पूंजीवाद के खिलाफ जिनपिंग की जंग

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दुनिया का सबसे कर्जदार रियल एस्टेट डेवलपर एवरग्रांडे डिफॉल्ट की कगार पर है। इसकी परेशानियों का असर चीन और दुनिया के प्रॉपर्टी सेक्टर पर दिख रहा है, जो बता रहे हैं कि लंबी अवधि की ब्याज दरें क्यों बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेंगी। इसका कारण है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था भारी कर्ज में है और सख्त ऋण शर्तों को झेलने के लिए वित्तीय रूप से नाजुक है। हम कर्ज के जाल में फंस गए हैं।

चीन इसमें गहराई में धंसा है। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट में अमेरिका और कई यूरोपीय देशों में नाटकीय रूप से कर्ज बढ़ गया था। पर चीन इस मामले में काफी आगे निकल गया है। चीन की जीडीपी में परिवारों और कॉर्पोरेशन का निजी कर्ज 100 फीसदी पॉइंट्स से 260 फीसदी पॉइंट्स तक पहुंच गया है, जो वैश्विक बढ़त का दो-तिहाई है। 2016 की शुरुआत में चीन में डिफ़ॉल्ट दरें तेजी से बढ़ रही थीं।

पूंजी देश से बाहर जा रही थी। एक और वैश्विक वित्तीय संकट से बचने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व को मौद्रिक नीति को कड़ा करने की योजना छोड़नी पड़ी और चीनी अधिकारियों को वित्तीय प्रणाली में भारी मात्रा में धन डालना पड़ा। अगले पांच वर्षों में, तकनीकी क्षेत्र में भारी वृद्धि के कारण चीन में ऋण का स्तर धीमा हुआ। निजी क्षेत्र में डिजिटल प्रौद्योगिकी कंपनियों के नेतृत्व में नई अर्थव्यवस्था वस्तुतः कर्ज मुक्त थी।

अब चीनी अर्थव्यवस्था में टेक्नोलॉजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 40 फीसदी है, जो 2016 में 20 फीसदी थी। हालांकि कर्ज का बम टिक-टिक करता रहा। 2016 के बाद निजी कर्ज में 20 फीसदी पॉइंट्स की बढ़त हुई, जिसमें परिवारों द्वारा घर गिरवी रखने में रिकॉर्ड तेजी दिखी। चीनी बैंकिंग प्रणाली की लगभग 40 फीसदी संपत्तियां अब प्रॉपर्टी सेक्टर से जुड़ी हुई हैं।

एवरग्रांडे पर बकाया करीब 300 बिलियन डॉलर चीन के कुल कर्ज का 0.6 फीसदी ही है, लेकिन ऐसी स्थिति में चिंताजनक है हाई-प्रोफाइल डिफॉल्ट का संक्रामक रूप से बढ़ना। अधिकांश वित्तीय विश्लेषकों का तर्क है कि चीन एवरग्रांडे के पूरी तरह से खत्म होने तथा एक और ऋण संकट का जोखिम नहीं उठा सकता। लेकिन इस बार राजनीति का सीधा टकराव अर्थव्यवस्था से है।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग माओत्से तुंग के युग की याद ताजा करने वाले समाजवाद को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी सरकार ने पूंजीवाद की ज्यादतियों पर नकेल कसना शुरू कर दिया है, जिसमें टेक टाइकूनों की संपत्ति और शक्ति तथा प्रॉपर्टी सेक्टर के बड़े पैमाने पर बढ़ते कर्ज शामिल हैं। समस्या यह है कि चीन में जो होता है, वह वहीं तक सीमित नहीं रहता।

कई मायनों में, चीन पूंजीवाद के उसी विकृत मॉडल का अनुसरण करता है जैसा अधिकांश पश्चिमी देशों में होता है, यानी वृद्धि पैदा करने के लिए लगातार बढ़ते ऋण के स्तर को अपनाना। इसका नतीजा होता है वित्तीय नाजुकता। अपने प्रतिद्वंद्वियों जापान और अमेरिका की तरह चीन ने भी ऐसी वित्तीय प्रणाली बनाई है जिसे लगातार सरकारी मदद और प्रोत्साहन की जरूरत पड़ती है।

नीति निर्माता किसी भी कीमत पर वृद्धि बनाए रखते हैं और आर्थिक या वित्तीय समस्या के जरा से संकेत पर भी नीति को सख्त करने से पीछे हट जाते हैं। ऐसा चीन में कुछ ज्यादा ही है, जहां हाल के वर्षों में डिफ़ॉल्ट दरें वैश्विक औसत के निचले औसत से भी बहुत नीचे चली गई हैं। किसी भी संकट को टालने के लिए सरकार से समय पर हस्तक्षेप की उम्मीद के कारण वैश्विक निवेशकों ने अभी तक चीन से पैसा नहीं निकाला है।

लेकिन अगर शी ने कर्ज का भुगतान कर दिया और देनदारी को बढ़ने दिया, तो यह दुनिया की वित्तीय प्रणाली में एक ब्रेकडाउन ला सकता है। आने वाले महीनों में हमें देश की दिशा बदलने के लिए प्रतिबद्ध एक नेता और भारी ऋणों के कारण आ रहे आर्थिक अवरोधों के बीच संघर्ष देखने मिल सकता है। फिलहाल, बाजार को अभी भी लगता है कि दांव बहुत बड़ा है, यहां तक कि शी जैसे शक्तिशाली नेता के लिए भी चीन को पूंजीवाद के ऋण से चलने वाले स्वरूप को हटाना मुश्किल होगा, जिसे दुनिया वर्षों से चला रही है।

रुचिर शर्मा
(लेखक और ग्लोबल इन्वेस्टर हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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