भारतीय जनता पार्टी के लिए दूरगामी चुनौती

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महाराष्ट्र में आखिरकार शिव सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार बन गई है। उद्धव ठाकरे भाजपा की सरकार में ढाई साल बाद मुख्यमंत्री पद मांग रहे थे लेकिन वे अभी ही मुख्यमंत्री बन गए। वे भाग्यशाली हैं कि राकांपा या कांग्रेस उनसे मुख्यमंत्री पद बांटने के लिए नहीं कह रही हैं। वे सिर्फ अपने-अपने उप-मुख्यमंत्री चाहते हैं।

इतना ही नहीं, ये दोनों सहयोगी पार्टियां अपने लिए मलाईदार मंत्रिपद भी चाहती हैं। अभी तो तीनों पार्टियों के दो-मंत्रियों ने शपथ ली है। अब देखना यह है कि किसी पार्टी को कितने और कौन-से मंत्रिपद मिलेंगे। इस मसले को लेकर इस अस्वाभाविक गठबंधन में पहले दिन से ही खींचातानी शुरु हो सकती है। लेकिन शरद पवार के रहते इस गठबंधन के बिखरने का खतरा काफी कम है, क्योंकि उनकी वरिष्ठता के अलावा उनकी ताल-मेल बुद्धि दाद देने लायक है।

वे सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के कारण कांग्रेस से अलग हुए थे लेकिन उन्हीं की पार्टी के साथ पहले भी और अब भी सरकार बनाने के लिए वे सहर्ष तैयार हो गए। नरसिंहरावजी के खिलाफ उन्होंने 1991 में अपनी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी घोषित कर दी थी लेकिन मैंने जैसे ही उनसे बात की, वे रक्षा मंत्री पद लेने के लिए तैयार हो गए। यह शरदजी की ही खूबी है कि उन्होंने शिवसेना से धर्म निरपेक्षता के प्रति आस्था प्रकट करवा ली।

शिव सेना के इस शीर्षासन का श्रेय कांग्रेस को कम, शरदजी को ज्यादा है। महाराष्ट्र के मराठी मानुस पर शरद पवार का जादू कहीं शिव सेना पर भारी न पड़ जाए। इन तीनों सत्तारुढ़ पार्टियों ने जो न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाया है, वह भी इतना आकर्षक है कि वह समस्त गैर-भाजपा सरकारों के लिए अनुकरणीय बन सकता है। किसानों की संपूर्ण कर्जमाफी, 10 रु. में खाना, 1 रु. में डाक्टरी इलाज, गंदी बस्तियों के निवासियों को 500 वर्गफीट के मुफ्त प्लाट, स्थानीय लोगों को नौकरियों में विशेष आरक्षण आदि ऐसे काम है, जिनके फायदे लोगों को तुरंत मिलेंगे।

यह पैंतरा यदि अगले प्रांतीय चुनावों में भी विरोधी दल अपना लें तो भाजपा के लिए यह जबर्दस्त और दूरगामी चुनौती बन सकता है। महाराष्ट्र की राजनीति अगले संसदीय चुनाव में राष्ट्रीय राजनीति को गहरे में प्रभावित कर सकती है।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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