पर्यावरण संरक्षण जरूरी

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ग्रीनपीस की नई रिपोर्ट पर्वावरण सुरक्षा के लिए चिंता पैदा करने वाली है। दोहा के बाद पेरिस लाइमेट करार के मुताबिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने पर जोर देने के वैश्विक प्रयासों के बीच ग्रीनपीस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बड़ी एफएमसीजी कंपनियां प्लास्टिक उत्पादन को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे भारत सहित दुनिया भर में वैश्विक जलवायु, समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है। पर्यावरण सुरक्षा के लिए काम करने वाली वैश्विक संस्था ग्रीनपीस का दावा है कि फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुइस कंपनियां (एफएमसीजी) एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक पैकेजिंग को प्रतिबंधित करने वाले कानून का विरोध करने के लिए दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन उद्योग के साथ मिलकर काम कर रही हैं। प्लास्टिक उत्पादन के विस्तार से वैक्षिक जलवायु के साथ-साथ दुनिया भर के समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरा उत्पन्न होगा। ग्रीनपीस का यह रिपोर्ट भारत के संदर्भ में अहम है, क्योंकि केंद्र सरकार ने 1 जुलाई 2022 से एकल उपयोग वाली प्लास्टिक पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।

इस तिथि से सिंगल यूज प्लास्टिक की वस्तुओं की खरीद, बिक्री, मैन्युफैचरिंग, आयात, वितरण आदि पर रोक लग जाएगी। भारत सरकार ने पॉलीथीन बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 120 माइक्रोन तक कर दी है। हालांकि, मोटाई संबंधित नियम 30 सितंबर से शुरू होकर दो चरणों में लागू किया जाएगा। फिलहाल देश में 50 माइक्रॉन से कम के पॉलीथीन बैग पर बैन है। नए नियमों के तहत 31 दिसंबर से 75 माइक्रोन से कम मोटाई के पॉलीथीन बैग और 120 माइक्रोन से कम के बैग पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। देश में वर्तमान में करीब 23 राज्यों ने अपने स्तर पर सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध की घोषणाएं की हैं, लेकिन व्यवहार में यह बंद नहीं हुआ है। सिंगल बूज प्लास्टिक देश में प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। एसोचैम के मुताबिक भारत में कुल मांग का करीब 45 फीसदी यानी करीब 90 लाख टन सिंगल यूज प्लास्टिक को हमबूज के बाद तुरंत फेंक देते हैं। इसमें बोतल, स्ट्रों, गिलास, गुटखा पाउच, पन्नी, कटलरी आदि शामिल हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) बड़े नगरीय निकायों में इकट्ठा होने वाले कचरे में 15-20 प्रतिशत तक प्लास्टिक होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के देश के 60 बड़े शहरों में किए गए सर्वे में सामने आया था कि शहरों से रोजाना 4,059 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है।

इस आधार पर अनुमान लगाया गया था कि देशभर से रोजाना 25,940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें से सिर्फ 60 प्रतिशत यानी 15,384 टन प्लास्टिक कचरा ही एकत्रित या रिसाइकल किया जाता है। बाकी नदी-नालों के जरिए समुद्र में चला जाता है या फिर उसे जानवर खा लेते हैं। हर साल 1.5 लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा विदेशों से भारत आता है। जब पॉलीथीन को 600 डिग्री से ज्यादा तापमान पर जलाया जाता है, तो उससे इंधन निकाला जा सकता है। लेकिन 600 डिग्री से कम तापमान पर जलाने से यऑसीन और यूरॉन गैस निकलती है, जो बहुत खतरनाक होती हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल वेस्ट से मिलकर मीथेन गैस छोड़ता है। मीथेन कार्बन डाय ऑसाइड की तुलना में 30 गुना हानिकारक है। मीथेन जलवायु परिवर्तन के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है। इसलिए सिंगल यूज प्लास्टिक को बंद करना जरूरी है। भारत सरकार अगर चाहती है कि1 जुलाई 2022 से देश में कहीं भी सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग नहीं हो तो इसके सभी स्रोतों-वाहकों को अभी से रोकना होगा। जीवन सुरक्षा के लिए पर्यावरण सुरक्षा बहुत जरूरी है।

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