भारत को ट्रंप की मीठी गोलियां

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Mandatory Credit: Photo by James Veysey/Shutterstock (10267703cj) US President Donald Trump at No.10 Downing Street US President Donald Trump state visit to London, UK - 04 Jun 2019

भारत के प्रति अमेरिकी नीति भी अजीब है। एक तरफ वह हमको चीन के खिलाफ उकसा रहा है और हर तरह की मदद की चूसनियां लटका रहा है और दूसरी तरफ वह अमेरिका में पढ़नेवाले भारतीय छात्रों और प्रवासियों को तबाह करने पर तुला हुआ है। अमेरिकी सरकार ने अभी एक नया हुक्म जारी किया है, जिसके मुताबिक उन सब भारतीय छात्रों के वीजा रद्द किए जाएंगे, जो आजकल ‘आनलाइन’ शिक्षा ले रहे हैं। अमेरिका में कोरोना ने इतना भयंकर रुप ले लिया है कि लगभग सभी विश्वविद्यालयों ने अपने छात्रों को घर बैठे इंटरनेट से शिक्षा देना शुरु कर दिया है। इस समय अमेरिका में भारत के दो लाख छात्र हैं। यदि उनके वीज़ा रद्द हो गए तो उन सबको तुरंत भारत आना पड़ेगा। ट्रंप-प्रशासन से पूछिए कि इन लाखों लोगों को भारत कौन लाएगा ? उन्होंने जो शुल्क भरा है, उसे कौन लौटाएगा ? उन्होंने अपने घरों का जो अग्रिम किराया दिया हुआ है, उसका क्या होगा ? जो छात्र तालाबंदी के पहले छुट्टियों में भारत आ गए थे, क्या वे अमेरिका जाकर अपना डोरा-डंडा समेटकर फिर भारत आएंगे ? इन भारतीय छात्रों के सिर पर तो ट्रंप ने तलवार लटका ही दी है, उसके पहले उन्होंने एच-1 बी वीज़ा भी रद्द कर दिए थे। यह सब उन्होंने क्यों किया ? एक तरफ तो हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वे यारी गांठते हैं और दूसरी तरफ वे प्रवासी भारतीयों पर तेजाब छिड़कने से बाज नहीं आते।

इसका मूल कारण है, उनका चुनाव, जो कि नवंबर में होनेवाला है। उसमें उन्हें उनकी लुटिया डूबती नजर आ रही है। वे अमेरिका मतदाताओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि भारतीय को भगाकर वे अमेरिकी लोगों के रोजगार सुरक्षित कर रहे हैं। यह ठीक है कि अमेरिका में बसे हुए विदेशियों में भारतीय लोग सबसे अधिक सुशिक्षित और संपन्न समुदाय हैं लेकिन यह भी सत्य है कि अमेरिका की संपन्नता में उनका योगदान सारे प्रवासियों में सबसे ज्यादा है। यदि सारे भारतवंशी आज अमेरिका से निकल आने का फैसला कर लें तो अमेरिका अपने घुटनों के बल रेंगने लगेगा। इसीलिए अमेरिका के 136 कांग्रेसमेन और 30 सीनेटरों ने ट्रंप प्रशासन को सम्हलने की चेतावनी दी है और पूछा है कि इस कोरोना-काल में क्या ट्रंप विश्वविद्यालयों में क्लासें लगाने के लिए उनको मजबूर करेंगे। कई विश्वविद्यालयों ने इस सरकारी मनमानी के विरुद्ध अदालतों की शरण ली है। यदि उन्हें राहत नहीं मिली तो विदेशी छात्रों से प्राप्त 45 बिलियन डाॅलर का नुकसान उन्हें भुगतना पड़ेगा। ट्रंप क्या करे ? वह इन विश्वविद्यालयों की आमदनी की चिंता करे या वह अपनी कुर्सी बचाए ? उसकी कुर्सी को तो कोविड-19 ने ही हिला रखा है। भारत सरकार ट्रंप के इस बेढंगे कदम का विरोध शायद इसीलिए नहीं करेगी कि हमारे प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री को अमेरिकी नेता हर दूसरे दिन चीन-विरोधी मीठी गोलियां टिकाते रहते हैं।


डॉ वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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