भारत-रुस: नई ऊंचाईयां

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह रुस-यात्रा भारतीय प्रधानमंत्रियों की पिछली कई यात्राओं के मुकाबले कहीं अधिक सार्थक रही है। उसका पहला प्रमाण तो यही है कि पूर्वी आर्थिक मंच के बहुराष्ट्रीय सम्मेलन में मोदी को मुख्य अतिथि बनाया गया है। दूसरी बात यह है कि मोदी और पुतिन, दोनों ने साफ-साफ कहा है कि किसी भी देश को अन्य देश के आंतरिक मामलों में टांग अड़ाने का कोई अधिकार नहीं है।

पुतिन का यह बयान क्या ख्रुश्चौफ और बुल्गानिन के उस बयान की याद नहीं दिलाता है, जो उन्होंने अपनी पहली यात्रा के दौरान प्र.म. नेहरु के सामने दिया था ? उन्होंने कहा था कि कश्मीर में आपको कोई खतरा हो तो आप हमें आवाज़ दीजिए हम आपके खातिर दौड़े चले आएंगे। शीतयुद्ध के दौरान पाकिस्तानपरस्त अमेरिका को टक्कर देने के हिसाब से यह बात ठीक थी लेकिन पिछले दो-ढाई दशक में रुस-अमेरिका समीकरण बदलने के कारण कश्मीर पर रुसी रवैया थोड़ा ढीला हो गया था। उसने पाकिस्तान के साथ भी पींगें बढ़ानी शुरु कर दी थीं लेकिन रुस के इस ताजा रवैए ने भारत-रुस दोस्ती पर फिर से पक्की मुहर लगा दी है। भारत और रुस ने तरह-तरह के 25 समझौतों पर दस्तखत किए हैं। अभी भी रुस भारत का सबसे बड़ा हथियार-विक्रेता है। यों तो आजकल भारत-अमेरिका के बीच घनिष्टता अपूर्व रुप से बढ़ी हुई है और ट्रंप का रवैया कश्मीर के मामले में भारतपरस्ती का है और अमेरिका यह भी चाहता है कि सुदूर पूर्व में भारत की भूमिका बलवती हो ताकि चीन के प्रभाव को सीमित किया जा सके। इस मामले में रुस भी पीछे नहीं है। रुस वैसे चीन से अच्छे संबंध बनाए हुए हैं लेकिन चीन के महान रेशम पथ की योजना से वह सहमत नहीं है। वह चाहता है कि भारत मध्य एशिया के राष्ट्रों और सुदूर-पूर्व के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। इसीलिए ब्लादिवस्तोक में होनेवाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत को केंद्र में रखा गया है। जाहिर है कि इससे पाकिस्तान परेशान होगा।

इस समय सउदी अरब और संयुक्त अरब अमारात के विदेश मंत्री हताश इमरान सरकार के पिचके हुए गुब्बारे में थोड़ी हवा जरुर भरेंगे लेकिन अब पाकिस्तान का भला इसी में है कि खुद के दिमाग में फंसी भारत-गांठ को खोल दे और अपना ध्यान संकट में फंसे अपने देश पर केंद्रित करे।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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