मोदी जी का मेसेज

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रात को नींद ढंग से नहीं आई | बार-बार एक ख़ास तरह के सपने आते रहे जैसे हम कभी किसी पथरीले तो कभी किसी रेगिस्तान में भटक रहे हैं | न कहीं कोई मंजिल, न कोई साथी, न कोई सुनने वाला और न ही कोई पूछने वाला |पता नहीं, सपने कितनी देर तक चलते रहे लेकिन जब उठे तो बड़ा अजीब लग रहा था |थकान अनुभव हो रही थी |बरामदे की दीवार से पीठ टिकाकर बैठ गए |

हालाँकि मोदी जी ने हमसे तो शेयर नहीं किया लेकिन हमें पता चला गया कि उन्होंने इस क्वारंटाइन या एकांतवास में खुद को फिट रखने के लिए ट्विटर पर ‘योग-निद्रा’ का एक वीडियो ट्रंप साहब की बेटी इवांका के साथ शेयर किया है | हमने उसे ही निकालकर देखा और थकान मिटाने के लिए बरामदे में बैठे-बैठे ही योगनिद्रा में लीन हो गए |पता ही नहीं चला, कब तोताराम आकर बैठ गया |

बोला- तेरे पास मेरी सरकार का मेसेज आया क्या ?

हमने कहा- ‘तेरी सरकार का मेसेज तेरे पास आएगा |हमारे पास ‘हमारी सरकार’ का मेसेज आएगा |और जब आएगा तो हमें जो करना होगा, सो कर लेंगे |

बोला- मास्टर, आज तो सुबह-सुबह की बड़ा महीन मज़ाक कर दिया |मेरी सरकार मतलब भारत सरकार |

हमने कहा- पता नहीं, लैपटॉप खोलेंगे तो पता चलेगा |

बोला- मैंने देख लिया है |उसमें कोरोना-संकट की इस मुश्किल घड़ी में योगदान देने के लिए कहा है |

हमने कहा- क्या योगदान चाहिए ? जब तक नौकरी की तब तक युद्ध, बाढ़, अकाल सभी में एक-दो दिन का वेतन प्रधानमंत्री कोष में देते ही रहे हैं |अब पेंशन में क्या बचता है जो दान दें ?

बोला- फिर भी मोदी जी की बात का उत्तर तो देना ही चाहिए |

हमने कहा- तो ले, हमारी तरफ से शगुन का यह सवा रुपया ले जा |

बोला- यह चवन्नी अपने पास रख |नेताओं की चवन्नी तो हमेशा चलती है लेकिन जनता की चवन्नी तो कब की बंद हो गई है |बचा एक रुपया, जिसे मनी आर्डर से भेजो तो पचास पैसे कमीशन के कट जाएंगे |यदि बैंक से भेजो निफ्ट ट्रांसफर से दो रुपए बहत्तर पैसे मिनिमम चार्ज है |

हमने कहा- तो उस तरह से दे दे जिस तरह सरकार ने ‘राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट’ को एक रुपया दिया है |

बोला- एक रुपए में तो एक ईंट भी नहीं आती |

हमने कहा- बात भाव, आस्था और प्रतीकात्मकता की है |सब जानते हैं कि थाली-ताली बजाने से और दीये जलाने से कोरोना नहीं भागेगा लेकिन सब कर तो रहे ही हैं ये सब टोटके |

बोला- यह समय अज्ञान और अंधविश्वास का नहीं है |यह समय तो अपने अज्ञान को मिटाकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने का है |देखा नहीं, निजामुद्दीन के मरकज़ में मौलाना किस तरह अन्धश्रद्धा के बल पर अपने अनुयायियों को मरने के रास्ते पर ले जा रहे थे |अमरीका तक में लोग कोरोना से बचने के लिए चर्चों की शरण में जा रहे थे |अब अब जब जान पर आ बनी है तब डाक्टरों की शरण में गए हैं |

हमने कहा- तुम गलत समझे |हम तो दान के बारे में आस्था की बात आकर रहे थे |जहाँ तक कोरोना के इलाज़ की बात है तो हम पूरी तरह से विज्ञान से सहमत है |हमारा तो कहना है कि जो अपने अंधविश्वास पर अड़े हैं उन्हें एक महिने का राशन देकर उनके आस्था के स्थान पर बंद कर दिया जाना चाहिए |जियें तो ठीक; मरे तो ठीक |उन्हें भी विज्ञान की तरह अपने अज्ञान की परीक्षा भी कर लेने दी जाए |

और जहाँ तक कुछ योगदान देने की बात है तो तू मोदी से कह कि मार्च की पेंशन तो भिजवाएँ |चार दिन ऊपर हो गए | कहीं जनवरी की पेंशन की तरह बीस दिन लेट कर देंगे तो राहत सामग्री के लिए किसी समाजसेवी को फोन करना पड़ेगा | क्या पता, वह हमारा नाम रिकार्ड में नोट करले और किट का पैसा खुद हज़म कर जाए |

यह कलयुग है |सब तरह के लोग हैं |मंदिर में भक्त ही नहीं, जूते उठाने वाले भी जाते हैं |और आजकल तो उनका स्पष्ट बहुमत है |

रमेश जोशी
(लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वाÓ (अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल -09460155700 l blog-jhoothasach.blogspot.com (joshikavirai@gmail.com)

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