स्वामी विवेकान्द के गुरु रामकृष्ण परमहंस के जीवन के कई ऐसे प्रसंग हैं, जो सुखी और सफल जीवन के सूत्र बताते हैं। अगर इस सूत्रों को अपना लिया जाए या जीवन में उतार लिया जाए तो हम कई बाधाओं से बच सकते हैं। यहां जानिए एक ऐसा प्रसंग, जिसमें ये बताया गया है कि कोई व्यक्ति कब भक्ति नहीं कर पाता है…
चर्चित प्रसंग के अनुसार रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य ने पूछा कि इंसान के मन में सांसारिक चीजों को पाने की ओर इच्छाओं को लेकर व्याकुलता रहती है। व्यक्ति इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए लगातार कोशिश करता है। ऐसी व्याकुलता भगवान को पाने की, भक्ति करने की क्यों नहीं होती है?
परमहंसजी ने जवाब दिया कि सांसरिक वस्तुएं भोग हैं और जब तक भोग का अंत नहीं होगा, तब तक व्यक्ति भगवान की ओर मन नहीं लगा पाएगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि कोई बच्चा खिलौने से खलने में व्यस्त रहता है और अपनी मां को याद नहीं करता है। जब उसका मन खिलौने से भर जाता है या उसका खेल खत्म हो जाता है, तब उसे मां की याद आती है। यही स्थिति हमारे साथ भी है।
जब तक हमारा मन सांसारिक वस्तुओं और कामनाओं के खिलौनों में उलझा रहेगा, तब तक हमें भीअपनी मां यानी परमात्मा का ध्यान नहीं आएगा। भगवान को पाने के लिए, भक्ति के लिए हमें भोग-विलास से दूरी बनानी पड़ेगी, तभी हम भगवान की ओर ध्यान दे पायेंगे।