आठ दिनी शारदीय नवरात्र

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(7 अक्टूबर से 14 अक्टूबर)

नवरात्र में माँ जगतजननी भगवती देती हैं सुख-समृद्धि का वरदान

महिषासुरमर्दिनी माँ दुर्गा का आगमन अश्व (घोड़े) पर एवं प्रस्थान होगा गज ( हाथी) पर कुमारी कन्याओं के पूजन से माँ भगवती होती हैं प्रसन्न

कलश स्थापना का शुभ अभिजीत मुहूर्त : दिन में 11:36 मिनट से 12:24 मिनट तक

महाअष्टमी : बुधवार, 13 अक्टूबर, महानवमी : गुरुवार, 14 अक्टूबर एवं दशमी : शुक्रवार, 15 अक्टूबर

जगतजननी माँ दुर्गा जगदम्बा की आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र का शुभारम्भ 7 अक्टूबर, गुरुवार को हो रहा है। पूजाअर्चना श्रद्धा व धार्मिक आस्था एवं भक्तिभाव के साथ करने की परम्परा है। शारदीय नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के अनुसार भगवती की पूजा से सुख व सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जीवन धनधान्य से परिपूर्ण रहता है। शरद ऋतु में दुर्गाजी की महापूजा से सभी प्रकार की बाधाओं की निवृत्ति होती है। शारदीय नवरात्र में विशेषकर शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना फलदायी मानी गई है। श्रद्धा भक्ति के साथ व्रत उपवास रखकर माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करना विशेष पुण्य फलदायी रहता है। नवरात्र में पूजा का विधान-ज्योतिविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर भगवती माँ दुर्गा की पूजा का संकल्प लेना चाहिए। माँ जगदम्बा के नियमित पूजा में कलश की स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के पूर्व श्रीगणेशजी का विधिविधान पूर्वक पूजन करना चाहिए। कलश स्थापना का शुभ अभिजीत मुहूर्त-7 अक्टूबर, गुरुवार को दिन में 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक। कलश स्थापना रात्रि में नहीं की जाती।

कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए। शुद्ध मिट्टी की वेदिका बनाकर या नये मिट्टी के गमले में जौ के दाने बोए जाते हैं। माँ जगदम्बा को लाल चुनरी, अढ़उल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा व मिष्ठान आदि अर्पित किए जाते हैं। माँ दुर्गा के नौ-स्वरूपों की होती है पूजा-प्रथम-शैलपुत्री, द्वितीय-ब्रह्मचारिणी, तृतीय-चन्द्रघण्टा, चतुर्थ-कुष्माण्डा देवी, पंचम-स्कन्दमाता, षष्ठ-कात्यायनी, सप्तम-कालरात्रि, अष्टम-महागौरी एवं नवम्-सिद्धिदात्री। जिसमें भगवती की प्रसन्नता के लिए शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करके सम्पूर्ण नवरात्र में व्रत या उपवास रखकर श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ व मन्त्र का जप करना कल्याणकारी रहता है। एक दिन, तीन दिन, पाँच दिन, सात दिन अथवा नौ दिन के व्रत का नियम है। नवरात्र के प्रारम्भ व अन्तिम दिन के व्रत को एकरात्र (एकदिनी) व्रत कहा जाता है। प्रतिपदा एवं नवमी तिथि के दिन एक बार भोजन किया जाए, उसे द्विरात्र (दो दिनी) व्रत कहा जाता है। सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तिथि को एक बार भोजन करने का विधान है, जिसे त्रिरात्र (तीन दिनी) व्रत कहा जाता है। एकरात्र, द्विरात्र, त्रिरात्र, पंचरात्रि व सप्तरात्रि एवं नवरात्रि व्रत की विशेष महिमा है। पंचमी तिथि के दिन केवल एक बार, षष्ठी तिथि के दिन केवल रात्रि में, सप्तमी तिथि को जो भी (फलाहार) प्राप्त हो जाए और अष्टमी तिथि को सम्पूर्ण दिन उपवास रखना तथा नवमी तिथि को एक बार भोजन करने का विधान है। नवरात्र में व्रत रखने के पश्चात् व्रत की समाप्ति पर हवन आदि करके कुमारी कन्याओं एवं बटुक का पूजन करके उन्हें पौष्टिक व रुचिकर भोजन करवाना चाहिए।

तत्पश्चात् उन्हें नव वस्त्र, ऋतुफल, मिष्ठान्न तथा नगद द्रव्य आदि देकर उनके चरणस्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। प्रख्यात ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन ने बताया कि इस बार नवरात्र आठ दिन का है। नवरात्र 7 अक्टूबर, गुरुवार से प्रारम्भ होकर 14 अक्टूबर, गुरुवार तक रहेगा। भगवती का आगमन अश्व (घोडे) पर हो रहा है, जबकि गमन गज (हाथी) पर होगा। जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण विश्व में शुभफलों में कमी देखने को मिलेगी। कहीं-कहीं पर आशा के विपरीत घटना घटित होगी। जनमानस को विषमता से रूबरू होना पड़ेगा। अष्टमी व नवमी तिथि का मान-ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि इस बार आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 12 अक्टूबर, मंगलवार को रात्रि 9 बजकर 48 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 13 अक्टूबर, बुधवार को रात्रि 8 बजकर 08 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् नवमी तिथि लग जाएगी जो कि 14 अक्टूबर, गुरुवार को सायं 6 बजकर 53 मिनट तक रहेगी। तदुपरान्त दशमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 15 अक्टूबर, शुक्रवार को सायं 6 बजकर 03 मिनट तक रहेगी। अष्टमी तिथि 12 अक्टूबर, मंगलवार को रात्रि 9 बजकर 48 मिनट पर लगेगी, अष्टमी तिथि का हवन-पूजन इसी दिन रात्रि में किया जाएगा। अष्टमी तिथि उदया तिथि के रूप में 13 अक्टूबर, बुधवार को है, फलस्वरूप महाअष्टमी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। महानवमी का व्रत 14 अक्टूबर, गुरुवार को रखा जाएगा। महानवमी का व्रत रखकर जगदम्बाजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाएगी। महाअष्टमी तिथि व महानवमी तिथि के दिन बटुक व कुमारी पूजन का विधान है।

नवरात्र व्रत का पारण 15 अक्टूबर, शुक्रवार (दशमी) को किया जाएगा। इसी दिन दशमी तिथि सायं 6 बजकर 03 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप विजया दशमी का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा। इसी दिन अपराजिता देवी तथा शमी वृक्ष की पूजा होती है साथ ही शस्त्रों के पूजन का भी विधान है। नीलकण्ठ पक्षी का विशेष दर्शन-विजया दशमी के दिन नीलकण्ठ पक्षी का दर्शन किया जाता है, उन्हें आजाद करवाया जाता है। नवदुर्गा को तिथि के अनुसार क्या-क्या होगा अर्पित? नवरात्र में नौदुर्गा को अलग-अलग तिथि के अनुसार उनकी प्रिय वस्तुएँ अर्पित करने की धार्मिक मान्यता है। जिसमें प्रथम दिन (प्रतिपदा)-उड़द, हल्दी, माला-फूल। द्वितीय दिन (द्वितीया)-तिल, शक्कर, चूड़ी, गुलाल, शहद । तृतीय दिन (तृतीया)-लाल वस्त्र, शहद, खीर, काजल। चतुर्थ दिन (चतुर्थी)-दही, फल, सिंदूर, मसूर। पंचम दिन (पंचमी)-दूध, मेवा, कमलपुष्प, बिन्दी। षष्ठ दिन (षष्ठी)-चुनरी, पताका, दूर्वा । सप्तम दिन (सप्तमी)-बताशा, इत्र, फल-पुष्प। अष्टम दिन (अष्टमी)-पूड़ी, पीली मिठाई, कमलगट्टा, चन्दन, वस्त्र । नवम् दिन (नवमी)-खीर, सुहाग सामग्री, साबूदाना, अक्षत फल, बताशा आदि। ज्योतिषविद् श्री जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को अपनी दिनचर्या-जीवनचर्या नियमित व संयमित रखनी चाहिए। नित्य प्रतिदिन धुले हुए वस्त्र धारण करने चाहिए। व्यर्थ के कार्यों से बचना चाहिए। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। क्षौरकर्म नहीं करवाना चाहिए। अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र भोजन अथवा कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। शुद्ध देशी घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करके धूप जलाकर माँ जगदम्बा की पूजा-अर्चना करना शुभ फलकारी माना गया है। नवरात्र में यथासम्भव रात्रि जागरण करना चाहिए।

माता जगत जननी की प्रसन्नता के लिए सर्वसिद्धि प्रदायक सरल मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ का जप अधिकतम संख्या में नियमित रूप से करना चाहिए। नवरात्र के पावन पर्व पर माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करके अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। मनोकामना की पूर्ति के लिए कुमारी पूजन-श्री विमल जैन ने बताया कि अपने मनोकामना की पूर्ति के लिए सभी वर्ण या अलग-अलग वर्ण की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। देवीभागवत ग्रन्थ के अनुसार ब्राह्मण वर्ण की कन्या-शिक्षा ज्ञानार्जन व प्रतियोगिता, क्षत्रिय वर्ण की कन्या-सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ, वैश्य वर्ण की कन्या आर्थिक समृद्धि व धन की वृद्धि के लिए, शूद्र वर्ण की कन्या-शत्रुओं पर विजय एवं कार्यसिद्धि हेतु पूजा-अर्चना करनी चाहिए। दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या को देवी स्वरूप माना गया है, जिनकी नवरात्र पर भक्तिभाव के साथ पूजा करने से भगवती प्रसन्न होती हैं। धर्मशास्त्रों में दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या-कल्याणी, पाँच वर्ष की कन्यारोहिणी, छ: वर्ष की कन्या-काली, सात वर्ष की कन्या-चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या-शाम्भवी एवं नौ वर्ष की कन्या-दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या-सुभद्रा के नाम से उल्लेखित हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल मिलता है। भगवती की आराधना में अस्वस्थ, विकलांग एवं नेत्रहीन कन्याओं का पूजन वर्जित है। फिर भी इनकी उपेक्षा न करते हुए यथाशक्ति यथासामर्थ्य इनकी सेवा व सहायता करते रहने पर जगत् जननी माँ दुर्गा की प्रसन्नता सदैव बनी रहती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली बनी रहती है।

ऐसे करें नवरात्र में नवग्रहों को प्रसन्न-ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन ने बताया कि नवरात्र में नौ ग्रहों की प्रसन्नता के लिए विधिविधानपूर्वक नवग्रह शान्ति करवानी चाहिए साथ ही नवग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी करना चाहिए। राशि की अनुकूलता के लिए राशि के अधिपति ग्रह के मन्त्र का जप करना तथा ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी करना चाहिए। नवरात्र में राशि के अधिपति ग्रह की पूजा-अर्चना करना लाभदायी रहता है। राशि के अनुसार मन्त्र का जप अधिकतम संख्या में करने पर लाभकारी परिणाम सामने आता है। नवरात्र पर राशि अधिपति ग्रह के मन्त्र का करें जप और वस्तुओं का करें दान नवरात्र पर राशि अधिपति ग्रह के मन्त्र का करें जप और वस्तुओं का करें दान मेष एवं वृश्चिक-अधिपति-मंगल, मंत्र-ॐ अं अंगारकाय नमः, दान की वस्तु-लाल वस्त्र, लाल चंदन, गेहूं, गुड़, तांबा, मूंगा, मसूर, घी, कस्तूरी, सोना, लाल फूल, सोना, लाल बैल आदि।

वृषभ एवं तुला-अधिपति-शुक्र, मंत्र-ॐ शुं शुक्राय नमः, दान की वस्तु-सफेद फूल, सफेद चंदन, चावल, चांदी, घी, सफेद वस्त्र, हीरा, सोना, मिश्री, दूध, सुगंध, दही, सफेद घोड़ा आदि। . मिथुन एवं कन्या-अधिपति-बुध, मंत्र-ॐ बुं बुधाय नमः, दान की वस्तु-मूंग, कस्तूरी, कांसा, हरा वस्त्र, पन्ना, सोना, मूंगा, खांड, घी, सबफूल, हाथीदांत, कपूर, फल आदि।.कर्क-अधिपति-चन्द्रमा, मंत्र-ॐ सों सोमाय नमः, दान की वस्तु-सफेद फूल, सफेद वस्त्र, चावल, चीनी, चांदी, मोती, दही, सोना, शंख, कपूर, सफेद चंदन, मिश्री, सफेद बैल आदि। . सिंह-अधिपति-सूर्य, मंत्र-ॐ घृणि सूर्याय नमः, दान की वस्तु-लाल फूल, लाल वस्त्र, माणिक्य, केशर, तांबा, घी, गेहूँ, सोना, शंख, कपूर, सफेद चंदन, मिश्री, सफेद बैल आदि।.धनु एवं मीन-अधिपति-वृहस्पति, मंत्र-ॐ बृं बृहस्पतये नमः, दान की वस्तु-पीला वस्त्र, चने की दाल, हल्दी, पीला फल, पीला फूल, सोना, कांसा, पुखराज, खांड, पुस्तक, देशी घी, घोड़ा आदि। मकर एवं कुम्भ-अधिपति-शनि, मंत्र-ॐ शं शनैश्चराय नमः, दान की वस्तु-उड़द, काला तिल, तेल, काले वस्त्र, लोहा, कस्तूरी, कुलथी, काली खड़ाऊं, नीलम, सोना, काली गाय आदि।

ज्योर्तिविद् श्री विमल जैन

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