अध्यादेश लाओ-देश सेना के सुपुर्द करो !

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध है रिएलिटी समझे। न उनके स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, न केबिनेट सचिव और न मंत्रियों के समूह में विश्वास जताया गया कि कोरोना वायरस की महामारी को रोकना संभव है। ईश्वर करें कि मैं बुरी तरह गलत साबित होऊं, लेकिन मैं फरवरी से वैश्विक हालात समझते हुए दस फरवरी से भारत की लापरवाही पर जो लिखता आया हूं, उसका दिल्ली, एनसीआर, गुडगांव, नोएड़ा में हो रहे चिकित्सकीय प्रबंधन में जुड़े हुए व्यक्ति की जुबानी कल जो मैंने जाना उससे बुरी तरह हिला हूं। जान ले कोरोना वायरस से रामभरोसे लड़ा जा रहा है। वैसे ही उसी तरह, उसकी अंदाज में कि आर्थिकी ठिक तो है। जान ले कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख बार-बार जो टेस्ट व ट्रेस करने की जो हिदायत दे रहे है उसके प्रति भारत या तो लापरवाह है या नगण्य टेस्टीग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख को आज भी मैंने यह बोलते हुए सुना है कि यह न सोचो कि महामारी नहीं आएगी। वह आएगी इसलिए टेस्ट और ट्रेसिंग पहली बेसिक जरूरत है जिस पर सघनता से फोकस हो। ध्यान रहे अमेरिका में डोनाल्ड़ ट्रंप ने टेस्टिंग किट की जरूरत में, ईलाज के साधनों की जरूरत में विशेष कानून बना कर हथियार बनाने वाली अमेरिकी फैक्ट्रीयों में टेस्टींग किट, दस्ताने, पौशाक आदि बनवाने का निर्देश दिया है।

नौसेना के जहाजों को पूर्व और पश्चिमी समुद्री तटों के पास समुद्र में बतौर अस्पताल बना तैनात कर दिया गया है ताकि न्यूयार्क जैसे शहरों में महामारी संक्रमण के चौथे दौर में पहुंची तो मरीजों को समुद्र में तैनात जहाजों के अस्पतालों में रखा जा सकेगा। क्या भारत में ऐसा प्रबंध हुआ या हो रहा है? सोचा भी जा रहा है? यदि दिल्ली और एनसीआर की सवा चार करोड़ आबादी में कोरोना वायरस की स्टेज चार आ गई तो क्या चालीस हजार बैड भी अस्पतालों में होंगे? ऐसे ही मुंबई, केरल, बेंगलूरू, चैन्नई सब तरफ संकट होना है। तभी मैंने पहले भी लिखा था कि तमाम प्राइवेट अस्पताओं, चिकित्सा सुविधाओं को सरकार अपने कब्जे में ले। क्यों चिकित्सा सेवा राज्यों का विषय है मगर केंद्र सरकार को विशेष प्रावधान, इमरजेंसी, अध्यादेश के जरिए तमाम प्राइवेट अस्पताओं को जिला डीएम के प्रशासन में छह महिनें के लिए कर देना चाहिए। डीएम हर जिले, हर शहर में अस्पताओं को कोरोना के ईलाज के लिए मार्क करें और सरकार सभी अस्पताओं को वैसे ही चलाएं जैसे अपने अस्पताल चला रही है। प्राईवेट प्रेक्टीस बंद कर दी जाए। अस्पताल मालिकों, प्रबंधन, डाक्टर, स्टाफ सभी जिले के सीएमओ-डीएम के कहे अनुसार केवल और केवल बीमारी विशेष की जरूरत के अनुसार काम करें। पर यह काम डीएम, सीएमओ से भी नहीं हो सकेगा।

क्यों? मैं एक हकीकत बताता हूं। एनसीआर क्षेत्र के एक जिले के डीएम ने तमाम अस्पताल मालिकों को बुलाकर मीटिंग की। कहा गया कि फलां- फलां अस्पताल इतने-इतने बिस्तर कोरोना के लिए रिजर्व करें। लेकिन प्राइवेट अस्पताल तैयार नहीं हुए। इसलिए क्योंकि सबको चिंता है कि अस्पताल में ज्योंही कोरोना मरीज होने की बात फैलेगी बाकि ईलाज करा रहे मरीज भाग जाएगें! नतीजतन मालिकों ने बहाने बनाए। अपने चलते, प्रमुख अस्पतालों की जगह शहर में दूर के, खाली पड़े या किसी और बड़े खाली पड़े हुए, कबाड़- बिना सुविधाओं के अस्पताल कोरोना के लिए मुकरर्र हो रहे है। मतलब नामी अस्पतालों में कोरोना ईलाज नहीं होगा। दिल्ली-एनसीआर के सारे बड़े प्राइवेट अस्पताल किसी न किसी बहाने कोरोना के लिए तय होने से बचने का जुगाड़ बैठाए हुए है। कोरोना के नाम से इतनी घबराहट, पैनिक है कि कोरोना के सदिग्ध मरीज को एंबुलेश से ले जाने में ड्राइवर और हेल्पर भी भाग खड़े होते है। जिस अस्पताल को मुकर्रर किया गया है वहा टेस्टीग की किट नहीं है। टेस्ट का खर्चा कोई 2100 रूकापड़ता है लेकिन राज्य सरकार 100- 200 रू देने की बात कर रही है। फिर सबसे बडी बात मुकर्रर अस्पतालों को टेस्ट किट पर्याप्त संख्या में मुहैया ही नहीं है।

जहा मरीज रखे जा रहे है वहा मरीज की सेवा के लिए स्टाफ को जो एहतियाती अपनी सुरक्षा सामान चाहिए वह उपलब्ध कैसे हो और उसका खर्चा कैसे पूरा होगा यह साफ नहीं है। तभी मीटिंग हो रही है, बातें हो रही है लेकिन जमीन पर, अस्पताल, वहां बिस्तर, स्टाफ की तत्परता के तमाम पहलूओं सब भगवान मालिक है। इसलिए अपना मानना है कि कोरोना वायरस दूसरी स्टेज से तीसरी में पहुंचा व चौथी तक गया तो भारत दुनिया में कहीं अपने आपको जानवरों का अराजक बाड़ा साबित नहीं कर दे। इसलिए तत्काल जरूरी है कि कोरोना वायरस के ईलाज का प्रबंधन सेना के सुपुर्द कर दिया जाए। सेना की मेडिकल विंग और सेनाधिकारी डीएम- सीएमओ के साथ सरकारी-प्राइवेट अस्पतालों को पूरी तरह सुपरवाइज करें। ध्यान रहे सरकार ने विदेश से आए कोरोना प्रभावित भारतीयों को सुरक्षा बलों की निगरानी में संक्रमणरहित बनाने की एप्रोच बनाई है। वह चरण पहला याकि भारत में कोरोना वायरस के पहुंचने का था। अगला तो कम्युनिटी से फैलने का है। संदेंह न रखा जाए कि भारत में महामारी का अगला चरण, फिर उसका अगला चरण नहीं आएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी दिनोंदिन दो टूक होती जा रही है। भारत की तैयारी सेना के बूते ही संभव है।

सेना ही विदेश से टेस्ट किट व सामान फटाफट आयात करवाया जाए। सेना की फैक्ट्रीया एंबुलेश से लेकर तमाम जरूरी सामान उपलब्ध कराए। हर तहसील में टेस्टींग सेंटर खुद खोले। जान ले यदि सेना के जरिए प्राइवेट अस्पतालों, निजी चिकित्सा क्षेत्र को कंट्रोल में नहीं लिया गया तो इसके चलते महामारी और भयावह बनेगी। निजी अस्पताल कोरोना संदिग्ध को भगाएगें, घूमने-भटकने देंगे। अपने अस्पताल में बिस्तर नहीं देंगे। डाक्टर कोरोना के मरीज को देख या तो भागेंगे या मरीजों को लुटेगे। मैं फिर लिख रहा हूं कि ईश्वर करें मैं बुरी तरह गलत साबित हो। लेकिन मैंने तैयारियों में जुड़े एक नामी चिकित्सक और उसके अस्पताल के अनुभव से जो जाना-समझा है वह बहुत डरा देने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, हर्षवर्धन, केबिनेट सचिव या मंत्री समूह यदि ईमानदारी से विचार करें तो सोचेंगे कि सवा चार करोड लोगों के दिल्ली-एनसीआर का जिस दिन लॉकडाउन होगा या कुकुरमुो की तरह देश के सभी कोनों में पहले-दूसरे चरण की शुरूआत के पंद्रह-बीस दिन बाद जब लॉकडाउन शुरू होगा तब कहां अस्पताल होंगे और कैसे ईलाज होगा?इसलिए इधर-उधर की बातों, लोगों को नसीहत व सलाह देने के बजाय भारत सरकार को तुरंत तमाम चिकित्सा सेवा को सेना के सुपुर्द करा तीसरे – चौथे चरण के महामारी रूप के लिए प्रबंधन शुरू कर देने चाहिए।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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