प्रचंड बहुतम से देश में फिर से अपनी सरकार बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी में भी अचानक भारी परिवर्तन सा नजर आने लगा है, मोदी की बदली हुई चाल, परिवर्तन चरित्र और विनम्र चेहरा देखकर आज हर कोई आश्चर्यचकित है, अपनी हठ, जिद और अहम के लिए प्रसिद्ध हो चुके नरेन्द्र भाई में आया यह अचानक परिवर्तन हर किसी को विस्मित कर रहा है, किन्तु देश की यह आम धारणा है कि मोदी अब देश के सच्चे प्रथम सेवक की भूमिका अख्तिया करने का प्रयास कर रहे हैं और अपने पांच साल के शासनकाल के खट्टे-मीठे अनुभवों के आधार पर अब उन्होंने जहां अपने अगले पांच साल के शासनकाल में देश का नया इतिहास लिखने की ठाल ली है। वहीं वे अपने आप को बदलने का भी प्रयास कर रहे हैं, ऐसे लगता है कि वे अब सब को साथ लेकर ‘नए भारत’ एक अपने सपने को साकार करना चाहते है।
जिसकी शुरुआत उन्होंने “निन्दक नीयरे राखिये” के मंत्र को अपनाकार और इसी शुद्ध भावना के तरह उन्होंने संसद का पहला सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष की महिमा को मंडित करने का प्रयास किया और यह स्वीकार किया कि विपक्ष का एक-एक शब्द हमारे लिए मूल्यवान है, विपक्ष को नम्बर की चिंता छोड़ सरकृार के साथ एक जुट होकर देश को बदलने की दिशा में हाथ बंटाना चाहिए। उन्होंने क हा विपक्ष का अपना महत्व है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। इस प्रकार संसद के पहले सत्र के पहले ही दिन मोदी ने बिना किसी स्वार्थ के जो प्रतिपक्ष की तरफ सहयोग का हाथ बढ़ाया, वह प्रशंसनीय है, यदि अगले पांच साल अपनी सरकार के साथ प्रतिपक्ष की भी मोदी ने इतनी ही चिंता की तो यह देश पूरे विश्व में प्रजातंत्री देशों का सरताज बन सक ता है। मोदी अपने पिछले पांच साला के कार्यकाल में अपने देशहित के सपनों को साकार रूप इसलिए नहीं दे पाए थे, क्योंकि राज्यसभा (ऊपरी सदन) में उन्हें बहुमत हासिल नहीं था और कोई भी विधेयक या संविधान संशोधन प्रस्ताव दोनों सदनों से पारित होने के बाद ही मूर्तरूप ग्रहण करता है।
किन्तु इस बार तो राज्यसभा में भी बदली हुई स्थितियां हैं और अगले कुछ दिनों में होने वाले कुछ सीटों के चुनाव के बाद राज्यसभा में भी मोदी की स्थिति मजबूत हो जाएगी इसलिए वे चाहते तो बिना प्रतिपक्ष की परवाह किए कोई भी विधेयक या संशोधन पारित करवा सकते थे, किन्तु मोदी ने उपलब्धियों के फलों से लदे और झुके वृक्ष की भूमिका अदा कर प्रतिपक्ष को वृक्ष की छांव में आकर मीठे फलों का स्वाद चखने का आमंत्रण दिया, यह उनके बदले हुए व्यक्तित्व का साक्षात स्वरूप है। अब मोदी अपने अगले पांच साल के कार्यकाल के लिए एक महान सपना संजोये हुए हैं, जिसमें देश को हर क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर पर ले जाने का सपना है और इसमें प्रतिपक्ष भी सहभागी बने इसी आकांक्षा से मोदी ने प्रतिपक्ष को अपने साथ आने का निमंत्रण दिया है, जिससे इस पुनीत कार्य में सभी की अहम भूमिका के साथ सहयोग प्राप्त हो सके ।
यदि बिखरे हुए प्रतिपक्ष ने मोदी के आमंत्रण को राजनीतिक चाल न समझ गंभीरता से लेकर मोदी को सहयोग करने का देशहित में संकल्प लिया तो यह देश के पिछले 70 साल के इतिहास की महत्वपूर्ण मिसाल बनकर सामने आएगा और पूरे विश्व के देश इसे एक अनुकरणीय पहल मानकर उसका अनुकरण करेंगे। यद्यपि मोदी ने यह भी कहा है कि प्रतिपक्ष का एक -एक शब्द उनके लिए मूल्यवान है, यदि मोदी ने अपने हर देशहित
के कदम से पहले उसके बारे में प्रतिपक्ष को साथ लेकर उसकी सलाह को महत्व दिया तो वह प्रतिपक्ष के लिए हौंसला अफ जाई होगा। क्योंकि मोदी के सामने तीन तलाक, देश में एक साथ चुनाव, आंतरिक व बाहरी चुनौतियां जैसे कई अहम मुद्दे हैं, साथ ही ‘नए भारत’ के सपने को साकार करने की भी चुनौती है, ऐसे में यदि प्रतिपक्ष का पूर्ण सकारात्मक सहयोग उन्हें प्राप्त हो जाता है तो फिर ये चुनौतियां अपने- आप खत्म हो जाती हैं, इसलिए अब प्रतिपक्ष से यह दरकार है कि वह देश को नया स्वरूप प्रदान करने की दिशा में मोदी को अपना अमूल्य योगदान प्रदान करें।
ओमप्रकाश मेहता
लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं