अन्नदाता का सम्मान जरूरी

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आज जब भारत कोविड-19 संक्रमण के अभूतपूर्व प्रकोप से जूझ रहा है, तब अदय साहस के साथ इस आपदा का सामना कर रहे हमारे अनजान योद्धाओं, हमारे किसानों का भी हम अभिनंदन करें। इस महामारी का मुकाबला करने में उनका सहयोग भी उतना ही अभिनंदनीय है जितना कि अग्रिम पंक्ति के हमारे अन्य योद्धाओं जैसे डॉटर, स्वास्थ्य, सुरक्षा और स्वच्छता कर्मी का। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत के किसानों ने सदैव जनता के हितों के लिए तथा हमारी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रखने में बढ़-चढ़ कर अग्रिम पंक्ति के योद्धा की भूमिका निभाई है। कोविड-19 के संक्रमण से पैदा चुनौतियों के बावजूद उन्होंने साहस पूर्वक अपना कर्तव्य निभाया है और इस वर्ष 29.195 करोड़ टन खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन किया है। और यह सब तब संभव हुआ है, जबकि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य संगठन ने महामारी के कारण और संरक्षणवादी नीतियों की वजह से खाद्यान्न की विश्वव्यापी कमी होने की आशंका जताई थी। जैसे-जैसे विश्व शहरीकरण को ओर बढ़ रहा है, देश की बढ़ती आबादी की जरूरतों के लिए घरेलू खाद्य सुरक्षा पर ध्यान देना आवश्यक हो गया है। कृषि आज भी भारत की 60 प्रतिशत जनसंख्या की जीविका का मुय स्रोत है।

हर क्षेत्र की भांति कृषि क्षेत्र भी महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। खुद की चिंता किए बगैर देश के किसान ने न सिर्फ खेत में श्रम किया है बल्कि धान और खरीफ की अन्य फसलों की बुआई में वृद्धि भी की है। दलहन और तिलहन की बुआई का क्षेत्र भी विस्तृत हुआ है। पूर्ण बंदी से कृषि संबंधी कार्यों को मुक्त रखने के कारण फसलों की कटाई का काम तथा आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति भी युद्ध स्तर पर निर्बाध रूप से चल रही है। कुछ और कदम, जैसे राज्यों के बीच और राज्य में ही कृषि उपकरणों का निर्बाध आवागमन, पीएम किसान योजना के तहत किसानों को 2000 रुपये की पहली किस्त का भुगतान, मनरेगा के तहत दैनिक पारिश्रमिक को 182 से बढ़ा कर 202 रुपये किया जाना तथा सावधि कृषि ऋणों को लौटाने पर तीन महीने की राहत, ये कदम कुछ हद तक किसानों की हिमत जरूर बढ़ाएंगे। यह भी जरूरी है कि मजदूरों के अलावा सीमांत और छोटे किसानों को भी मनरेगा में शामिल किया जाए। सभी हितधारकों का साझा प्रयास होना चाहिए कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त किया जाए और कृषि को लाभकारी बनाया जाए।

मैं कृषि में संरचनात्मक बदलाव का पक्षधर रहा हूं ताकि इसे विषम परिस्थितियों में भी स्थायित्व प्रदान किया जा सके और अधिक लाभकारी बनाया जा सके। चार आई- इरिगेशन ( सिंचाई), इंफ्रास्ट्रक्चर, इन्वेस्टमेंट (निवेश), और इंश्योरेंस (बीमा) को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है ताकि कृषि का संपूर्ण विकास हो सके। किसानों की सहकारी संस्थाएं छोटे किसानों के छोटे और बिखरे खेतों को एकत्र कर, आधुनिक तकनीक की मदद से सघन खेती की दिशा में कारगर सिद्ध हो सकती हैं। किसानों को मुर्गी पालन, डेयरी, मत्स्य पालन, रेशम कीट पालन, मधुमख्खी पालन, फूल और सब्जी उत्पादन जैसे कृषि संबंधी उद्यमों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए व्यापक संभावनाएं हैं। कृषकों और वैज्ञानिकों के बीच निरंतर संवाद रहना चाहिए जिससे कृषि को लाभकारी, पोषक तत्वों से युक्त और मौसम की अनिश्चितता से निरापद किया का सके। इसमें कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। सामाजिक वानिकी किसानों की आय बढ़ाने का एक कारगर तरीका हो सकती है। यह पर्यावरणीय संतुलन को बहाल करेगी, मृदा क्षरण को रोकेगी और आय के वैकल्पिक साधन भी सुनिश्चित करेगी।

कृषकों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए, अल्पकालीन और दीर्घकालीन दोनों उपायों की आवश्यकता है। अन्य उपायों के अलावा, कृषि उत्पादों के देशव्यापी निर्बाध आवागमन को सुनिश्चित किया जाना चाहिए तथा व्यापक फसल बीमा योजना बनाई जानी चाहिए और उसे प्रभावी रूप से लागू भी किया जाना चाहिए। ई मार्केटिंग को प्रोत्साहित करने के अलावा कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं तथा रेफ्रिजरेटेड वाहनों से किसानों को बड़ी सहायता मिलेगी। चौबीस घंटे की निर्बाध विद्युत आपूर्ति और समय से सस्ता ऋण भी कृषि को फायदे का उद्यम बनाने के लिए आवश्यक हैं। इन उपायों को लागू करने से कृषि से बौद्धिक निर्वासन रोका जा सकता है तथा युवा भी कृषि को फायदे का व्यवसाय बनाने के लिए आकर्षित होंगे। मैं ग्रामीण भारत को कृषि संबंधी गतिविधियों की गहमागहमी से पूर्ण देखने की अपेक्षा रखता हूं। किसानों को समान और कृषि को लाभप्रद मूल्य तभी मिल पाएगा। महामारी के इस दौर में विश्व आशा के साथ भारत की ओर देख रहा है। हमें इस अवसर का लाभ उठाना है। कृषि को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे न केवल हमारी आत्मनिर्भरता सुदृढ़ होगी बल्कि हम अन्य देशों को भी खाद्यान्न निर्यात कर सकेंगे
और भारतीय अर्थव्यव्स्था को और शक्ति प्रदान कर सकेंगे।

एम वेंकैया नायडू
(लेखक भारत के उप राष्ट्रपति हैं)

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