अमेरिका की सबसे शर्मनाक हार

0
98

काबुल हवाई अड्डे पर बम धमाके में अमेरिकी सैनिकों समेत करीब 100 लोगों के मरने के कुछ ही घंटे बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बयान दिया कि ‘हम न माफ करेंगे और न भूलेंगे। हम तुम्हें खोज निकालेंगे और कीमत वसूल करेंगे।’ बाइडेन ने संकल्प और आक्रामकता दिखाने की पूरी कोशिश की। लेकिन अफसोस, उनकी छवि वैसी ही उभरी जैसे वे खुद हैं, भेड़ की खाल में भेड़। बाइडेन जिन अफगानी-पाकिस्तानी जिहादी गुटों के खिलाफ गुस्सा दिखा रहे थे, उन्हें इससे शायद ही कोई फर्क पड़े।

अफगानिस्तान में बाइडेन ने अव्यवस्थित, हथियारबंद गिरोह के आगे बिना शर्त हथियार डाल दिए, जिसकी न कोई जमीन थी और न अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा कि अफगानों ने गुलामी की जंजीर तोड़ दी है। लेकिन क्या यह आज़ादी है? अगर अफगानियों ने ऐसा माना होता तो वे तालिबानियों को खुशी से गले लगा रहे होते। लेकिन वे तो मुल्क से बाहर निकलना चाहते हैं। कई लोग तो बम धमाके के अगले दिन भी हवाई अड्डे तक बेखौफ पहुंचे। बाइडेन प्रशासन इसे चाहे जैसे भी देखे, यह उसकी सबसे शर्मनाक हार है।

वे कह सकते हैं कि उन्हें ट्रम्प प्रशासन की करतूतें भुगतनी पड़ रही हैं, लेकिन यह बहाना भी उतना ही झूठा है जितना बाइडेन का गुस्से और संकल्प का दिखावा। पहली बात यह है कि ट्रम्प ने बेशर्त समर्पण और वापसी पर कोई सहमति नहीं दी थी। दूसरे, फरवरी 2020 में दोहा में हुए समझौते के बावजूद उनके प्रशासन ने तालिबान के इस दावे को मानने से इनकार कर दिया था कि वह अफगानिस्तान का इस्लामिक अमीरात है।

बाइडेन को हमने ‘भेड़ की खाल में भेड़’ इसलिए कहा क्योंकि ट्रम्प या नामांकन के मामले में अपनी पार्टी के पुराने प्रतिद्वंद्वियों के विपरीत बाइडेन खांटी ‘शीत’ योद्धा हैं। भले यह उनकी पुरानी शैली की मिसाल हो और ‘शीत युद्ध’ भले जीत गए हों लेकिन आगे ऐसा नहीं लगता कि उनमें शक्ति प्रदर्शन का बहुत माद्दा है। बाइडेन ने दया, सहानुभूति, निष्पक्षता को राजनीतिक उत्पाद बनाकर ट्रम्प को हराया। काबुल में हार से पहले और उसके बाद के उनके बयानों पर गौर करें। उनके किसी बयान में अफगानों के लिए इन मूल्यों की झलक नहीं मिलती।

‘हम देश का निर्माण करने के लिए अफगानिस्तान नहीं गए।’ वाकई? तो आठ साल के ओबामा कार्यकाल में आप वहां से वापस क्यों नहीं लौटे? या लादेन के मारे जाने के बाद ही क्यों नहीं लौट गए? 2004 के बाद 16 साल तक अमेरिका और उसके साथी देशों की संयुक्त ताकत राष्ट्र निर्माण में ही तो लगी थी। नाकाम रही, तो आपने वापस लौटने फैसला कर लिया। कोई समझौता किए बिना? कोई शर्त रखे बिना?

अफगान फौज के बारे में भी उन्होंने इसी तरह अपमानजनक बातें कहीं। जबकि फौज ने पिछले दो दशकों में अमेरिका एवं साथी देशों की फौज के मुक़ाबले 30 गुना ज्यादा सैनिक खोए। अंततः वह आसानी से हार गई, लेकिन तभी जब अमेरिका सुरक्षा देने के वादे करके पीछे हट गया। अफगान फौज वायुसेना और इलेक्ट्रॉनिक कवच के बिना सामरिक रूप से अंधे कुएं में पहुंच गई।

वहां छोड़ी गई वायुसेना की संपत्तियों की देखभाल के लिए रखे गए ठेकेदार भी भाग गए। नतीजा यह हुआ कि लड़ाई के अंतिम दिनों में अफगान वायुसेना का कहीं पता नहीं था। अब तालिबान को तो हथियारों का पूरा खजाना मिल गया है। ऐसी वापसी किस तरह का कमांडर-इन-चीफ करता है?

जोखिम से भागने वाले किसी शख्स के लिए यह क्रूरता ही मानी जाएगी कि उसका विमान युद्धक्षेत्र के ऊपर मंडरा रहा हो लेकिन उम्मीद से आसमान ताक रही अफगान फौज की मदद का जोखिम नहीं उठाता। बाइडेन अगर अपनी चेतावनी पर अमल करते हैं तो एक दृश्य यह उभर सकता है।

पहले तो यह ‘निष्कर्ष’ पेश कर दो कि मामला केवल इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरासण प्रोविन्स (आईएसकेपी) का है। फिर किसी नेता/नेतृत्व की और उसके अड्डे की पहचान करो और फिर उस पर ड्रोन से या वायुसेना से हमला कर दो। हर सूरत में उन्हें पाकिस्तान की मदद लेनी पड़ेगी। दूसरा कोई उपाय नहीं है।

अमेरिका ने एक राष्ट्रपति (बुश जूनियर) के दावों की खातिर पाकिस्तान पर निर्भरता के लिए दो दशक तक खून और खूनी पैसे से कीमत चुकाई। अब उसके लिए काम करने वालों से हारने के बाद दूसरा राष्ट्रपति अपने लोगों को संतुष्ट करने के लिए रावलपिंडी का सहारा लेगा। आईएसकेपी के वर्तमान मुखिया को मारने के बाद बाइडेन का अमेरिका क्या करेगा? जल्द दूसरा मुखिया खड़ा हो जाएगा।

बाइडेन के घरेलू मतदाताओं को इससे कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन इससे अमेरिका की दबदबे वाली छवि को बहुत चोट पहुंचेगी। भारत समेत उसके सभी साथियों को झटका लगा है। अगर वह सबकुछ छोड़कर भागने वाला, हमले में फंसे साथी को दोषी ठहराने वाला लगता है, तो चीन से खतरा महसूस कर रहे ताइवान, जापान, या दक्षिण कोरिया उस पर कैसे भरोसा कर सकते हैं? भारत ही कैसे भरोसा कर सकता है? तब क्वाड का क्या महत्व रह जाता है? बाइडेन काबुल में धमाका करने वाले आतंकवादियों को जो भी करें या न करें, उन्होंने वैश्विक रणनीतिक चिंतन में उथलपुथल मचा दिया है।

‘शीत’ योद्धा हैं बाइडेन
जो बाइडेन जोखिम से कतराते हैं। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के संस्मरण बताते हैं कि बाइडेन ने उन्हें ओसामा बिन लादेन के एबोटाबाद अड्डे पर छापा मारने की सलाह नहीं दी थी। उन्हें इसमें जोखिम दिख रहा था। आखिर वे एक पक्के ‘शीत’ योद्धा हैं, जिसके लिए अमेरिका सर्वोपरि है और जो जोखिम से निरंतर कतराता रहा है। इसीलिए उन्हें ‘भेड़ की खाल में भेड़’ कहा।

शेखर गुप्ता
(लेखक एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’ हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here