इसी बुधवार को अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पियो से भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने द्विपक्षीय बातचीत में स्पष्ट कर दिया कि जो भी फैसले होंगे, वे राष्ट्रपति को ध्यान में रखकर होंगे। दरअसलए भारत रूस से एस.400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीद रहा है। अमेरिका चाहता है कि उससे मिसाइल खरीदी जाए। हालांकि संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत को महत्वपूर्ण साझीदार बताया। ईरान को तो आतंकी देश के तौर पर चिन्हित किया, लेकिन पाकिस्तान को लेंकर अमेरिकी विदेश मंत्री की चुप्पी से यह साफ हो गया है कि अफगानिस्तान में अपने हित को देखते हुए अमेरिका अब भी कहीं न कहीं पाकिस्तान के प्रति नरम रुख रखता है इसीलिए सांकेतिक तौर पर भले ही कुछ मुद्दों पर वो भारत के साथ दिखे लेकिन उसके लिए अपना हित सबसे पर है। यही बात भारत की तरफ से भी अमेरिका क समझा दी गई है। उम्मीद है, जी-20 की बैठक में डोनाल्ड ट्रम्प से बातचीत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी राष्ट्रीय हित का मुद्दा उठाएंगे।
जरूरी भी है। वैसे भी बरसों से जो देश गाढ़े वक्त में भारत के साथ मजबूती से खड़े रहे हैं, उनको छोडक़र नए रिश्तों में भला कैसे आगे बढ़ा जा सकता है। रूस और ईरान ऐसे ही मित्र देश हैं, जो भारत के साथ दशकों से हैं। शीत युद्ध के बाद बदले भूराजनीतिक परिदृश्य में अमेरिका-रूस की भूमिका बदली है। चीन एक नये प्रतिद्वन्द्वी के तौर पर बड़ी तेजी से उभर रहा है। उसे एशिया में खतरा भारत से है। इसीलिए एक दूरगामी रणनीति के तहत पाकिस्तानी को शह दे र और वहां सडक़ निर्माण के जरिये अपनी ताकत बढ़ाने में लगा हुआ है। दूसरे पड़ोसी देशों को भी विकास के नाम पर अपना आर्थिक उपनिवेश बनाने की दिशा में बढ़ रहा चीन नेपाल को मंदारिन भाषा के जाल में भी उलझा रहा है। इसलिए कि यही एक ऐसा देश है जो धार्मिक -सांस्कृतिक रूप से भारत के अति निकट है।
इसीलिए चीन को काउंटर करने के लिए अमेरिका को भारत की नजदीकि यां पसंद हैं लेकिन जो भारतीय हित है वे शायद उतना मायने नहीं रखते, यह एक बार फिर स्पष्ट हो गया है। पाकिस्तान पर अमेरिकी विदेश मंत्री की चुप्पी के बाद एक और बात अखरने वाली लगी। वो यह कि उन्होंने यहां धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के पक्ष में मजबूती से बोले जाने की अपील भी की। उनकी टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है कुछ दिन पहले ही अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने जारी की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि भारत में अल्पसंख्यक समुदायए खासकर मुसलमानों के खिलाफ चरमपंथी हिन्दू समूहों ने भीड़ द्वारा हिंसा की है। हालांकि उस रिपोर्ट पर भारत की तरफ से कड़ी प्रतिक्रि या व्यक्त करते हुए क हा गया कि यह मात्र दुष्प्रचार है। रिपोर्ट के नाम पर इस तरह की बौद्धिकता और सर्वेक्षण के रूप में जारी रपटें भी एक तरह से कि सी देश पर दबाव डाले जाने की रणनीति का हिस्सा होती है। दरअसलए भारत का प्रारंभ से एक स्टैंड है, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर इसका एक अर्थ यह भी है रिश्ते वहीं तक स्वागत योग्य हैं, जहां वे हमारे राष्ट्रीय हितों को प्रभावित नहीं करते।