आज देश में यह ज्वलंत सवाल उछाला जा रहा है कि आजादी के बाद के अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों में मोदी जी सर्वाधिक अंक के साथ शीर्ष क्रम की ओर अग्रसर क्यों है? उनकी रणनीति के सामने देश हा या विदेश सभी आत्म समर्पण की मुद्रा में क्यों है? देश में सत्तारूढ़ पार्टी के शीर्ष बुजुर्ग नेताओं की अंगुलियां आज उनके अपने दांतों के तले क्यों है? मोदी जी अपने किस करिश्में से असंभव को संभव बना रहे है? मोदी के सामने आज प्रतिपक्षी दल और उनके नेता आत्म समर्पण की मुद्रा में हाथ बांधे क्यों खड़े है?
इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है, गुजरात का पानी। इसी गुजरातत के पानी ने महात्मा गांधी के माध्यम से देश को अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त कराया, इसी गुजरात के पानी ने लोह पुरूष वल्लभ भाई पाटेल के माध्यम से रियासती दादागिरी खत्म कर देश को खण्डता प्रदान की, इसी गुजरात के पानी ने मोरारजी भाई के माध्यम से देश को आर्थिक दृष्टि से सशक्त किया और अब यही गुजरात का पानी नरेन्द्र भाई मोदी की रगों में दौड़कर ये सब सियासी व मजहबी करश्मिें करवा रहा है।
वैसे यदि हम आजादी के बाद से भारत का इतिहास देखें तो हर प्रधानमंत्री की अपनी कार्यशैली रही है, यह सही है कि इसी कार्यशैली के चलते कुछ गलतियां भी हो जाती है, जिसके कारण भावी पीढ़ी को भुगतना पड़ा है, जैसा कि आज कश्मीर समस्या से मौजूदा पीढ़ी हलाकान है, किंतु एक-दो गलतियां किसी शासक की उपलब्धियों की चमक फीकी नहीं करती, लाल बहादूर शास्त्री व इंदिरा-राजीव की भी उपलब्धि अनुपलब्धि रहीं, जिसकी आज देश समीक्षा कर रहा है। किंतु एक-दो गलतियों के लिए किसी की उपलब्धियों का नकारना भी ठीक नहीं है।
किंतु आज का विचारणीय प्रश्न यह भी है कि आजादी के बाद के सभी प्रधानमंत्रीयों में से मोदी जी की तुलना सिर्फ पं. जवाहर लाल नेहरू से ही क्यों की जा रही है? उसके पीछे पहला कारण यह था कि कुछ प्रधानमंत्रियों ने स्वयं ‘चक्रवर्ती’ या ‘तानाशाह’ बनने की कोशिश की, जिसका उदाहरण इंदिरा जी रहीं तो पंडित नेहरू जैसे कुछ प्रधानमंत्रियों ने अपनी ‘टीम’ के बलबूत पर महान लक्ष्य प्राप्त किये नेहरू की मंत्रियों की यदि सूची देखी जाए तो वह आज के मंत्री टीम से बहुत कुछ समानता के करीब नजर आती है। फिर जिन्होंने पं. नेहरू की शासन शैली को करीब से देखा है, उनकी धारणा आज यह है कि पं. नेहरू और मोदी की शासन शैली में बहुत कुछ समानता है, जिस तरह पं. नेहरू ने रियासती साम्राज्य खत्म कर देश को अखण्डता प्रदान करने की जिम्मेदारी तत्कालीन गृहमंत्री लोह पुरूष वल्लभ भाई पटेल को सौंपी थी, वैसी ही मोदी जी ने भी अपने गृहमंत्री सहित सभी मंत्रियों को अहम् जिम्मेदारियों व दायित्वों का बंटवारा कर दिया, और उन्हें लक्ष्य प्राप्ति का सावधिक कार्यक्रम दे दिया, उसी लक्ष्य के तहत कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तीन तलाक के खात्में के लक्ष्य को साम-दाम-दण्ड- भेद की नीति अपनाकर प्राप्तत किया। इसी तरह देश के राजनीतिक क्षेत्रों में यह चर्चा आम है कि अमित शाह को गृहमंत्री का पद सिर्फ और सिर्फ कश्मीर समस्या हल करने व वहां भाजपा का परचम फहराने के लिए ही दिया गया है, और इसी का परिणाम है कि अमित शाह धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे है तथा कोई आश्चर्य नहीं होगा कि इसी साल के अंत तक जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जे का बाना उतार दिया जाए और वह राज्य भी देश के अन्य राज्यों की पंक्ति में खड़ा नजर आए, इसीलिए इस राज्य में विधानसभा चुनाव तक दस प्रतिशत आरक्षण जैसी सौगातों की बरसात होती रहेगी और वहां स्थानीय राजनीतिक दल नाकारा साबित होते रहेंगे और जब जम्मू के साथ कश्मीर का भी समर्थन भाजपा को चुनाव के समय मिल जाएगा तो भाजपा वहां की सरकार पर कब्जा कर धारा-370 व 35ए हटाने और विस्थापित कश्मीरी पंडितों की वापसी का प्रस्ताव पारित कर अपने चुनावी वादों को मूर्तरूप दे सकेगी और फिर जम्मू-कश्मीर भी देश के अन्य राज्यों के समकक्ष खड़ा हो जाएगा।
इसी तरह मोदी ने अपने सभी मंत्री साथियों को पांच साला लक्ष्य अभी से प्रदान कर दिए है और उन्हीं लक्ष्यों को ध्यान में रखकर हर मंत्री ने अपने विभाग की रणनीति तैयार की है, अब कानून मंत्री ने तो प्रथम लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता प्राप्त कर ली, और अब वे अन्य लक्ष्यों की ओर मुखातिब हो गए है, अब पूरे देश की नजर केवल और केवल अमित शाह पर है, जिन पर कई दशकों से चली आ रही जम्मू कश्मीर समस्या के हल करने की अहम् जिम्मेदारी है।
इस प्रकार कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि देश में नेहरू शासन की पुनरावृत्ति हो रही है तो कतई गलत नहीं होगा। क्योंकि एक ने गलतियां की और दूसरा पंाच दशक बाद उन्हें ठीक कर रहा है।
ओमप्रकाश मेहता
लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…