अंतरराष्ट्रीय वित्तीय अनुशासन संगठन (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को अगले चार महिने तक एक मोहलत और बख्श दी है। भारत को उम्मीद थी कि वह इस फरवरी-बैठक में उसे अपनी भूरी सूची में से निकालकर काली सूची में डाल देगा याने जैसे ईरान वित्तीय संकट में फंस गया है, वैसे पाकिस्तान भी फंस जाएगा।
लेकिन चीन की अध्यक्षता में हुई इस पेरिस बैठक में इस 39 राष्ट्रीय संगठन ने पाकिस्तान से कहा है कि वह जून 2030 तक उसी कार्य-सूची के 27 सूत्री मुद्दों पर पूरी तरह अमल करके दिखाए, वरना उसे काली सूची में डाल दिया जाएगा। पाकिस्तान की इमरान सरकार के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि इस संगठन ने अपनी रपट में कहा है कि 27 में से 14 मुद्दों पर उसने लगभग ठीक-ठाक काम किया है। लेकिन शेष 13 मुद्दों पर अभी उसका काम बाकी है।
यदि पाकिस्तान जून में मिलनेवाली सजा से बचना चाहता है तो उसे 1373 आतंकियों और 1267 वित्तीय संस्थाओं के खिलाफ दो-टूक कार्रवाई करनी होगी। उसने आतंकवादी हाफिज सईद को तो गिरफ्तार कर लिया है लेकिन मसूद अजहर समेत कई आतंकवादी अभी भी बाहर घूम रहे हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि प्रधानमंत्री इमरान खान के लाख चाहने के बावजूद क्या ये आतंकवादी अगले चार माह में गिरफ्तार किए जा सकेंगे ? पाकिस्तान सरकार की इस मजबूरी के कई कारण हैं, जिसका निवारण इमरान के बूते के बाहर है।
यह ठीक है कि चीन, तुर्की और मलेशिया के जोर लगाने के कारण पाकिस्तान अभी तक काली सूची में जाने से बचा हुआ है लेकिन उसके सदाचरण पर जोर देनेवाले देशों में सउदी अरब और अमेरिका जैसे देश भी हैं। भारत की पुरजोर कोशिश है कि पाकिस्तान को काली सूची में डाला जाए। यदि पाकिस्तान काली सूची में चला गया तो उस पर इतने अधिक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रतिबंध धुप जाएंगे कि उसका जीना हराम हो जाएगा।
भारत नहीं चाहता कि पाकिस्तान का जीना हराम हो जाए। भारत तो उसका भला ही चाहता है। आतंकवाद से जितनी हानि भारत को होती है, उससे ज्यादा पाकिस्तान को हो रही है। एक लोक-कल्याणकारी राष्ट्र बनने की बजाय पाकिस्तान भस्मासुरी राष्ट्र बन गया है। जिन्ना के सपने शीर्षासन कर रहे हैं।
डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)