झारखंड में भाजपा की हार से यदि यह भाय-भाय पार्टी कोई सबक नहीं लेगी तो अब इसे हाय-हाय करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। हिंदी इलाके में जन्मी, पली, बढ़ी भाजपा पार्टी (भाय-भाय पार्टी) का अब हिंदी इलाके से ही सूंपड़ा साफ होने लगा है। 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा को प्रचंड विजय मिली थी। लेकिन मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरयाणा, महाराष्ट्र और अब झारखंड में इतनी जल्दी भाजपा का क्षरण किस बात का सूचक है ? हरयाणा में यदि चौटाला-पार्टी का टेका नहीं मिलता तो वहां से भी भाजपा गई थी। सिर्फ उत्तरप्रदेश और गुजरात-जैसे बड़े प्रांतों में भाजपा अपने दम पर टिकी हुई है। कर्नाटक में भी किसी तरह गाड़ी धक रही है। यदि इन प्रांतों में भी आज चुनाव हो जाएं तो क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
अकेले झारखंड में भाजपा की हार के जो छह-सात कारण हैं, वे सब आप टीवी पर सुन चुके हैं और अखबारों में पढ़ चुके हैं। उनके बारे में मुझे यहां कुछ नहीं कहना है। मैं तो इससे भी ज्यादा बुनियादी सवाल कर रहा हूं। सारे देश में भाजपा से हो रहे इस मोहभंग का कारण क्या है ? भारत की जनता नौटंकियों से तंग आ चुकी है। वह नोटबंदी की हो, जीएसटी की हो, बालाकोट की हो, धारा 370 खत्म करने की हो, नागरिकता कानून की हो, विदेशी नेताओं से गल-मिलव्वल की हो, स्वच्छ भारत की हो या लच्छेदार भाषणों की हो। उस पर भीड़ की अंधी हिंसा, बेरोजगारी, मंहगाई, नौकरशाही भ्रष्टाचार, नेताओं का असीमित अहंकार और प्रचारप्रियता भारी पड़ रही है। ऐसा नहीं है कि भाजपा नेताओं और कार्यकर्त्ताओं को इस भारीपन का पता नहीं चल रहा है। उन्हें सब पता है लेकिन वे क्या इन मुद्दों पर अपना मुंह खोल सकते हैं ? उन्हें पता है कि उनके बड़े नेता जनता से नहीं, सिर्फ नौकरशाहों से संवाद करते हैं। वे भूल गए कि इन नौकरशाहों की नौकरी पक्की है जबकि उनकी बिल्कुल कच्ची है। पार्टी और देश के लोगों के साथ दोनों भाइयों का एकतरफा संवाद है। साढ़े पांच साल उन्हें गद्दी पर बैठे हुए हो गए लेकिन एक बार भी दोनों ने न तो पत्रकार परिषद् की और न ही आज तक एक बार भी ‘जनता दरबार’ लगा। ‘दरबार’ तो बादशाहों का लगता है, जनता के दरबार का क्या काम है ? जनता का काम सिर्फ बादशाह की पालकी ढोना है। अब पालकी के नीचे लगे कंधे एक के बाद एक खिसकते जा रहे हैं। इन खिसकते हुए कंधों का विकल्प ‘हिंदू वोट बैंक’ कतई नहीं बन सकता। हिंदू, हिंदू जरुर है लेकिन वह बुद्धू नहीं हैं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं