भारत के लिए नया सिरदर्द

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Muslim pilgrims wearing a mask leave after the Friday prayer at Mecca's Grand Mosque, on October 11, 2013 as hundreds of thousands of Muslims have poured into the holy city of Mecca for the annual hajj pilgrimage. The hajj is one of the five pillars of Islam and is mandatory once in a lifetime for all Muslims provided they are physically fit and financially capable. AFP PHOTO/FAYEZ NURELDINE (Photo credit should read FAYEZ NURELDINE/AFP via Getty Images)

इन दिनों मुसीबतों के कई छोटे-मोटे बादल भारत पर एक साथ मंडरा रहे हैं। कोरोना, चीन और तालाबंदी की मुसीबतों के साथ-साथ अब लाखों प्रवासी भारतीयों की वापसी के आसार भी दिखाई पड़ रहे हैं। इस समय खाड़ी के देशों में 80 लाख भारतीय काम कर रहे हैं। कोरोना में फैली बेरोजगारी से पीड़ित सैकड़ों भारतीय इन देशों से वापस भारत लौट रहे हैं। यह उनकी मजबूरी है लेकिन बड़ी चिंता का विषय यह है कि इन देशों के शासकों पर दबाव पड़ रहा है कि वे विदेशी कार्मिकों को भगाएं ताकि स्थानीय लोगों के रोजगार में बढ़ोतरी हो सके। इन देशों के कई उच्चपदस्थ शेखों से आजकल जब मेरी बात होती है तो वे यह कहते हुए पाए जाते हैं कि उनके बच्चे अभी-अभी विदेशों से पढ़कर लौटे हैं लेकिन अपने ही देश में सब अच्छी नौकरियों पर विदेशियों ने कब्जा कर रखा है।

इस प्रपंच पर इधर सबसे पहले ठोस हमला किया है, कुवैत ने। कुवैत में कुवैतियों की संख्या सिर्फ 13 लाख है जबकि वहां आजकल 43 लाख लोग रहते हैं याने विदेशियों की संख्या तीन गुनी है। कुवैत में कुवैतियों से ज्यादा भारतीयों की संख्या है। वह है, 15 लाख ! कुवैती प्रधानमंत्री शेख अल-सबाह का कहना है कि कुवैत में विदेशी 30 प्रतिशत रहें और 70 प्रतिशत कुवैती ! यह आदर्श स्थिति होगी।यदि इसी सोच के आधार पर कुवैती संसद ने कानून बना दिया तो 7-8 लाख भारतीयों को अपनी नौकरियां छोड़कर भारत आना पड़ेगा। ये भारतीय अभी अकेले कुवैत से लगभग 5 बिलियन डालर हर साल भारत भिजवा देते है।। यदि कुवैत ने सख्त निर्णय कर दिया तो उसे देखकर बहरीन, यूएई, सउदी अरब, ओमान, कतर आदि देश भी वैसी ही घोषणा कर सकते हैं।

यदि ऐसा हो गया तो 40-50 लाख लोगों को भारत में नौकरियां कैसे मिलेंगी और कुछ को मिल भी गईं तो उनको उतने पैसे कौन दे पाएगा? अकेले केरल से 21 लाख लोग खाड़ी-देशों में गए हुए हैं। इसमें शक नहीं कि कोरोना के संकट के कारण इन अति-संपन्न राष्ट्रों की अर्थ-व्यवस्थाएं भी संकट का सामना कर रही हैं लेकिन उनको इतनी समझ तो होनी चाहिए कि प्रवासी भारतीयों को ही सबसे ज्यादा श्रेय इस बात का है कि उन्होंने अपने खून-पसीने से इन देशों की अर्थ-व्यवस्थाओं को सींचा है। इसके अलावा क्या इतनी बड़ी संख्या में भारतीयों के हटने से इन देशों की अर्थ-व्यवस्थाएं बुरी तरह से लंगड़ाने नहीं लगेंगी ? खाड़ी के शेख जरा यह भी सोचें कि वहां भारतीय लोग जिस तरह के छोटे-से-छोटे काम भी खुशी-खुशी करते हैं, क्या अरब लोग करना पसंद करेंगे ? इस तरह के आनन-फानन फैसलों से ये देश अपने लिए तो संकट खड़े करेंगे ही, भारत के लिए भी नया सिरदद पैदा कर देंगे।

डॉ वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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