जागरूकता लाना जरूरी है। आज के दौर में अपनी बात क हने और सूचनाएं हासिल करने के लिए महिलाओं का इंटरनेट से जुडऩा आवश्यक है। शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरी योजनाओं और संस्थानों की जानकारी भी डिजिटल माध्यमों के जरिये हासिल करने में आसानी होती है। यह संपर्क और सूचनाओं का सहज और त्वरित माध्यम है। गौरतलब है कि प्तमीटू कैंपेन के जरिए शोषण की आवाज उठाने वाली महिलाओं के स्वर को भी इंटरनेट ने ही फैलाया था। ऐसे में इस डिजिटल दुनिया में महिलाओं का पीछे रहना चिंताजनक है।

मोनिका शर्मा
(लेखिका स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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