भारत के कुछ हिंदू और मुस्लिम नेता दोनों संप्रदायों की राजनीति जमकर कर रहे हैं लेकिन देश के ज्यादातर हिंदू और मुसलमानों का रवैया क्या है ? अदभुत है। उसकी मिसाल दुनिया में कहीं और मिलना मुश्किल है। कुछ दिन पहले मैंने तीन लेख लिखे थे। एक में बताया गया था कि वाराणसी में संस्कृत के मुसलमान प्रोफेसर के पिता गायक हैं और वे हिंदू मंदिरों में जाकर अपने भजनों से लोगों को विभोर कर देते हैं। दूसरे लेख में मैंने बताया था कि उप्र के एक गांव में एक मुस्लिम परिवार के बेटे ने अपने पिता के एक हिंदू दोस्त की अपने घर में रखकर खूब सेवा की और उनके निधन पर उनके पुत्र की तरह उनके अंतिम संस्कार की सारी हिंदू रस्में अदा कीं।
तीसरे लेख में आपने पढ़ा होगा कि कर्नाटक के एक लिंगायत मठ में एक मुस्लिम मठाधीश को नियुक्त किया गया है लेकिन अब सुनिए नई कहानी। ग्रेटर नोएडा के रिठौड़ी गांव में एक भव्य मस्जिद बन रही है। उसकी नींव गांव के हिंदुओं ने छह माह पहले रखी थी। इस गांव में बसनेवाले हर हिंदू परिवार ने अपनी-अपनी श्रद्धा और हैसियत के हिसाब से मस्जिद के लिए दान दिया है। पांच हजार लोगों के इस गांव में लगभग डेढ़ हजार मुसलमान रहते हैं।
ये लोग एक-दूसरे के त्यौहार मिल-जुलकर मनाते हैं। एक-दूसरे से मिलने पर हिंदुओं को सलाम कहने में और मुसलमानों को राम-राम कहने में कोई संकोच नहीं होता। इस गांव में कभी कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं हुआ। सभी लोग एक बड़े परिवार की तरह रहते हैं, जबकि दोनों की पूजा, भोजन, पहनावे और तीज-त्यौहारों में काफी भिन्नता है। क्या हम 21 वीं सदी में ऐसे ही भारत का उदय होते हुए नहीं देखना चाहते हैं ? मैं तो चाहता हूं कि यही संस्कृति पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और मालदीव में भी पनपे। इस रिठौड़ी गांव में इस महाशिवरात्रि पर एक नए मंदिर की नींव भी रखी गई। गांव के मुसलमानों ने उत्साहपूर्वक इसमें हाथ बंटाया। यदि ईश्वर एक है तो फिर मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे में एका क्यों नहीं है ? पूजा-पद्धतियों और पूजागृहों में जो यह फर्क है, यह देश और काल की विविधता के कारण है। यह फर्क मनुष्यकृत है, ईश्वरकृत नहीं। इस सत्य को यदि दुनिया के सारे ईश्वरभक्तों ने समझ लिया होता तो यह दुनिया अब तक स्वर्ग बन जाती।
डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)