मोदी के लिए ये अहम परीक्षा की घड़ी

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मोदी सरकार पर तीन-तीन मुसीबतें एक साथ आन पड़ी हैं। रफाल-सौदा, फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ और ‘नमो टीवी’– इन तीनों पर सर्वोच्च न्यायालय और चुनाव आयोग की गाज़ गिरी है। रफाल-सौदे पर छपे गोपनीय दस्तावेजों पर अदालत जरुर विचार करेगी। उन्हें वह गोपनीयता कानून की चादर से ढकने नहीं देगी और चुनाव आयोग ने मोदी पर बनी फिल्म और मोदी का प्रचार करनेवाले ‘नमो टीवी’ पर भी चुनाव तक प्रतिबंध लगा दिया है।

इससे क्या जाहिर होता है ? क्या यह नहीं कि भारत की ये संवैधानिक संस्थाएं मरी नहीं है? जिन्दा हैं। वे अपना काम कर रही हैं। यह आरोप निराधार साबित हो रहा है कि सभी संवैधानिक संस्थाओं का टेंटुआ मोदी ने कस दिया है। 2019 का यह चुनाव मोदी के लिए जीवन-मरण का सवाल बन गया है। मोदी और राहुल एक दूसरे को जेल भेजने की घोषणाएं कर रहे हैं और दोनों ने भारतीय राजनीति को निम्नतम स्तर तक पहुंचा दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ माह पहले रफाल-सौदे की जांच को गैर-जरुरी बता दिया था लेकिन उसने अब दो-टूक शब्दों में कहा है कि जो दस्तावेज ‘हिंदू’ अखबार ने छापे हैं, उन पर वह जरुर विचार करेगा। वह नहीं मानता कि वे ‘गोपनीय’ थे, इसलिए वह उन पर विचार न करे। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अदालत ने रेखांकित किया ही, अब ये दस्तावेज रफाल-सौदे की सारी पोल खोल कर रख देंगे। जैसे ही इस मामले ने तूल पकड़ा, मैंने लिखा था कि सरकार खुद सारे सौदे को सार्वजनिक कर दे। सांच को आंच क्या ? लेकिन सरकार पता नहीं क्यों, उस पर पर्दा डाले रही ?

अब यदि चुनाव के पहले अदालत ने अपना फैसला दे दिया और वह उल्टा पड़ गया तो मोदी को लेने के देने पड़ जाएंगे। मोदी को सौदा रद्द करना पड़ेगा और जनता मोदी को रद्द कर देगी। चुनाव खत्म होने के पहले ही भाजपा को एक नए समानांतर नेता को सामने लाना पड़ेगा। मोदी पर बनी फिल्म और टीवी चैनल पर प्रतिबंध लगने से व्यक्तिमूलक प्रचार नीति पर रोक लगेगी। इसके कारण शायद अब ‘मर्दों’ की बजाय मुद्दों पर बात होगी। किसी भी लोकतंत्र के लिए यह स्वागत योग्य घटना है।

डॉ. वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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