समाज की नई विकृति पर कब होगी चिंता ?

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महिला प्रताड़ना से संबंधित दो मामले सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बने, जोकि दो कारणों से चर्चा में रहे। पहला- दोनों ही मामलों में आरोप गेश के चर्चित व्यक्तियों पर लगा। दूसरा-जांच के बाद या फिर अबतक के घटनाओं के आधार पर अब शिकायतकर्ताओं को संदेह की नजर से देखा जा रहा है।

हाल में महिला प्रताड़ना से संबंधित दो मामले सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बने, जोकि दो कारणों से चर्चा में रहे। पहला- दोनों ही मामलों में आरोप देश के चर्चित व्यक्तियों पर लगा। दूसरा- जांच के बाद या फिर अबतक के घटनाक्रमों के आधार पर अब शिकायतकर्ताओं को संदेह की नजर से देखा जा रहा है। न्याय और उपयोगिता- प्रत्येक कानून की कसौटी का मुगय आधार होता है। इनका मुगय उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों में सुरक्षा की भावना पैदा करने, कालबाह्य प्रथाओं-परंपराओं से मुक्ति देने, दीर्घकालीक अन्याय के परिमार्जन और उनके खिलाफ होने वाले किसी अपराध को रोकने से जुड़ा होता है। किंतु जब उन्ही कानूनों का दुरुपयोग अपनी महत्वकांशा, लालच, प्रतिशोध और किसी निजी स्वार्थ के लिए किया जाने लगे, तो वह समाज में विकृत रूप धारण कर लेता है।

यह हाल के कुछ मामलों ने रेखांकित भी कर दिया है। विगत दिनों देश के मुगय न्यायाधीश रंजन गोगोई पर उनकी पूर्व महिला सहयोगी ने यौन-उत्पीडऩ का आरोप लगा दिया। आरोप है कि जब वह प्रधान न्यायाधीश के आवास स्थित कार्यालय में तैनात थी, तब उस समय उन्होंने उसके साथ अमर्यादित व्यवहार किया। भले ही सर्वोच्च न्यायालय की आतंरिक जांच में मुगय न्यायाधीश को क्लीन चिट मिल चुकी है, किंतु महिला संगठनों का एक ‘विशेष’ वर्ग इसका विरोध अब भी कर रहा है। इस मामले के संदेहास्पद होने के कई कारण सामने आए है। बकौल मीडिया रिपोर्ट्स, शिकायतकर्ता महिला को गत वर्ष दिसंबर में मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय का दुरुपयोग करने और उसका अनुचित लाभ कमाने की शिकायतों के कारण नौकरी से हटा दिया गया था। उसपर आरोप था कि उसने बाहरी लोगों से गुप्त सूचनाएं साझा की थी। संभवत: यह उसका प्रतिकार हो।

इसके अतिरिक्त ,मामले में जिस प्रकार किसी भी सुनवाई से पहले देश के कई न्यायाधीशों को 20 पन्नों का हलफ नामा भेज गया, उसने भी मामले को संदिग्ध बनाते हुए इसके पीछे की बड़ी साजिश का संकेत दे दिया। यही नहीं, पूरे घटनाक्र म में शिकायतकर्ता महिला को ऐसे चार डिजिटल मीडिया समूह का सहयोग मिल गया, जो संयुक्त रूप से वर्तमान भारतीय नेतृत्व का विरोधी है और समान वैचारिक-राजनीतिक अधिष्ठान का प्रतिनिधित्व भी करते है। विडंबना है कि मुखय न्यायाधीश या न्यायिक व्यवस्था को कलंकित करने और देश विरोधी एजेंडे के लिए षडय़ंत्रकारी उन कानूनों का दुरू पयोग करने का प्रयास कर रहे है, जो महिला सुरक्षा से संबंधित है और जिसका जन्म कई आंदोलनों और बलिदान के गर्भ से हुआ है। समाज में पनपती इस विकृति को टी.वी. अभिनेता और गायक करण ओबरॉय से जुड़े घटनाक्रम ने और भी पुष्ट कर दिया है।

मुंबई के ओशिवारा थाने में शिकायतकर्ता महिला द्वारा दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, ‘अह्वटूबर 2016 में एक डेटिंग ऐप्लिकेशन के माध्यम से दोनों की भेंट हुई थी। इसके बाद दोनों दोस्त बन गए। एक दिन करण ने उसे अपने घर मिलने बुलाया। जहां करण ने उनसे शादी का वादा किया और नारियल पानी में नशीला पदार्थ मिलाकर उसे पिला दिया। इसके बाद करण ने उसका बलात्कार किया और वीडियो भी बनाया। अब करण के बचाव में उसके मित्रों, परिजनों और सहयोगियों ने जो पक्ष रखा है, उसने पूरे मामले को नया ही कोण दे दिया। यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि आरोपी का बचाव करने वालों में पूर्व अभिनेत्री, स्तंभकार और महिला अधिकारों की बात करने वाली पूजा बेदी भी शामिल है। प्रेसवार्ता में बेदी ने दावा किया कि 13 जनवरी 2017 को उस महिला ने करण को एस.एम.एस. के माध्यम से शारीरिक संबंध बनाने का प्रस्ताव भेजा था, जिसमें लिखा था- ‘करण, मैं ओपन और अपफ्रंट हूं।

क्या हम फ्यूचर, इमोशंस और किसी और चीज के बारे में सोचे बिना सेक्स कर सकते हैं, क्योंकि मेरी बॉडी को फिलहाल इसकी जरूरत है और मैं किसी और के साथ कम्पर्टेबल नहीं। मुझे बताएं कि इसके बारे में आपकी क्या राय है। अब शिकायतकर्ता महिला और करण में कौन सच्चा है और कौन झूठा- यह निकट भविष्य में तय होगा। किंतु इस प्रकार के घटनाक्रम से उन महिलाओं का पक्ष अवश्य कमजोर होगा या यूं कहे हो भी रहा है, जो वास्तविक पीडि़ता है या प्रतिदिन कामुक और चरित्रहीन पुरुषों का किसी कंपनी, निजी कार्यालय, मॉल, सरकारी दफ्तर या फिर किसी भी निजी आवास में सामना और उसका प्रतिकार करती है। हाल के वर्षों में देश के भीतर ऐसे कई मामले सामने आए है, जिसमें महिलाओं/युवतियों द्वारा पुरुषों पर शादी का झांसा देकर बलात्कार का आरोप लगाया गया है। इस पृष्ठभूमि में वर्ष 2017 में बॉम्बे उच्च न्यायालय की ऐसे ही एक मामले में की गई टिप्पणी महत्वपूर्ण है, जिसमें न्यायाधीश मृदुला भटकर ने कहा था- ‘समाज बदल रहा है।

बलबीर पुंज
(लेखक भाजपा से जुड़े हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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