वाशिंगटन में मोदी उपलब्धियां कम नहीं रही, दुश्मनों को जवाब

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के दौरान चार प्रमुख घटनाएं हुई हैं। संयुक्तराष्ट्रमहासभा में भी उनका भाषण जोरदार रहा। सबसे पहले उन्हें मेरी बधाई कि उन्होंने अपना भाषण हिंदी में दिए। वाशिंगटन में वे पहले अमेरिका की पाँच बड़ी तकनीकी कंपनियों के मुख्यकर्ता-धर्ताओं से मिले। चीन से मोहभंग होने के बाद भारत ही उनका आश्रय-स्थल बनेगा, यह अब निश्चित है। उनके भारत-आगमन से तकनीकी क्षेत्र में भारत के चीन से भी आगे निकलने की संभावनाएँ बढ़ जाएँगी। मोदी की इस यात्रा में वे चौगुटे याने ‘क्वाड’ के नेताओं से व्यतिगत मिले। चौगुटे की संयुक्त बैठक में भी उसके असामरिक और खुले होने पर जोर दिया गया।

मोदी की इस यात्रा में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और उप-राष्ट्रपति से जो व्यतिगत भेंट हुई है, वह अपने आप में असाधारण है। भारत- अमेरिकी संबंधों में यह पहला अवसर है कि जबकि अमेरिका के दो सर्वोच्च पदों पर आसीन नेताओं का भारत से सीधा संबंध रहा है। मोदी अपने साथ भारत में पैदा हुए पांच बाइडनों के परिचय-पत्र ले गए थे। बाइडन जब स्वयं कुछ वर्ष पहले भारत आए थे, तब उन्होंने मुंबई में बाइडन परिवारों की खोज की थी और कमला हैरिस तो भारतीय मूल की हैं ही। बाइडन ने भारत-अमेरिकी सहयोग पर इस तरह बल दिया, जैसे अपने किसी गठबंधन के देश के लिए दिया जाता है। अफगानिस्तान पर भी दो-टूक रवैया दोनों पक्षों ने अपनाया।

जो कमला हैरिस पहले कश्मीर और पड़ौसी शरणार्थियों के कानून को लेकर भारत पर बरसती रहती थीं, उन्होंने इन मुद्दों को उठाया ही नहीं। भारत की दृष्टि से जो चौथी घटना इस दौरान हुई, वह है पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की स.रा. महासभा में भाषण। उनका भाषण लगभग पूरी तरह भारत-विरोध पर केंद्रित रहा। उन्होंने कश्मीर का मुद्दा भी जमकर उठाया। लेकिन उन्होंने बेनजीर भुट्टो की तरह संयुक्तराष्ट्रका 1948 का कश्मीर प्रस्ताव शायद पढ़ा तक नहीं है। प्रधानमंत्री बेनजीर से मैंने अपनी पहली भेंट में ही कहा था कि अपनी पिछली न्यूयार्क-यात्रा के दौरान कहा था कि पाकिस्तान में हजारों आतंकवादी सक्रिय हैं। तालिबान को मान्यता देने की वकालत के पहले वे यदि आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान में जिहाद छेड़ देते तो सारी दुनिया उनकी बात पर आसानी से भरोसा करती।

डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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