आज से मिले सबक में हमारे कल का सपना

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भारत अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तो यह एक ‘बेहतर’ भारत के सपने को सामने लाने का उपयुक्त समय है। एक ऐसा भारत जहां नफरत पर एकता हावी हो, जहां धर्म, जाति, समुदाय, क्षेत्र के आधार पर किसी नागरिक को निशाना बनाने वालों को ‘हेट स्पीच’ के आरोप में सजा दी जाए। जो भी नफरत भड़काने वाले बयान या भाषण देते हैं, उन्हें एक ही जेल में बंदकर चाबी कहीं फेंक दी जाए।

ऐसा भारत जहां स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता व्यक्ति की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर तय न हो। जहां जन स्वास्थ्य व्यवस्था में वीवीआईपी को नहीं, ‘आम आदमी’ को प्राथमिकता दी जाए, ताकि कोई भी आपात स्थिति में अस्पताल में बेड से वंचित न रहे। जहां हम ज्यादा से ज्यादा अस्पतालों का निर्माण करें, जहां स्वघोषित बाबाओं को नहीं, बल्कि डॉक्टरों को समर्पण और सहानुभूति की प्रतिमूर्ति के रूप में देखा जाए।

ऐसा भारत जहां लोग बंटे हुए न हों और जहां असमानताएं न बढ़ाई जाएं। जहां गरीबी मिटाना मानवता की सबसे बड़ी सेवा के रूप में देखा जाए। जहां महामारी के दौर में डिजिटल बंटवारे को कम करने पर भी काम किया जाए। जहां स्मार्टफोन की कमी और तकनीकी साक्षरता के अलग-अलग स्तर होने से बच्चों की शिक्षा में बाधा न आए।

ऐसा भारत जहां संसद बहस, असहमति और संवाद के साथ लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक बने, न कि एकतरफा संवाद, बाधा और उपद्रव की शिकार बने। संसद हावी होने वाली कार्यपालिका का विस्तार नहीं हो सकती, जहां निर्णयों को थोपा जाए। और न ही यह महत्वपूर्ण कानूनों को रोकने का अखाड़ा बन सकती है।

ऐसा भारत जहां लोकतंत्र हर पांच साल में वोट देने की परंपरा तक सीमित न रहे। जहां चुने गए प्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह हों, उनसे अलग-थलग न रहें। जहां नागरिक नेतृत्व से मजबूती से सवाल करें। ऐसा भारत जहां राज्य पार्टी की संबद्धता के आधार पर न बंटे हों। जहां दो राज्यों की पुलिस एक-दूसरे पर गोलियां चलाए तो केंद्र मतभेदों को दूर करने आगे आए। जहां स्थानीय प्रतिरोध हिंसक संघर्ष में न बदले।

ऐसा भारत जहां आर्थिक नीति निर्माता स्थिति को नकारते न रहें। जहां अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति ऊपर उठते सेंसेक्स या ‘वी’ आकार के ग्राफिक्स से तय न हो, बल्कि आय में कमी तथा बेरोजगारी के आधार पर तय हो। जहां असंगठित क्षेत्र और लघु उद्योगों को ध्यान में रखते हुए नीतियों से जुड़ी ज्यादा से ज्यादा पहल हो।

ऐसा भारत जहां हर 15 मिनट में किसी महिला पर हमला न हो, जहां ऐसे मामलों में जल्द से जल्द सजा सुनिश्चित की जाए। जहां पीड़ित के परिवार को अदालत के फैसले का वर्षों इंतजार न करना पड़े। जहां डर के कारण गवाह अपने बयान न बदलें। जहां महिलाओं के प्रति द्वेष के रवैये के कारण महिलाओं की गरिमा से समझौता न हो।

ऐसा भारत जहां जलवायु परिवर्तन को अगली सदी की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकारा जाए। जहां नीति निर्माता पहाड़ों पर वनों की कटाई और नाजुक तटीय इलाकों में अतिक्रमण से उपजे पारिस्थितिकी संकट का हल खोजने की दिशा में कार्य करें। जहां वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सिर्फ प्रबुद्धों की चर्चा का विषय न माना जाए, बल्कि यह ग्लोबल वार्मिंग और स्वच्छ हवा में सांस लेने के अधिकार पर व्यापक चर्चा का हिस्सा बने।

ऐसा भारत जो ओलिंपिक महाशक्ति बने और सिर्फ क्रिकेट का दीवाना देश न रहे। जहां एक और ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीतने के लिए भारत को 13 वर्ष इंतजार न करना पड़े। जहां हम ओलिंपिक सितारों का जश्न मनाते हुए याद रखें कि केवल वास्तविक खेल संस्कृति वाला देश ही लगातार मेडल जीत सकता है। पुनश्च: यह सपना सिर्फ बेहतर भारत के बारे में नहीं है, बल्कि बेहतर मीडिया के बारे में भी है। ऐसा मीडिया जो सनसनी से ज्यादा संवेदना को महत्व दे और शोर से ज्यादा खबर को। स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।

राजदीप सरदेसाई
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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