अर्थव्यवस्था में नई उम्मीद

0
225

मंदी के आगोश में सांस ले रही देश की अर्थव्यवस्था में कुछ राहत के लक्षण उभरे हैं, जिससे चली आ रही सुस्ती दूर होने की आस बंधी है। बावजूद इसके कि रेल किराए और गैस सिलेंडर के दाम 2020 की शुरूआत में ही बढ़ गए हैं। बावजूद इसके यूपी की ही बात करें तो 2018 में 5.4 फीसदी की दर से रहने वाली बेरोजगारी 2019 में लगभग दोगुनी यानि 9.3 फीसदी हो गई। बावजूद इसके सरकार की कोशिशें रंग लाती दिखने लगी हैं, यह नई उम्मीद है। मंदी के हिचकोलों के बीच अर्थव्यवस्था की नैया पार लगने की दिशा में कुछ संकेत दें तो यह निश्चित तौर पर सकारात्मक पहल है। ऐसी पहल फुटकर में सही, कई तरफ से होती दिखी है। जीएसटी के क्षेत्र में ही यह राहत की बात है कि दिसंबर के महीने में भी वृद्धि दर्ज की गई। आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपये के पार पहुंचा। नवंबर में भी संग्रह ने एक लाख करोड़ पार किया था। यदि दिसंबर 2018 से तुलना करें तो नौ फीसदी का इजाफा हुआ है। सिर्फ यूपी की बात करें तो 11 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। तो यह वसूली वृद्धि का ग्राफ यदि इसी तरह महीना दर महीना बढ़ता रहा तो सरकारी खर्चों की रफ्तार इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में और बढ़ेगी।

इससे स्वाभाविक रूप से संबंधित उद्योग और कुशल कामगारों के लिए आशाजनक अवसर उपलब्ध होगा। खुद वित्त मंत्री ने अपने संबोधन में पहले से क हीं अधिक आधारभूत विकास में निवेश का भरोसा दिलाया है। बढ़ता राजस्व संग्रह इस लिहाज से अच्छी खबर है मौजूदा जीएसटी स्लैब में बदलाव की भी योजना है। आगे से स्लैब की दरें लोगों प्रोत्साहित करने वाली रहीं तो संग्रह में भारी-भरकम उछाल आ सकता है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को नया कार्य मिल सकता है। जीएसटी को लागू करने के पीछे सरकार की सोच भी यही थी कि एक कर व्यवस्था से चली आ रही पेचीदगियां दूर होंगी और परम्परागत संग्रह से ज्यादा राजस्व की प्राप्ति हो सकेगी। पर अभी तक यह व्यवस्था उद्यमियों व कारोबारियों का संस्कार नहीं बन पाई है। असंगठित क्षेत्र के ज्यादातर कारोबारियों को इसमें रजिस्ट्रेशन और फिर उसके संचालन को लेकर एक अज्ञात भय है। इसके अलावा जानकारी का भी अभाव है। एक दिक्कत बहुतेरे नई व्यवस्था में मंझे नहीं है। नंबर दो की प्रवृत्ति से भी अपेक्षानुसार राजस्व वसूली नहीं हो पा रही थी। पर वृद्धि के संकेत से उम्मीद बंधी है। कि ना जमा करने की प्रवृत्ति हतोत्साहित हो रही है। जाते-जाते बीते साल के आखिरी महीने में कारों की बिक्री में भी आशाजनक वृद्धि हुई।

ठीक है, मारूति की बिक्री में वृद्धि की तरह महिंद्रा और निसान ने भी उम्मीद जगाई। ठीक है, इसी अवधि में हुंडई, होंडा और टोयोटा की बिक्री मंद पड़ी। तो अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों में कहीं बहाव तो कहीं ठहराव की स्थिति है। पर उम्मीद की जा सकती है, सरकार ने लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने का इंतजाम किया तो तय है चौतरफा छाई सुस्ती दूर हो जाएगी। फिलहाल टुकड़ों में सुस्ती टूटने की खबरें आ रही हैं, जिससे इस सीमित क्रम के चौतरफा विस्तार की उम्मीद की जा सकती है। फिलहाल तो उम्मीद यह भी है कि पहली मार्च से ट्राई का टैरिफ लागू होने पर मौजूदा खर्च घटेगाए इससे टीवी चैनल देखने वालों पर से आर्थिक बोझ कुछ कम होगा। इन सब उम्मीदों के बीच सरकार के सामने चुनौतियां भी कम नहीं है। जिस तर इराक में अमेरिका ने अपने एक नागरिक के मारे जाने के बाद सैनिकों की खेप बढ़ाई है और ईरान से भी रिश्ते ठीक नहीं चल रहे है। इसके अलावा भी इस्लामिक संगठन को लेकर खाड़ी देशों और अन्य सदस्य देशों के भीतर सऊदी अरब तथा तुर्की के बीच बढ़ती तनातनी का विपरीत असर पडऩा तय है। पिछले दिनों मलेशिया में इस्लामिक देशों के संगठन की एक बैठक आयोजित हुई थी, जिसमें पाकिस्तान को हिस्सा लेना था लेकिन सऊदी अरब के दबाव में पाक पीएम इमरान खान वहां नहीं जा सके। अब ऐसी ही बैठक में सऊदी अरब भी कर रहा है। जाहिर है, इस बढ़ती तनातनी से कच्चे तेलों के उत्पादन घटाने और उसकी कीमतों को बढ़ाने का नया खेल शुरू हो सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here