आम लोग भी कोरोना वारियर ही तो हैं !

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प्रधानमंत्री से लेकर विपक्षी पार्टियों के नेता रोज कोरोना वारियर्स का आभार जता रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो कोरोना काल का सबसे पहला और सबसे ग्रैंड इवेंट आयोजित कराया तो वह कोरोना वारियर्स का आभार जताने के लिए ताली और थाली बजाने का ही था। इन कोरोना वारियर्स में डॉक्टर हैं, दूसरे स्वास्थ्यकर्मी हैं, सुरक्षाकर्मी हैं, पुलिस है, ड्यूटी निभा रहे सरकारी कर्मचारी हैं और जरूरी सेवाओं व उत्पादों की आपूर्ति कर रहे लोग हैं। कुछ लोगों ने मीडियाकर्मियों को भी इस सूची में शामिल किया है। दिल्ली सरकार ने तो कोरोना वारियर्स के मरने पर एक करोड़ रुपए के अनुदान की भी घोषणा की है तो कई जगह अलग से बीमा कराया गया है। यह अच्छा है और जरूरी भी है क्योंकि भारत में ज्यादातर कोरोना वारियर भगवान भरोसे ही काम कर रहे हैं। उनकी सुरक्षा के लिए जरूरी पर्सनल प्रोटेटिव इविपमेंट्स, पीपीई पर्याप्त नहीं है। सरकार ने डेढ़ करोड़ पीपीई का ऑर्डर दिया है, लेकिन भगवान जाने उनकी डिलीवरी कब होगी।

बहरहाल, अब सवाल है कि बाकी लोगों का क्या? बाकी लोगों का मतलब, जो लोग फैक्टरी चलाते हैं, कंपनी चलाते हैं, दुकान चलाते हैं, इन फैटरियों-कंपनियों-दुकानों में काम करते हैं, वर्क फ्राम होम कर रहे हैं, जिन लोगों ने मकान-दुकान किराए पर दे रखी है या ले रखी है, जो आराम से घरों में बैठे हैं पर बैंकों में, जिनके पैसे जमा हैं, फिक्स्ड डिपॉजिट हैं, जिन्होंने छोटी-छोटी बचतों को ज्यादा प्याज वाली योजनाओं में निवेश किया है, जिनके पैसे कर्मचारी भविष्य निधि में जमा होते हैं, जिन्होंने शेयर बाजार में या म्युचुअल फंड में पैसे निवेश किए हैं, जिनके बच्चे स्कूल-कॉलेज जाते हैं, जो स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाते हैं, जो स्कूल-कॉलेज चलाते हैं, जो ऑटो या टैक्सी चलाते हैं और इनकी खरीद के लिए बैंकों से कर्ज लिया हुआ है, यानी मोटे तौर पर ‘गैर जरूरी सेवाओं’ से जुड़े हैं। ये सब बाकी लोगों में आते हैं, जिसमें असल में पूरा देश आ जाएगा। सरकार चाहती है कि ये लोग देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाएं, देश के लिए कुछ करें, संकट का समय है तो इससे लड़ाई में कुछ योगदान करें।

जैसे जो फैक्टरी चलाते हैं, वे लोगों को हटाएं नहीं और न उनका वेतन काटें। जो कंपनी चलाते हैं वे भी अपने कर्मचारियों को बनाए रखें और वेतन-भत्ते देते रहें, घरों में काम करने वालों को भी हटाया नहीं जाए और उन्हें पूरे पैसे दिए जाएं। सरकार यह भी चाहती है कि जिन्होंने किराए पर मकान-दुकानें दे रखी हैं वे किराएदारों से पैसे न मांगें।इसके बाद भी अगर उनके पास कुछ बचता है तो उसे प्रधानमंत्री के बनवाए नए पीएम-केयर्स फंड में दान करें। फिर भी कुछ बचा रह जाता है तो उससे आम लोगों की मदद करें। अपने आसपास लोगों को खाना खिलाएं और लोगों का ध्यान रखें। स्कूल-कॉलेजों से कहा जा रहा है कि वे बच्चों से फीस नहीं वसूलें। यानी वे बच्चों से फीस नहीं लें पर अपने यहां जो शिक्षक व दूसरे कर्मचारी हैं उनको वेतन पूरे दें। ऐसी-ऐसी ढेर सारी बातें पिछले एक महीने में हुई हैं। ऑटो-टैसी चलाने वाले घर बैठे हैं, उनको हो सकता है कि राशन मिल रहा हो पर कर्ज की किश्तों का क्या? बैंक तो खाल उधेड़ लेने में लगे हैं!

अगर किसी के पास नकद नहीं है तो महिलाओं के जेवर भी दान कर सकता है। यह बात प्रधानमंत्री ने सीधे तो नहीं कही पर याद दिलाया कि इस देश की परंपरा रही है कि संकट के समय में महिलाएं जेवर दान कर देती थीं। बहरहाल, कुल मिला कर यह स्थिति है कि लोग ही लोगों का ध्यान रखें और अपना भी ध्यान रखें। चूंकि सरकार वायरस के देश में प्रवेश को रोकने में विफल रही, जांच करा कर उसका पता लगाने में विफल हो रही है, लोगों को मेडिकल सुविधा देने में विफल हो रही है, डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षा के लिए जरूरी उपकरण देने में विफल हो रही है, इसलिए चाहती है कि लोग घरों में बंद रहें। घरों से निकले तो बाहर पुलिस लाठी लेकर खड़ी है क्योंकि कथित रूप से वह लोगों की सुरक्षा चाहती है। घरों में बंद लोगों को नई बीमारियां हो रही हैं, पुरानी बीमारियों से ग्रसित लोगों का रोग बढ़ रहा है पर उनके लिए अस्पतालों के दरवाजे बंद हैं। इतना सब कुछ झेल कर भी जो लोग ताली-थाली बजा रहे हैं, दीये जला रहे हैं वे भी तो कोरोना वारियर्स ही हुए!

अजीत दि्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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