प्रेरणा पुरुष नेताजी

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कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी प्रासंगिकता समय के साथ और महत्वपूर्ण होती जाती है ऐसे ही थे अपने सर्वप्रिय व जननायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस। उन्हें पता था कि विकास के क्रम में आधी आबादी-मतलब महिलाओं को अलहदा रखना सामाजिक असंतुलन के साथ ही आर्थिक विसंगतियों को भी जन्म देगा इसीलिए उनकी पूरी कार्ययोजना में महिलाओं का समान प्रतिनिधित्व था। आजाद हिन्द फौज की कैप्टन रही लक्ष्मी सहगल को कौन नहीं जानता। उनका मिजाज पूरी तरह भारतीय था। इसीलिए उनके मन मस्तिष्क में अखंड भारत का मैप था जिसे उन्होंने अपने समय में साकार करने की दिशा में कदम भी बढ़ाया। सोमवार को देश ने आजाद हिन्द सरकार की 76वीं वर्षगांठ बड़े उत्साह से मनाई। यह वाकई बतौर भारतीय हृदय को गर्वान्वित करने वाली बात है कि 15 अगस्त 1947 से पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पूर्ण आजादी का विधिवत बिगुल बजा दिया था।

इतिहास साक्षी है कि 21 अक्टूबर 1943 को नेताजी ने अखंड भारत की आजादी का परचम लहराया था। यह वही स्वर्णिम तारीख है जब आजाद हिंद सरकार का गठन हुआ था। जापान के अलावा क ई मुल्कों की तरफ से मान्यता भी मिली थी। इस महत्वपूर्ण घटना को वक्त के साथ भुला दिया गया। जबकि अंग्रेजों की तरफ से सत्ता हस्तांतरण के ठीक चार साल पहले नेताजी ने देशवासियों के सपने को पूर्ण करने की राह प्रशस्त कर दी थी। बिना किसी खून- खराबे के एक ऐसी भारतीय सरकार का वजूद जिसमें कोर्ट, कानून, मुद्रा से लेकर अपना राष्ट्रगान था जिससे परिचित होकर नई पीढ़ी गौरवान्वित होगी ही। नेताजी को लेकर कई तरह की चर्चाओं के बीच एक बात पूरी तरह से साफ है कि उन्हें उनका वो स्थान नहीं मिला जिसके वो हक दार थे।

लम्बे समय तक उनकी मौत को लेकर कई कहानियां जब-तब सामने आती रही हैं, जिसको लेकर मुखर्जी आयोग भी बना और यह समझने की कोशिश हुई कि उनकी मौत या फिर उनके दीर्घकाल तक भारत में रहने का सच क्या है। इसको लेकर कुछ भ्रांतियां भी फैलीं और फैलाई गईं। 80 के दशक में उनके कथित प्राकट्य की घटना पर तत्कालीन एक बाबा की बड़ी आलोचना और किरकिरी हुई थी। इसी तरह काफी वक्त तक फैजाबाद में रहे एक शख्स को नेताजी बताया जाता रहा। गुमनामी बाबा के तौर पर उन बाबा की मौत के बाद वहां से बरामद कागजात की पड़ताल होती रही। हालांकि एक स्थापित सत्य यह जरूर रहा कि उनकी मौत प्लेन दुर्घटना में हुई थी। आजाद भारत में उनके वजूद को लेकर खूब चर्चाएं होती रही जबकि सच क्या था सदैव अंधेरे में रहा। उनके प्रति शायद यह एक सर्वमान्य स्वीकृति थी कि अटूट सम्मान उन्हें सदैव मिलता रहा।

मोदी सरकार आने के बाद उनसे सम्बंधित कई फाइल सार्वजनिक हुई हैं। कुछ सत्य जरूर सामने आया है लेकिन अब भी बहुत कुछ सामने आना बाकी है। नेताजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में से एक थे। उनकी सोच स्पष्ट थी कि आजादी के लिए सशस्त्र क्रांति का रास्ता वीरों का रास्ता है। उन्होंने कहा भी था कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा। उन्हें पता था अंग्रेजों को देश से उखाड़ फेकने के लिए भीतर-बाहर दोनों तरफ विपरीत परिस्थतियों का निर्माण करना होगा। इसीलिए दुनिया के दूसरे मुल्कों से सैन्य सहयोग की रणनीति पर उनका विशेष जोर था। ब्रिटिश साम्राज्य के छीजते प्रभाव को भी वो समझ रहे थे। उनका एक और वाक्य शायद हर दौर के परिवर्तनकामी व्यक्तियों के लिए प्रांसंगिक होगा। वो कहते थे, हमें अधीर नहीं होना चाहिए, न ही ये आशा करनी चाहिए कि जिस सवाल का जवाब खोजने में न जाने कितने ही लोगों ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया, उसका उत्तर हमे एक -दो दिन में मिल जाएगा।

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