तब्लीगी जमात वाले तो कभी नहीं मानेंगे कि उन्होंने गलती की। लेकिन या कुरान में कहीं पर ये लिखा है कि जानबूझकर की गई गलती स्वीकारना हराम है? अगर नहीं तो फिर जिस वत मार्च के पहले हफ्ते में पीएम समेत सब दिग्गजों ने होली मिलन समारोह कैंसिल किए थे तभी उन्हें नहीं चेत जाना चाहिए था? अगर तब भी नहीं तो जब दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने 13 मार्च को दिल्ली में 200 से ज्यादा एक जगह एकत्र होने पर रोक लगाई थी तो तब नहीं चेत जाना चाहिए था? चलों यहां तक भी मान लिया कि मुगालता या अति विश्वास के शिकार मौलाना साद हो सकते हैं लेकिन जब 16 को एक जगह पर इंसानों की संख्या 50 तक तय की तो या तब मौलाना को अच्छे नागरिक व खुदा के नेक बंदे की तरह सही फैसला नहीं करना चाहिए था? सबको वापस नहीं भेजना चाहिए था? खासकर विदेशियों को अपने देश से जाने को नहीं कहना चाहिए था? धारा 144 व जनता कर्फ्यू के बाद ही चेत जाते। लेकिन नहीं जब ऐसे लोग खुद को ऊपर वाले के बराबर समझने का मुगालता पाल लेते हैं, कानून को अपने घर की बांदी समझ बैठते हैं तो फिर रेत सरीखी ताकत के नशे में वही करते हैं जो तब्लीगी जमात के मुखिया मौलाना साद ने किया। या मौलाना साद इस बात की गारंटी ले सकते हैं कि इन जमातियों में कोई आंतकी नहीं हो सकता?
अगर ऐसा हुआ तो? या ये गुस्ताखी के दायरे में नहीं आता? या ये अपराध नहीं है? जो उन्होंने किया हो सकता है कि खुदा उनका कुछ ना बिगाड़े लेकिन इन मौलाना साहब की गलती से पैदा मानव बम जनता व देश का कितना बिगाड़ेंगे ये समय तय करेगा? ये सच है कि अगर आनंद बिहार पर वो भीड़ ना दिखती और ये तब्लीगी जमात का मजमा ना लगा होता तो हालात कहीं बेहतर नजर आते। हजारों की जिंदगी दांव पर लगाने का हक आखिर मौलाना साद को किसने दिया? या वो सर्वशतिमान हैं जो उनके एक बोल पर पूरी कुदरत उनके कहे मुताबिक व्यवहार करेगी? मुगालते में रहने वाले आखिर कब ये समझेंगे कि जिसने दुनिया बनाई, उसे चलाने का काम उसका ही है किसी मौलाना या पंडित का नहीं। मौलाना साद कांधला के रहने वाले हैं…दिल्लीशामली हाईवे पर एक कस्बा। इनके बारे में देवबंद में जाकर पूछ लीजिएल…ज्यादातर देवबंदी उन्हें पसंद नहीं करते ….वो तब्लीगी जमात के एक गुट के मुखिया हैं..फिर भी वो दिखाते यही हैं कि वो खुदा के बाद सबसे बड़े हैं। तभी तो इज्तिमा बुलाने से ज्यादा बड़ी गलती वो अब कर रहे हैं। खुद फरार हो गए और जमात के अपने ताबेदारों के जरिए समाज में जहर फैला रहे हैं। तब्लीगी केवल एक जमात है लेकिन मौलाना साद इसे पूरे मुसलमानों के साथ जोडऩे की हिमाकत भी कर रहे हैं और साजिश भी रच रहे हैं।
इसे कैसे सही ठहराया जा सकता है.? अगर मौलाना साद सही हैं तो फिर फरार क्यों हैं? वैसे मौलाना साद की जिद से पैदा हालात के लिए सारे मुस्लिम समुदाय को जिमेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार को अगर देश बचाना है तो या ऐसे जाहिलों व काहिलों से और सख्ती से नहीं निपटा जाना चाहिए जो तालाबंदी को मजाक भी बना रहे हैं, कोरोना वायरस के कैरियर भी बन रहे हैं और भाईचारा खत्म करने की साजिश भी रच रहे हैं? वो चाहे मौलाना हों या पंडित या फिर कोई और। वैसे कड़वा सच ये भी है कि तब्लीगी जमात के मामले में सबने गलती की। सबसे बड़ी तब्लीगी जमात के मुखिया मौलाना साद की। अगर काबा तक बंद हो चुका है तो फिर या ये जमाती मरकज काबा से भी ऊपर है? तब्लीगी जमात की ओर से अब तालाबंदी के बाद की दलीलें रखी जा रही हैं लेकिन गलती तो उन्होंने तालाबंदी से पहले की। गलती मौलाना साद की और अब तलाशती फिरे पुलिस, दहशत में रहे सारी जनता। जमाती खुद सामने क्यों नहीं आ रहे हैं? किस बात का डर है? ये कैसी इस्लाम की सेवा है? फिर गलती केजरीवाल सरकार ने की- जब उसे पता था कि यहां पर इतने लोग हैं तो फिर कुछ किया क्यों नहीं? फिर गलती दिल्ली पुलिस ने की- यही एशन तालाबंदी के वक्त उसने क्यों नहीं किया?
फिर गलती मोदी सरकार की -आखिर होम मिनिस्टर अमित शाह को अजीत डोभाल को मौलाना साद के पास तड़के तीन-चार बजे भेजने की जरूरत क्या थी? आखिर तब्लीगी जमात के इस धड़े के प्रति नरमी क्यों दिखाई गई? जब ऐसे लोग वीजा लेकर भारत आ रहे थे तो उन्हें रोका क्यों नहीं गया? देश की सवा अरब आबादी अगर घरों में है…तो फिर हजारों लोगों को ये छूट कैसे दी जा सकती है कि वो तालाबंदी का मजाक उड़ाएं…लोगों की जान खतरे में डालें….खुदा करे इन सबकी गलती का कहर भारत की उस जनता पर ना टूटे जो तालाबंदी में घरों में है। वैसे लक्ष्ण तो अच्छे नहीं हैं…..ना जानें या नतीजे होंगे? रोजाना बढ़ते केस व मौत के आंकड़े डराने वाले हैं। हम सबको गर्व होना चाहिए कि हम भारत के वाशिंदे हैं,जहां लोकतंत्र में सबको वैधानिक सब कुछ करने की छूट है। पहली बार जनहित में थोड़ी सी पाबंदी लगी है वो भी खल रही है। लाख टके का सवाल यही है कि या वास्तव में हम सभी सच्चे भारतीय हैं? अगर होते तो जो मेडिकल स्टाफ दिनरात जान दांव पर लगाकर सबकी सेवा और कोरोना पीडि़तों की जान बचाने में जुटे हैं उन्हें देश के तमाम हिस्सों में निशाना बनाते? जो पुलिस वाले इस समय देवदूत बने हुए हैं या उन पर हमला करते?निसंदेह ये करतूत करने वाले जाहिल हैं। जो देश को दांव पर लगा दें, मानवता का गला घोंटने को आतुर हों, या ऐसे लोगों को भारत में कोई सुविधा मिलनी चाहिए? कतई नहीं।
जनता का पैसा, खजाने का पैसा, सारी सुविधाएं उन्हें मिलनी चाहिए, जो सच्चे देशवासी हैं। बदतमीजी दिखाने वालों के लिए फिलीपींस का कानून ही बेहतर है। जहां बदसलूकी व हिंसा करने वालों को गोली मारने के आदेश दिए गए हैं। कोरोना से पीडि़त जो जमाती, डाक्टरों व मेडिकल स्टाफ पर थूक रहे हैं उनके आइसोलेशन सेंटर गंगा-यमुना व बाकी नदियों के खादर में रेत पर बना देने चाहिए। पाकिस्तान ने बाहर से आने वालों के लिए जिस जगह पर कैंप बनाए हैं कम से कम खादर का इलाका वहां से तो बेहतर ही है। शायद इंसानी दुनिया उन्हें नहीं भाती। भाईचारे व देश प्रेम से उनका लेना-देना नहीं। अगर ये जमाती सब कुछ बर्बाद करने पर तुले हैं तो फिर जनता व देश का पैसा इनके इलाज पर क्यों लुटाया जाए? अफसोस की बात ये है कि इस तरह की करतूत करने वाले लोग हजारों हैं,आड़ ले रहे हैं पूरे मजहब की। इन्हें समझाने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही शायर जावेद अख्तर व राहत इंदौरी की तरह आगे आना चाहिए। पर जब ये किसी की नहीं सुनते तो फिर जावेद व राहत साहब की कितनी सुनेंगे? कल्पना करिए दुव्र्यवहार की वजह से अगर मेडिकल स्टाफ इस वत हाथ खड़े कर दे तो? निसंदेह ऐसी घटिया सोच व हरकत करने वालों को हमेशा के लिए आइसोलेट करने का समय अब आ गया है। जो ऐसे संकट में जनता के साथ नहीं। वो कैसा अपना?
देशपाल सिंह पंवार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)