लाखों छात्रों के भविष्य का सवाल

0
108

वैसे भी देश में माहौल ज्ञान-विज्ञान और विवेक के खिलाफ है, इसलिए कुछ बुनियादी महा्व के सवाल आज आम तौर पर नीति निर्माताओं और जनमत निर्माताओं को परेशान नहीं करते। लेकिन जिनका भविष्य दांव पर लगा है, उनके मन में जरूर भय समा गया होगा। गौर करने की बात है कि यह लगातार दूसरा साल है, जब देश के ज्यादातर छात्रों को बिना परीक्षा ही पास कर दिया गया। इनमें विश्वविद्यालय और कॉलेजों के छात्र भी हैं। कोरोना महामारी के कारण अब तक विश्वविद्यालय और कॉलेज बंद हैं। ऐसे में पढ़ाई सिर्फ ऑनलाइन हो रही है। ऐसे में रिसर्च और फील्ड वर्क का या हाल है, सहज समझा जा सकता है। इनके बिना मिली डिग्री की आखिर या अहमियत होगी? विज्ञान का रिसर्च बिना प्रयोगशाला के नहीं हो सकता। विज्ञान के किसी रिसर्चर के लिए उतना ही जरूरी फील्ड वर्क और लाइब्रेरी भी होती है। इसके बिना शोध संभव नहीं है। तो आखिर जो युवा अभी ऊंची शिक्षा में हैं, वे आखिर कैसे अपना काम आगे बढ़ा रहे होंगे? जाहिर है, अभी जो भी काम वो कर रहे हैं, वह महज रस्म अदायगी है। दुनिया में उसकी कोई कीमत नहीं होगी। अगर विश्वविद्यालय डिग्री दे भी दें, तो विज्ञान और तकनीक की दुनिया में उसकी कोई कीमत नहीं होगी। भारत जैसे देश में ऑनलाइन पढ़ाई का एक आर्थिक पक्ष भी है।

ऑनलाइन लासेज से पढ़ाई का खर्च बहुत बढ़ गया है, जिसकी मार सबसे ज्यादा मार गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों पर पड़ी है। उन्हें असर 4-जी से चलने वाले वाले स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं होते। 4 जी इंटरनेट डेटा का खर्च भी उनके लिए कम नहीं पड़ता। आम अनुभव है कि अगर दिन भर में छात्र 180 मिनट की ऑनलाइन लास कर लें, तो उन्हें एक जीबी से ज्यादा डेटा की जरूरत होती है। इसके लिए उन्हें महीने में 500 रुपये से ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। एक गरीब परिवार के लिए ये खर्च उठाना भी आसान नहीं है। खासकर उस हाल में जब लाखों नौकरियां गई हैं और लगभग सबकी आमदनी में सेंध लगी है। सरकार ने कोरोना वायरस से शिक्षा पर प्रभाव का अध्ययन कर ऑनलाइन शिक्षा का इंफ्रास्ट्रचर बनाने की जरूरत नहीं समझी है। डिजिटल इंफ्रास्ट्रचर की बातें महज दावों में हैं। इस पर असल में बात आगे नहीं बढ़ी है। नतीजा है कि लाखों छात्रों का भविष्य अंधकारमय नजर आता है। सवाल है कि या इसके असर से छात्रों को उबारने का कोई उपाय नीति निर्माताओं ने सोचा है? जाहिर है, नहीं सोचा होगा। इसलिए जो सूरत उभरती है, वह भविष्य के लिए बेहद चिंताजनक है। छात्र परीक्षा रद्द होने के फैसले की वजह से फिलहाल तनावमुक्त जरूर हो गए हैं, लेकिन आगे की पढ़ाई को लेकर उनके मन में चिंता निश्चित रूप से गहरा गई होगी।

कॉलेजों में दाखिले का अब मानदंड या होगा, ये सवाल उन्हें मथ रहा होगा। जिन छात्रों के 10वीं या 11वीं में नंबर बेहतर नहीं थे, अब उन नंबरों को आधार बनाया गया है तो उनके 12वीं के नंबर कम हो जाएंगे। दाखिले में कटऑफ काफी अहम होता है। जिन्हें नंबर बढिय़ा नहीं आए, उनके लिए दाखिला मिलना मुश्किल होता है। हालांकि अब तक यह साफ नहीं किया गया है कि 12वीं के नंबर किस आधार पर तय किए जाएंगे, लेकिन जब भी ये तय हो, तमाम पहलुओं पर गौर जरूर किया जाना चाहिए। शिक्षाविदों की ये चिंता जायज है कि परीक्षा रद्द करने के फैसले का दूरगामी असर हो सकता है। उनके मुताबिक मेधावी छात्र दाखिले से वंचित रह सकते हैं, जबकि सामान्य छात्रों को पहले के प्रदर्शन के आधार पर दाखिला मिल सकता है। इससे एक विसंगति पैदा होगी। हजारों छात्रों को इसका मनोवैज्ञानिक दबाव झेलना होगा। इसलिए ये सुझाव गौरतलब है कि सरकार को ऐसे छात्रों की काउंसलिंग कराने की व्यवस्था करनी चाहिए। बेशक महामारी के दौरान भर्ती परीक्षा आयोजित करना भी आसान नहीं होता। छात्र, अभिभावक और शिक्षक इससे एक अतिरिक्त दबाव में रहते। लेकिन अब आगे या होगा, इसकी सुध लेने की जरूरत है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here