राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने बहुत कायदे की बात कही है। उन्होंने कहा है कि अगर चैनल वाले आतंकवादियों की खबरें चलाना बंद कर दें तो आतंकवाद रूक जाएगा। ऐसा उन्होंने ब्रिटेन की आयरन लेडी के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर के हवाले से कहा। थैचर ने प्रधानमंत्री रहते यह बात ब्रिटिश और दुनिया भर की मीडिया से कही थी। उनका मानना था कि टेलीविजन चैनल वाले आतंकवादी वारदातों को बहुत हाईलाइट करते हैं, जिससे आतंकवादियों को प्रचार मिलता है। इससे प्रभावित होकर नए और खास कर कम उम्र के युवा, आतंकवादी संगठनों से जुड़ते हैं। यहीं बात भारत में नक्सलियों के बारे में कही जाती है। खुद नक्सली संगठन भी हर वारदात के बाद चैनलों को इसकी सूचना देते हैं और चाहते हैं कि इसे विस्तार से दिखाया जाए। इसके बावजूद मारग्रेट थैचर की बात पूरी तरह से सही नहीं है। आतंकवादियों का मकसद सिर्फ टीवी पर दिखना नहीं होता है।
बहरहाल, अब यहीं बात अजित डोवाल ने कही है। ध्यान रहे डोवाल ‘देशभक्त मीडिया’ के सबसे बड़े नायक हैं। मीडिया ने उनकी छवि ‘लार्जर दैन लाइफ’ की बनाई है। वे जेम्स बांड से ऊपर के खुफिया अधिकारी और राष्ट्रीय सुरक्षा के जानकार माने जाते हैं। तभी मीडिया को चाहिए कि उनकी बात ध्यान से सुने और उस पर अमल करे। पर मुश्किल यह है कि सरकार की नीतियों का प्रचार करने और विपक्ष को गालियां देने के अलावा मीडिया का सबसे पसंदीदा विषय ही आतंकवाद व अंडरवर्ल्ड है। वे आए दिन आतंकवादियों के ठिकानों, उनकी रणनीति, उनके सरगनाओं आदि की झूठी सच्ची खबरें दिखाते रहते हैं।
उन्हें अपने स्टूडियो में बैठे बैठे दाऊद इब्राहिम और हाफिज सईद के सारे ठिकानों और उसकी योजनाओं की जानकारी रहती है। चैनलों को इस्लामिक स्टेट, अलकायदा, लश्कर ए तैयबा, जैश ए मोहम्मद आदि के बारे में, जितना पता होता है उतना इस्लामिक स्टेट की अपनी मीडिया एजेंसी अमाक को और खाड़ी देशों के सबसे बड़े चैनल अल जजीरा को भी पता नहीं होता है। भारत के टीवी चैनल अनगिनत बार इस्लामिक स्टेट के सरगना बगदादी को मार चुके हैं और उतनी ही बार उसे जिंदा भी कर चुके हैं।
दुनिया में कहीं भी आतंकी वारदात हो जाए, उसके तुरंत बाद भारत के टेलीविजन चैनल यह पता लगा लेते हैं कि इसकी साजिश कैसे रची गई थी और इसमें कौन कौन से लोग शामिल थे। इस कथित साजिश का पर्दाफाश करने का उनका अंदाज ऐसा होता है, जैसे वे खुद साजिश रचे जाने के समय मौके पर मौजूद थे। इतना ही नहीं सीरिया में तुर्की क्या और कैसे करेगा या अमेरिका कैसे आतंकवाद की कमर तोड़ेगा इसके बारे में भी उन्हें तफ्शील से जानकारी होती है। असल में आतंकवाद और अंडरवर्ल्ड, बगदादी और दाऊद उनकी टीआरपी का सबसे मुख्य विषय हैं। इसलिए डोवाल के प्रति तमाम सम्मान के बावजूद वे उनकी यह बात नहीं मानेंगे। हो सकता है कि खुद डोवाल ने भी यह बात सिर्फ कहने के लिए कही हो और वे भी नहीं चाहते हों कि चैनल वाले आतंकवादियों को न दिखाएं।
बहरहाल, अभी तो देश के सारे चैनल अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के अभियान में और ‘मस्जिद वाले कहां से पधारे’ यह पूछने में लगे हैं। वे हिंदू-मुस्लिम के एजेंडे को हवा दे रहे हैं। इस चक्कर में चैनल वालों ने कई हिंदू ‘धर्मगुरू’ और कई नए ‘मौलाना’ खड़े कर दिए, जिनका काम चैनलों में बैठ कर बेसिरपैर के मुद्दों पर गरमागरम बहस करने का होता है। फिलहाल दो राज्यों में चुनाव चल रहे हैं और उसके तुरंत बाद फिर दो राज्यों में चुनाव हैं। इसलिए राम मंदिर और हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा बहुत मौजूं है। पर जैसे ही चैनलों को इससे फुरसत मिलेगी वे पहली फुरसत में बगदादी या हाफिज सईद, मसूद अजहर, जकी उर रहमान लखवी, दाऊद इब्राहिम आदि के पीछे पड़ेंगे। उनके नए रंगरूटों, नए ठिकानों, नई रणनीतियों आदि के बारे में जानकारी देंगे।
अजीत द्विदेवी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं