श्रीगणेश चतुर्थी व्रत से होगी सुख सौभागय में अभिवृद्धि

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श्री गणेश
भगवान श्री गणेश

भारतीय संस्कृति में हिन्दू मान्यता के अनुसार सर्वविघ्नविनाशक अनन्तगुण विभूषित प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अपरम्पार है। भगवान् श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना से जीवन में सुख-समृद्धि व सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है। मास के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेशजी को अतिप्रिय है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक माह के शुक्लपक्ष में चतुर्थी तिथि के दिन गौरीनन्दन श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करना विशेष फलदायी होता है। शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को किए जाने वाला व्रत वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी या विनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष में श्रीगणेश जी को केतुग्रह का देवता माना गया है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि श्रावण मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि सोमवार, 1 अगस्त को पढ़ रही है। श्रावण मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि रविवार, 31 जुलाई को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 4 बजकर 19 मिनट पर लगेगी जो कि सोमवार, 1 अगस्त को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 5 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। मध्याह व्यापिनी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत सोमवार, 1 अगस्त को रखा जाएगा। इसके साथ ही श्रीगणेश भक्त श्रीगणेशजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके पुण्यलाभ अर्जित करेंगे। श्रावण मास में श्रीगणेश जी की पूजा-अर्चना के साथ ही श्री शिवजी की भी पूजा अर्चना विशेष फलदायी रहेगी।

श्री गणेश

श्रीगणेश जी की पूजा का विधान – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में व्रतकर्ता को समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के पश्चात् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए श्रीगणेशजी का पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा- अर्चना पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मौदक अति प्रिय है, जिनसे श्रीगणेश जी शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। श्रीगणेश का श्रृंगार करके उन्हें दूर्वा एवं दुर्वा की माला, मोदक (लड्डू), अन्य मिष्ठान्न, ऋतुफल आदि अर्पित करने चाहिए। धूप-दीप, नैवेद्य के साथ की गई पूजा शीघ्र फलित होती है।

करें मनोरथ की पूर्ति के लिए पाठ विशेष – अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए श्रीगणेशजी की महिमा में यशगान के रूप में श्रीगणेश स्तुति, संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित अन्य स्तोत्र आदि का पाठ अवश्य करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेशजी से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना लाभकारी रहता है। ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का प्रातः काल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का शमन होता है, यदि विधि-विधानपूर्वक एक हजार पाठ किए जाएं तो मनोरथ की पूर्ति के साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को भी प्राप्ति होती है।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि जिन व्यक्तियों को जन्मकुण्डली के अनुसार केतु ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तरदशा में अनुकूल फल न मिल रहा हो तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सर्वविघ्न विनाशक प्रथम पून्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाना चाहिए श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला पुरुष तथा विद्यार्थियों के लिए समानरूप से फलदायी है। जिन्हें जन्मकुण्डली के अनुसार ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा प्रत्यन्तदेशा चल रही हो, उन्हें वरद वैनायकी ओगणोश चतुर्थी का व्रत रखकर श्रीगणेशजी की पूजा अर्चना अवश्य करनी चाहिए। श्रीगणेश पुराण के अनुसार श्रद्धा, आस्था, विश्वास के साथ की गई पूजा-अर्चना से जीवन में सुख, समृद्धि, खुशहाली का सुयोग बनता है।

ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन

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