वहां की चंपा-चमेली, यहां खिली

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‘आज पानी गिर रहा है, बहुत पानी गिर रहा है!’ आज अगर भवानीप्रसाद मिश्र होते, तो उन्हें इस रिमझिम बारिश में अपनी कविता की ये पंक्ति यां गुनगुनाते हुए घर की याद आ रही होती। यूं इस बारिश में गांव-घर की याद तो हमें भी भिगो रही है। बालकनी के गमले में खिली चंपा-चमेली के शुभ्र फूल भी खूब भीग रहे हैं। हमारी तरह चंपा भी बारिश का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। मार्च से अप्रैल तक उस पर पहली बहार आई थी और उसके बाद दूसरी बहार के लिए उसे बारिश का इंतजार था। सोचता हूं, कहां की चंपा-चमेली और कहां आ र खिल रही हैं। हम दोनों के पैरों तले जमीन नहीं है। मैं महानगर की इस ऊंची इमारत की दूसरी मंजिल में सीमेंट के फर्श पर खड़ा हूं और चंपा-चमेली बालकनी के गमलों में उगी हैं। जमीन तो दो मंजिल नीचे भूतल पर छूट गई है।

मैं दिन में नीचे उतर कर जमीन पर हो आता हूं, ताकि जमीन से मेरी जड़ें जुड़ी रहें और चंपा को गमले की माटी में जमीन के एक छोटे से टुकड़े का अहसास होता है। इस महानगर में बालकनी से ही हम दोनों को आसमान का हमारे हिस्से का टुकड़ा दिखाई देता है। उसी टुकड़े से आगे बढ़ता हुआ सूरज हमें अपनी धूप दे जाता है। मैं रोजी-रोटी की तलाश में दूर पहाड़ों से यहां पहुंचा और ये चंपा-चमेली सुदूर मध्य और दक्षिणी अमेरिका से। वनस्पति विज्ञानी बताते हैं कि इनका जन्म वहीं हुआ। कभी परदेश से यहां आकर इन्होंने हमारे देश को ही अपना घर मान लिया है। जिस पौधे में सिर्फ सफेद फूल खिले हैं, वह चंपा है और जिसके सफेद फूलों के बीच में पीला रंग भी है, वह है चमेली। चंपा को लोग पगोडा ट्री और चमेली को टेंपल ट्री भी कहते हैं। पगोडाओं, बौद्ध विहारों और मंदिरों में चंपा-चमेली के गाछ लगाने की परंपरा रही है।

कई देशों में इनके फूल पवित्र माने जाते हैं और देवी-देवताओं को चढ़ाए जाते हैं। पवित्रता के साथ-साथ इन्हें शांति का प्रतीक भी माना जाता है, इसलिए विदा हो गई आत्माओं की शांति के लिए इन्हें कब्रगाहों में भी लगाया जाता है। चंपा-चमेली के फूल केवल सफेद ही नहीं होते, बल्कि लाल, गुलाबी, पीले और बहुरंगी भी होते हैं। इसीलिए हर देश में चंपा-चमेली कुछ अलग रंग-रूप में दिख सकती हैं। मारीशस और बाली द्वीप में ऐसे ही कुछ चंपा-चमेली के पौधों से मेरी दोस्ती हो गई थी। बाली द्वीप की तो पूरी संस्कृति में चंपा-चमेली बसी हुई हैं। वहां के डेनपासर हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही हमारा स्वागत चंपा के फूलों की माला पहना कर किया गया। वहां चंपा-चमेली को जपुन कहते हैं। यहां हमारे देश में इसे बंगला में इसे चंपा या कठचंपा, मराठी में चाफा, गुजराती में चंपो और मलयालम में चंपकम कहते हैं। यूं तमाम देशों में आम तौर पर चंपा-चमेली को लोग फ्रैंजीपानी कहते हैं। लेकिन फ्रैंजीपानी क्यों? क्योंकि जब लोगों ने इसके फूलों की सम्मोहित कर देने वाली सुगंध सूंघी, तो उनकी समझ में नहीं आया कि इस भीनी-भीनी, सम्मोहक सुगंध को क्या नाम दें।

इटली में कभी महिलाएं हाथों में जो दस्ताने पहनती थीं और उन पर जो खास तरह की खुशबू लगाती थीं, कुछ वैसी ही खुशबू आ रही थी चंपा के फूलों से। दस्तानों पर लगाने वाली उस नकली खुशबू का आविष्कार सोलहवीं सदी में इटली के मारकुस फै्रंजीपानी ने किया था। मगर वनस्पति विज्ञानियों की भाषा में तो यह प्लूमेरिया कहलाता है। इसका यह नाम प्रसिद्ध फ्रांसीसी वनस्पति विज्ञानी चार्ल्स प्लूमियर के नाम पर रखा गया। सत्रहवीं शताब्दी में फ्रांस के राजा लुई चैदहवें की इच्छा थी कि उसके पास इटली से भी अच्छा पेड़-पौधों का बाग और संग्रह हो। इसीलिए उसने प्रशांत महासागर में कैरेबियाई द्वीप समूह की ओर एक अभियान भेजा, ताकि वहां से अनजाने, नायाब पौधे लाए जा सकें जो फ्रांस में उसके बाग की शोभा बढ़ाएं। उस अभियान में चार्ल्स प्लूमियर भी शामिल था। वहां से हजारों पौधों और जीव-जंतुओं के नमूने लाए गए। प्लूमेरिया चंपा-चमेली के पूरे वंश का नाम है। किसी भी पौधे के वानस्पतिक नाम में दो शब्द होते हैं।

पहला वंश और दूसरा उसकी प्रजाति। इसीलिए जब प्लूमेरिया एक्यूटीफोलिया कहते हैं, तो इसका मतलब होता है प्लूमेरिया वंश की वह प्रजाति, जिसकी पत्तियां नुकीली होती हैं। मजेदार बात यह है कि प्लूमेरिया की हर प्रजाति की पत्तियों की बनावट और फूलों का रूप-रंग अलग होता है। दुनिया में इसकी करीब 20 प्रमाणित प्रजातियां हैं, लेकिन आपस में ब्याह रचा कर इनकी तमाम संकर किस्में भी तैयार कर ली गई हैं। दुनिया भर में कवियों ने चंपा-चमेली पर खूब कविताएं लिखी हैं। एक दोहा तो महाकवि बिहारी भी लिख गए हैं कि नाक की लौंग को चंपा की कली समझ कर भौंरा उस पर मंडरा रहा है। जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ का इस ओर ध्यान गया, तो उन्होंने लिखा-चंपा के फूलों पर तो कीट-पतंगे आते ही नहीं! सच यह है कि इसके फूलों में मकरंद नहीं होता और शायद अनुभवी कीटों को यह रहस्य मालूम है! लेकिन, सच यह भी है कि इसकी सम्मोहक खुशबू से खिंच कर देर शाम और रात को कुछ कीट आकर इसके फूलों पर जरूर मंडराते हैं। पंखुडिय़ों की नली में थोड़ा नीचे बैठे वर-वधू का ब्याह भी लंबी सूंड वाले कीट ही रचाते हैं। इस रिमझिम बारिश में अपने आसपास चंपा-चमेली के फूलों को देख कर आप भी कल्पनाएं कीजिए और दूर देश से यहां आकर अपनी भीनी खुशबू से हमारे मन को महकाते इन पौधों का शुक्रिया अदा कीजिए।

देवेन्द्र मेवाड़ी
(लेखक टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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