योगी सरकार की एक मंत्री का ऑडियो वायरल होने के बाद यूपी की सियासत में उफान आ गया है। एक बिल्डर के समर्थन में महिला मंत्री ने पुलिस क्षेत्राधिकारी को दर्ज रिपोर्ट पर कार्रवाई ना करने को कहा और इसके लिए ‘ऊपर से आदेश है’ ऐसा हवाला भी दिया। हालांकि मामला संज्ञान में आते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने डीजीपी ओपी सिंह को मामले की तह तक पहुंचने के निर्देश दिए हैं। खबर यह भी है कि मंत्री महोदय को तलब भी किया गया था। इसमें दिलचस्प यह है कि एक वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें मंत्री महोदय एक पीडि़ता की शिकायत पर अफसर को लताड़ लगा रही हैं। प्रथम दृष्टया यह मामला अत्यंत गंभीर है, सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के ऐसे मामले जनप्रतिनिधियों के प्रति अविश्वास पैदा करते हैं। योगी सरकार को लेकर जिस तरह भ्रष्टाचार के आरोप सामने आ रहे हैं, वे चिंताजनक हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ऐसे मामलों पर गहरी पड़ताल के साथ उसका निष्कर्ष भी सामने लाये जाने की जरूरत है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि पिछले दिनों इसी तरह डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का एकपत्र भी लीक हुआ था।
जिसमें खासतौर पर एलडीए में हुई अनियमितताओं की शिकायत की गई थी। इस सबके बीच सवाल यह है कि डिप्टी सीएम के पत्र से लेकर इस हालिया ऑडियो-वीडियो के वायरल होने के पीछे कौन है? क्या वो व्हिसलब्लोवर है? जो मुख्यमंत्री की नाक के नीचे चल रहे कथित भ्रष्टाचार से योगी सरकार को सचेत करना चाहता है, या फिर इसके पीछे मंशा सिर्फ योगी सरकार की छवि को धूमिल करने की है। अथवा इस तरह के मामलों में सरकार के भीतर ही कुछ ऐसे तत्व हैं, जो समझते हैं कि उन्हें निकट भविष्य में फायदा हो सकता है। इस सारे बिन्दुओं पर तफसील से जांच किये जाने की जरूरत है ताकि जो सच है सबके सामने आ सके । पिछले हफ्ते पेपर लीक और इस हफ्ते ऑडियो वायरल। स्वाभाविक है, सियासत भी शुरू हो गई है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी सवाल किया है-वो बड़ी मछली कौन? उस पर भी कार्रवाई हो।
मुख्यमंत्री की स्वच्छ छवि की भी एक सीमा है, यदि उनके इर्दगिर्द या नीचे कथित भ्रष्टाचार के आरोप उछलते रहेंगे तो सरकार की विश्वसनीयता भी आखिरकार कटघरे में होगी। यूपी की जनता ने जिस भरोसे से भाजपा को राज्य में अपार बहुमत दिया, उसके पीछे मंशा यही थी कि वो भ्रष्टाचारमुक्त वातावरण में सांस ले सकेगी। ठीक है, सरकार कार्रवाई कर रही है। ऐसे 50 पार जिनका अतीत में साफ-सुथरा रिकार्ड नहीं रहा है, उन्हें जबरन सेवानिवृत्ति दी जा रही है। इसी क ड़ी में यदि वास्तव में मंत्री या जनप्रतिनिधि भी दोषी मिलें तो उस पर कार्रवाई होती दिखनी चाहिए। ताकि किसी को संरक्षण देने या बचाने का सवाल ही ना पैदा हो। सामान्य जीवन में तो शुचिता की अपेक्षा होती ही है, सार्वजनिक जीवन में इसकी प्रत्याशा और इसलिए भी बढ़ जाती है कि पब्लिक फीगर की एक -एक बात लोगों पर गहरे असर डालती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सच बहुत जल्द सामने आएगा। योगी सरकार के लिए यह इम्तिहान का समय है।