मोदी सरकार के सौ दिन पूरे होने पर छिड़ा दंगल

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नई मोदी सरकार के पहले सौ दिन कैसे रहे, इस विषय पर पक्ष और विपक्ष में जबर्दस्त दंगल छिड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि हमने पहले 100 दिन में वह कर दिखाया है, जो कांग्रेस अपने साठ साल के राज में नहीं कर सकी और कांग्रेसी नेता राहुल गांधी और उनकी बहन दावा कर रहे हैं कि पिछले 100 दिन में देश ने तानाशाही, ढोंग, अराजकता और झूठे दावों का नंगा नाच देखा है।

ये दोनों अतिवादी बयान हैं। अगर नेता लोग ऐसे बयान नहीं देंगे तो कौन देगा ? सत्य तो कहीं इन बयानों के बीच छिपा हुआ है। इसमें शक नहीं है कि तीन तलाक, कश्मीर का पूर्ण विलय, सर्वोच्च सेनापति की नियुक्ति का संकल्प कुछ कार्रवाइयां पिछले 100 दिन में ऐसी हुई हैं, जो पिछली कांग्रेसी और गैर-कांग्रेसी सरकारें भी नहीं कर सकी हैं।

इसके अलावा हवाई अड्डों, सड़कों और रेल-पथ निर्माण, किसानों को सीधी सहायता, स्वच्छ भारत अभियान, बैंकों का विलय, जल-सुरक्षा, ग्राम-विकास आदि ऐसे कामों में उल्लेखनीय प्रगति इस सरकार ने वैसे ही की है, जैसी कि अन्य सरकारें करती रही हैं। विदेश नीति के क्षेत्र में भारत ने अमेरिका, फ्रांस, रुस और कुछ प्रमुख मुस्लिम राष्ट्रों के साथ पिछले दिनों में इतने अच्छे संबंध बना लिये हैं कि कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान को उसने किनारे लगा दिया है।

इन सफल कामों का श्रेय इस सरकार को जरुर दिया जाना चाहिए लेकिन आर्थिक मोर्चे पर इसकी गिरावट इतनी तेज है कि यदि अगले कुछ माह में वह नहीं संभली तो ऊपर गिनाई गई उपलब्धियों पर पानी फिरते देर नहीं लगेगी। जब लोग भूखे मरेंगे तो उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि किसने किसको तलाक दे दिया या सेनापति कौन बन गया या कश्मीर में धारा 370 है या नहीं ?

इन मुद्दों पर आजकल हम सब सरकार के भजन गा रहे हैं लेकिन यह ठीक ही कहा गया है कि ‘भूखे भजन होत नहीं गोपाला।’ सरकार भी परेशान है और वह रोज ही कुछ न कुछ द्राविड़ प्राणायाम कर रही है ताकि देश की अर्थ-व्यवस्था पटरी पर आ जाए। अभी कश्मीर का भी ठीक से कुछ पता नहीं कि अगले दो-चार माह में वहां क्या होने वाला है ?

पिछले 100 दिनों में सरकार का कुल रवैया काफी बहिर्मुखी रहा है और उसे इसका श्रेय भी मिला है लेकिन उससे भी ज्यादा जरुरी है- उसका अंतर्मुखी होना। यह ठीक है कि आज भारत में विपक्ष अधमरा हो चुका है लेकिन यदि आर्थिक असंतोष फैल गया तो जनता ही विपक्ष की भूमिका अदा करने लग सकती है।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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