मालदीव में मोहम्मद नशीद की पार्टी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रचंड विजय वास्तव में भारत की विजय है। नशीद भारत के मित्र रहे हैं लेकिन उन्हें 2012 में राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा था। वे 2008 में राष्ट्रपति चुने गए थे लेकिन उनके खिलाफ फौज और न्यायाधीशों ने मिलकर तख्ता-पलट की कार्रवाई कर दी थी। उनके बाद 2013 में अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने और अदालत ने मिलकर 2015 में नशीद को 13 साल की सजा सुना दी।
नशीद ने वीर सावरकर की तरह बहाना बनाया (इलाज का) और वे ब्रिटेन और श्रीलंका रहने लगे। इस बीच वे भारत भी आए। आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उनका भाषण भी हुआ। मेरी उनकी लंबी बातचीत भी हुई। मैंने न्यूयार्क में रहने वाले भारतीय मित्रों से उनकी मदद भी करवाई। नशीद ने 2008 में 30 साल तक राज करने वाले मामून अब्दुल गय्यूम को हराकर राष्ट्रपति पद लिया था। गय्यूम और यामीन सौतेले भाई हैं लेकिन यामीन इतने भारत-विरोधी हो गए थे कि उन्होंने गय्यूम जैसे भारतप्रेमियों को या तो जेल में डाल दिया या मालदीव से भागने के लिए मजबूर कर दिया।
गय्यूम जब भारत आए तो मुझसे मिले थे। 1988 में उनके तख्ता-पलट की जब कोशिश हुई थी, तब मैंने रक्षा मंत्री कृष्णचंद्रजी पंत से कहकर गय्यूम की मदद करवाई थी। वे भारत के बहुत आभारी हैं लेकिन अपने पांच साल के राज में यामीन ने पूरे मालदीव को चीने के हाथों गिरवी रख दिया। चीन से मालदीव ने 9 हजार करोड़ रु. का कर्ज ले लिया। अपने 16 द्वीप चीन को सौंप दिए। चीन के पर्यटकों की संख्या कई गुना हो गई। मालदीव का पर्यटन उद्योग भी भारतीयों के हाथों से निकलकर चीन की जेब में चला गया। माले हवाई अड्डे का निर्माण-कार्य भारत से छीनकर चीन को दे दिया गया।
चीनी और मालदीवी नेताओं की परस्पर घनिष्ट यात्राएं शुरु होने लगीं। भारतीय प्रधानमंत्री अब तक मालदीव नहीं जा सके। मालदीव का इस्लामीकरण तेज हो गया। हजारों भारतीय नौकरियां छोड़कर भागने लगे। भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच गया। तभी सितंबर 2018 में राष्ट्रपति के चुनाव में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने यामीन को हरा दिया। सोलिह नशीद की एमडीपी पार्टी के ही उम्मीदवार थे। अब संसद में दो-तिहाई बहुमत मिल जाने पर इस पार्टी के अध्यक्ष नशीद ही वास्तव में मालदीव के शासक होंगे। उन्हें मेरी बधाई !
डॉ. वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार है